संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : सुरक्षा बलों के हाथ ऐसे हत्यारे हथियार और बचाव की कानूनी ढाल दोनों दे रखी है सरकार ने..
06-Dec-2021 5:16 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय :  सुरक्षा बलों के हाथ ऐसे हत्यारे हथियार और बचाव की कानूनी ढाल दोनों दे रखी है सरकार ने..

भारत के उत्तर-पूर्वी राज्य नागालैंड में दो रात पहले गश्त पर निकली भारतीय थल सेना की पैरामिलिट्री, असम राइफल्स के जवानों ने कोयला खदान में काम करके लौटते हुए मजदूरों की एक गाड़ी पर अंधाधुंध गोलियां चलाईं, आधा दर्जन से अधिक लोग मारे गए. इसके बाद जब गांव के लोगों ने बेकसूर लोगों की इस तरह हत्या करने का विरोध किया तो इस विरोध को कुचलने के लिए जवानों ने फिर गोलियां चलाईं और 1 दर्जन से अधिक लोग अब तक मारे जा चुके हैं। असम राइफल्स का कहना है कि गांव के लोगों ने पहली गोलीबारी के बाद जब जवानों पर हमला किया तो उसमें कई जवान घायल हुए, एक जवान की मौत भी हो गई है। पूरा मामला केंद्र सरकार, और राज्य सरकार, दोनों के बयानों से साफ होता है कि पैरामिलिट्री के लोगों ने बिना पहचान किए हुए रात के अंधेरे में बेकसूर और निहत्थे मजदूरों को भून डाला। फौज ने इस पर अफसोस जाहिर किया है और ऊंची जांच शुरू की है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी इस पर बहुत अफसोस जाहिर किया है जिनके मातहत थल सेना की यह पैरामिलिट्री वहां काम कर रही थी। नागालैंड के मुख्यमंत्री ने तुरंत ही सशस्त्र बलों की सुरक्षा के लिए बनाए गए एक विशेष कानून, अफ्सपा को खत्म करने की मांग की है। नागालैंड की पुलिस ने जो मामला इन हत्याओं के बाद दर्ज किया है उसकी रिपोर्ट साफ-साफ कहती है- ‘घटना के दौरान सुरक्षा बलों के साथ कोई पुलिस गाइड नहीं था, और न ही सुरक्षाबलों के इस अभियान में पुलिस गाइड देने के लिए थाने से मांग की गई थी, इससे यह साफ है कि सुरक्षाबलों का इरादा आम लोगों को मारना और घायल करना था।’ इन 13 मौतों के बाद नागालैंड में भारी जन आक्रोश बना हुआ है और देश भर से राजनीतिक दलों ने इस अंधाधुंध हिंसा के खिलाफ बहुत सी बातें कही हैं. नागालैंड में बहुत सालों से उग्रवाद चले आ रहा है और जिससे निपटने के लिए तैनात सेना लोगों के साथ ज्यादती करती है ऐसे आरोप हमेशा से लगते आए हैं। नागालैंड में सरकार ने विशेष जांच के आदेश दिए हैं, और जनता जगह-जगह नाराजगी में कैंडल मार्च निकाल रही है। फौज ने इस घटना पर बड़ा अफसोस जाहिर किया है और कहा है कि आम लोगों की दुर्भाग्यपूर्ण मौत की वजह की उच्च स्तरीय जांच की जा रही है।

लोगों को याद होगा कि देश के अलग-अलग हिस्सों में, जिनमें उत्तर-पूर्वी राज्य भी शामिल हैं, और कश्मीर भी, वहां से सुरक्षाबलों को किसी कानूनी कार्यवाही से विशेष संरक्षण देने के लिए बनाया गया एक खास कानून, आर्म्ड फोर्सेस स्पेशल प्रोटेक्शन एक्ट खत्म करने के लिए मणिपुर में एक सामाजिक कार्यकर्ता इरोम शर्मिला ने 16 बरस तक अनशन किया था, जो कि दुनिया के इतिहास का सबसे लम्बा अनशन था।  और मणिपुर की महिलाओं ने सार्वजनिक जगहों पर कपड़े उतारकर प्रदर्शन करके भी दुनिया का ध्यान खींचा था। फिर भी फौज और दूसरे सुरक्षाबलों के दबाव में केंद्र सरकारों ने इस कानून को जारी रखा हुआ है और इसकी वजह से सुरक्षा बलों की कार्रवाई पर में भारी ज्यादती होते ही रहती है. लोगों को याद होगा कि अभी कुछ समय पहले कश्मीर में सुरक्षाबलों ने एक प्रदर्शनकारी को जीप के सामने बांधकर वहां से अपने लोगों को बाहर निकाला था ताकि पत्थर चलाने वाले लोग इस गाड़ी पर पत्थर न चलाएं क्योंकि इससे कश्मीरी समुदाय के एक व्यक्ति के घायल होने का खतरा रहेगा। इस तरह की मानवीय ढाल बनाकर कार्रवाई करने के खिलाफ बहुत कुछ कहा और लिखा गया, लेकिन केंद्र सरकार ने अपनी फौज की इस कार्रवाई को जायज ठहराया था।

सुरक्षाबलों पर उत्तर-पूर्व के राज्यों से लेकर कश्मीर तक और छत्तीसगढ़ के बस्तर तक तरह-तरह के जुल्म और ज्यादती के आरोप लगते रहते हैं, और ऐसे आरोपों में स्थानीय महिलाओं के साथ बलात्कार भी शामिल है और बेकसूरों की हत्या तो मानो सभी जगह होती ही रहती है। यह पूरा सिलसिला और खासकर यह कानून भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों के ठीक खिलाफ है, लेकिन उग्रवाद से निपटने के नाम पर सरकार सुरक्षा बलों के हाथ में अंधाधुंध हथियार चलाने का हक देती है, और फिर उनकी ज्यादती पर किसी कानूनी कार्रवाई से उन्हें बचाने के लिए उन्हें इस खास कानून की ढाल भी देती है। मानवाधिकार आंदोलनकारी दशकों से इस कानून के खिलाफ बोलते आए हैं, आंदोलन करते आए हैं। अनगिनत अंतरराष्ट्रीय संगठन भी समय-समय पर भारत की पिछली कई सरकारों से इस कानून का विरोध करते आए हैं, लेकिन सरकारों को ऐसा हथियार सरीखा एक कानून ठीक लगता है ताकि सुरक्षा बल कड़ी कार्रवाई कर सकें। यह कानून पूरी तरह अलोकतांत्रिक और हिंसक है और यह सुरक्षा बलों पर से जवाबदेही को हटा देता है। नागालैंड की यह ताजा घटना जिसमें एक दर्जन से अधिक बेकसूर ग्रामीणों को इस तरह भून दिया गया है, यह एक मौका रहना चाहिए जब देश के राजनीतिक दल और देश के ऐसे तमाम फौज-प्रभावित राज्य मिलकर केंद्र सरकार पर दबाव डालें और इस कानून को खत्म करवाएं। लोकतंत्र में किसी हिंसा से निपटने के लिए सुरक्षाबलों के हाथ में ऐसा हिंसक हथियार नहीं दिया जा सकता जिसका कि व्यापक का बेजा इस्तेमाल दशकों से जो होते चल रहा है। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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