संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : रंजन गोगोई का स्तरहीन काम, और यह कोई पहली बार नहीं, तृणमूल का नोटिस एकदम सही
13-Dec-2021 5:30 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय :  रंजन गोगोई का स्तरहीन काम, और यह कोई पहली बार नहीं, तृणमूल का नोटिस एकदम सही

भारत के एक भूतपूर्व मुख्य न्यायाधीश और आज के राज्यसभा सदस्य जस्टिस रंजन गोगोई अपने एक टीवी इंटरव्यू में कही गई कुछ बातों को लेकर विशेषाधिकार हनन के एक मामले में घिर गए हैं। तृणमूल कांग्रेस ने रंजन गोगोई के खिलाफ राज्यसभा में विशेषाधिकार हनन और सदन की गरिमा गिराने की शिकायत की है। दरअसल अभी-अभी रंजन गोगोई की लिखी हुई एक किताब आई है जिसमें उन्होंने अयोध्या पर अपनी अगुवाई में एक बेंच द्वारा दिए गए फैसले के बारे में भी लिखा है, और जैसा कि आजकल बाजार में आमतौर पर होता है कि किसी किताब की बिक्री को बढ़ाने के लिए उसके लेखक बिक्री शुरू होने के आसपास कई तरह के इंटरव्यू देते हैं, वैसा ही एक इंटरव्यू रंजन गोगोई ने भी एनडीटीवी को दिया था। इसमें जब उनसे पूछा गया था कि पिछले बरस राज्यसभा में मनोनीत होने के बाद से अब तक वे कुल 10 फ़ीसदी बार ही सत्र में गए हैं, तो इस पर उनका कहना था कि वे कोरोना की वजह से भी वहां नहीं गए थे, और संसद में बैठने की व्यवस्था भी उन्हें बहुत आरामदेह नहीं लगी.उन्होंने कह कि इसके अलावा वे राज्यसभा तभी जाते हैं जब उन्हें जाने की इच्छा होती है, जब उन्हें लगता है कि ऐसे महत्वपूर्ण मुद्दे वहां पर हैं जिस पर वे बोल सकते हैं। उन्होंने कहा कि मैं एक मनोनीत सदस्य हूं और किसी पार्टी की व्हिप से नहीं चलता हूं, इसलिए वहां जाना और वहां से निकलना यह मेरी मर्जी का है। उन्होंने टीवी के इस इंटरव्यू में यह भी कहा-राज्यसभा में ऐसा कौन सा जादू है, अगर मैं किसी ट्रिब्यूनल का चेयरमैन रहता तो मैं वहां से वेतन-भत्ते अधिक पाते रहता मैं राज्यसभा से एक पैसा भी नहीं ले रहा हूं।

रंजन गोगोई की इन बातों को तृणमूल कांग्रेस ने तो संसद के लिए अपमानजनक माना ही है उसके अलावा भी कांग्रेस पार्टी के एक वरिष्ठ सांसद रहे जयराम रमेश ने भी इन बातों पर आपत्ति की है। जयराम रमेश ने कहा कि एनडीटीवी के इंटरव्यू में जस्टिस गोगोई ने जो कहा है कि वह राज्य सभा तब जाते हैं, जब उन्हें जाने को दिल करता है, यह संसद का अपमान है। जयराम रमेश ने ट्वीट करके यह बात कही और कहा कि जिस सदन में उन्हें मनोनीत किया गया है, उस सदन में लोग न सिर्फ बोलने के लिए जाते हैं बल्कि सुनने के लिए भी जाते हैं।


