विचार / लेख

आश्चर्य कि वे प्रधानमंत्री कैसे बन गए !
02-Dec-2021 7:22 PM
आश्चर्य कि वे प्रधानमंत्री कैसे बन गए !

-ओशो

जीवन में पहली बार मैं हैरान रह गया। क्योंकि मैं तो एक राजनीतिज्ञ से मिलने गया था। और जिसे मैं मिला वह राजनीतिज्ञ नहीं वरन कवि था। जवाहर लाल राजनीतिज्ञ नहीं थे। अफसोस है कि वह अपने सपनों को साकार नहीं कर सके। किंतु चाहे कोई खेद प्रकट करे, चाहे कोई वाह-वाह कहे, कवि सदा असफल ही रहता है। यहां तक कि अपनी कविता में भी वह असफल होता है। असफल होना ही उसकी नियति है। क्यों कि वह तारों को पाने की इच्छा करता है। वह क्षुद्र चीजों से संतुष्ट नहीं हो सकता। वह समूचे आकाश को अपने हाथों में लेना चाहता है।

ज्एक क्षण के लिए हमने एक दूसरे की आंखों में देखा। आँख से आँख मिली और हम दोनों हंस पड़े। और उनकी हंसी किसी बूढ़े आदमी की हंसी नहीं थी। वह एक बच्चे की हंसी थी। वे अत्यंत सुंदर थे, और मैं जो कह रहा हूं वही इसका तात्पर्य है। मैंने हजारों सुंदर लोगों को देखा है किंतु बिना किसी झिझक के मैं यह कह सकता हूं कि वह उनमें से सबसे अधिक सुंदर थे। केवल शरीर ही सुंदर नहीं था उनका।

अभी भी मैं विश्वास नहीं कर सकता कि एक प्रधानमंत्री उस तरह से बातचीत कर सकते है। वे सिर्फ ध्यान से सुन रहे थे और बीच-बीच में प्रश्न पूछकर उस चर्चा को और आगे बढ़ा रहे थे। ऐसा लग रहा था जैसे वे चर्चा को सदा के लिए जारी रखना चाहते थे। कई बार प्रधानमंत्री के सेक्रेटरी ने दरवाजा खोल कर अंदर झाँका। परंतु जवाहरलाल समझदार व्यक्ति थे। उन्होंने जानबूझकर दरवाजे की ओर पीठ की हुई थी। सेक्रेटरी को केवल उनकी पीठ ही दिखाई पड़ती थी। परंतु उस समय जवाहरलाल को किसी की भी परवाह नहीं थी। उस समय तो वे केवल विपश्यना ध्यान के बारे में जानना चाहते थे।

जवाहरलाल तो इतने हंसे कि उनकी आंखों में आंसू आ गए। सच्चे कवि का यही गुण है। साधारण कवि ऐसा नहीं होता। साधारण कवियों को तो आसानी से खरीदा जा सकता है। शायद पश्चिम में इनकी कीमत अधिक हो अन्यथा एक डॉलर में एक दर्जन मिल जाते है। जवाहरलाल इस प्रकार के कवि नहीं थे—एक डॉलर में एक दर्जन, वे तो सच में उन दुर्लभ आत्माओं में से एक थे जिनको बुद्ध ने बोधिसत्व कहा है। मैं उन्हें बोधिसत्व कहूंगा।

मुझे आश्चर्य था और आज भी है कि वे प्रधानमंत्री कैसे बन गए। भारत का यह प्रथम प्रधानमंत्री बाद के प्रधानमंत्रियों से बिल्कुल ही अलग था। वे लोगों की भीड़ द्वारा निर्वाचित नहीं किए गए थे, वे निर्वाचित उम्मीदवार नहीं थे—उन्हें महात्मा गांधी ने चुना था। वे महात्मा गांधी की पसंद थे।

और इस प्रकार एक कवि प्रधानमंत्री बन गया। नहीं तो एक कवि का प्रधानमंत्री बनना असंभव है। परंतु एक प्रधानमंत्री का कवि बनना भी संभव है जब वह पागल हो जाए। किंतु यह वही बात नहीं है। तो मैंने सोचा था कि जवाहरलाल तो केवल राजनीति के बारे में ही बात करेंगे, किंतु वे तो चर्चा कर रहे थे काव्य की और काव्यात्मक अनुभूति की।

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news