सामान्य ज्ञान

चर्मण्वती नदी
30-Nov-2021 10:27 AM
चर्मण्वती नदी

चर्मण्वती नदी को वर्तमान समय में चम्बल नदी के नाम से जाना जाता है। यह नदी मध्य प्रदेश में बहती हुई इटावा, उत्तर प्रदेश के निकट यमुना नदी में मिलती है। पुराणों और महाभारत में इस नदी के किनारे पर राजा रन्तिदेव द्वारा  अतिथि यज्ञ करने का उल्लेख मिलता है। यह माना जाता है कि बलि पशुओं के चमड़ों के पुंज से यह नदी बह निकली, इसीलिए इसका नाम  चर्मण्वती पड़ा। किन्तु यह पुराणों की गुप्त या सांकेतिक भाषा-शैली की उक्ति है, जिससे बड़े-बड़े लोग भ्रमित हो गए हैं। राजा रन्तिदेव की पशुबलि और चर्मराशि का अर्थ केला (कदली) स्तम्भों को काटकर उनके फलों से होम एवं अतिथि सत्कार करना है। केलों के पत्तों और छिलकों को भी चर्म कहा जाता था। ऐसे कदलीवन से ही चर्मण्वती नदी निर्गत हुई थी।

महाभारत के अनुसार राजा रन्तिदेव के यज्ञों में जो आर्द्र चर्मराशि इक_ी हो गई थी, उससे यह नदी का जन्म हुआ है।  महाकवि कालिदास ने भी  अपनी रचना मेघदूत  में चर्मण्वती को रन्तिदेव की कीर्ति का मूर्तस्वरूप कहा है। इससे यह जान पड़ता है कि रन्तिदेव ने चर्मण्वती के तट पर अनेक यज्ञ किए थे।  चर्मण्वती नदी को वनपर्व के तीर्थ यात्रा अनुपर्व में पुण्य नदी माना गया है।

इस नदी का उद्गम जनपव की पहाडिय़ों से हुआ है। यहीं से गंभीरा नदी भी निकलती है। यह यमुना की सहायक नदी है।   महाभारत, वनपर्व  में अश्वनदी का चर्मण्वती में, चर्मण्वती का यमुना में और यमुना का गंगा में मिलने का उल्लेख मिलता है।

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