जस्टिस रंजन गोगोई ने पहली बार कोई स्तरहीन काम किया हो ऐसी बात भी नहीं है, इसके पहले भी जब वे भारत के मुख्य न्यायाधीश थे और उनके खिलाफ मातहत काम करने वाली एक महिला कर्मचारी ने सेक्स शोषण की शिकायत की थी, तो उन्होंने परंपराओं और नैतिकता से परे जाकर खुद ही उस मामले की सुनवाई पर बैठना तय किया। उस बात ने भी लोगों को हक्का-बक्का कर दिया था, और लोगों ने उसकी जमकर आलोचना भी की थी। उसके बाद अयोध्या का फैसला आया और कुछ महीनों के भीतर ही रंजन गोगोई ने राज्यसभा सदस्य मनोनीत होना मंजूर कर लिया। बहुत से लोगों ने इन दोनों बातों को जोडक़र देखा, बहुत से लोगों ने यह कहा कि रंजन गोगोई के बहुत से अदालती फैसले सरकार को खुश करने वाले थे, और उन्हीं के एवज में उन्हें राज्यसभा की सदस्यता दी गई है। अभी उन्होंने इस इंटरव्यू में जिस तरह से यह कहा कि राज्यसभा में ऐसा कौन सा जादू है और वह बाहर किसी ट्रिब्यूनल के चेयरमैन होकर अधिक फायदा पाते, यह बात भी राज्यसभा की गरिमा के बहुत खिलाफ है। और राज्यसभा का कोई सदस्य यह कहे कि जब उसकी मर्जी होती है, या जब उसका दिल करता है, तब वह राज्यसभा जाता है, यह निश्चित रूप से राज्यसभा की अवमानना है। अब संसदीय व्यवस्था में नियमों की बारीकी के तहत इसे अवमानना माना जाएगा या नहीं इससे हमारा अभी बहुत लेना-देना नहीं है, लेकिन हमारी मामूली समझ यही कहती है कि देश की इस सबसे ऊंची संस्था के उच्च सदन राज्यसभा के बारे में इस अंदाज में कुछ कहना, और इस अंदाज में वहां आना-जाना, यह कहना कि उनकी जब मर्जी होती है तब वहां जाते हैं, और जब मर्जी होती है तब वहां से आते हैं, यह पूरा सिलसिला बड़ा खतरनाक है। यह सिलसिला बताता है कि देश का जो उच्च सदन देश के, दुनिया के मुद्दों पर गौर करता है, विचार करता है, फैसले लेता है, वहां का एक सदस्य इस तरह अपने आपको मनमर्जी का मालिक बताता है, खासकर सदन के मामलों को लेकर।

हो सकता है कि तृणमूल कांग्रेस की शिकायत के साथ कई और पार्टियां भी इस नोटिस के समर्थन में जुट जाएं क्योंकि जिस तरह रंजन गोगोई ने राज्यसभा की सदस्यता मंजूर की थी उसने कई पार्टियों की भावनाओं को चोट पहुंचाई थी और लोगों को लगा था कि यह देश में एक बहुत ही खराब परंपरा शुरू हुई है कि रिटायर होने के कुछ ही समय के भीतर भारत के मुख्य न्यायाधीश राज्यसभा की सदस्यता को मंजूर करें। उनके इस फैसले से लोगों को यह भी याद पड़ गया था कि अदालत में जज की कुर्सी पर बैठकर उन्होंने ऐसे कौन-कौन से फैसले और हुक्म दिए थे जिनसे सरकार का खुश होना लाजिमी था। ऐसे तमाम राजनीतिक दल जिन्होंने रंजन गोगोई की आलोचना की थी आज उनके पास यह सोचने का एक मौका है कि क्या वे इस विशेषाधिकार हनन और अवमानना के मामले में तृणमूल कांग्रेस के साथ खड़े होंगे या नहीं। यह भी हो सकता है कि कांग्रेस जैसी पार्टी जिसके भीतर घुसकर तृणमूल कांग्रेस लगातार शिकार कर रही है, वह ममता बनर्जी की पार्टी के इस फैसले के साथ खड़ा होना ना चाहे। फिर भी दूसरी और पार्टियां हैं, और आगे देखना है कि कौन-कौन सदन की गरिमा की फिक्र करती हैं।
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