साहित्य/मीडिया
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हिन्दीनामा ने यूट्यूब पर ‘जो मेरे घर कभी ना आएंगे’ नाम से एक अनोखी शृंखला शुरू की है. इस शृंखला में लेखक, कवि और कलाकारों की एक दिन की पूरी दिनचर्या के बारे में दिखाया और बताया जाता है. हिन्दीनामा के संस्थापक और संचालक अंकुश कुमार ने बताया कि हम जिन लेखकों को पढ़ते हैं, जिन कलाकारों को देखते हैं, वे घर में कैसे रहते हैं, उनका घर कैसा होता है, वे लेखन के अलावा और क्या-क्या काम करते हैं, इन तमाम बातों के बारे में एक आम आदमी के मन में हमेशा जिज्ञासा बनी रहती है.
अंकुश बताते हैं कि पाठकों की इसी जिज्ञासा को शांत करने के लिए हिन्दीनामा ने ‘जो मेरे घर कभी ना आएंगे’ नाम से शृंखला शुरू की है. यह शृंखला अपने में विशेष है चूंकि यह लोगों को साहित्य की दुनिया के उन पहलुओं से रू-ब-रू कराएगी कि एक आदमी आम से ख़ास कैसे होता है. उनके पसंदीदा लेखक या कवि जिनके लिखे में वे जीवन की गहराइयों को पाते हैं, वे असल में कितना सहज-सरल जीवन जीते हैं. यह लोगों को किताबों के कवर के पीछे के चेहरे से मिलवाने की कोशिश है.
अंकुश कहते हैं कि इस शृंखला का उद्देश्य है कि लोग अपने पसंदीदा कवियों व साहित्यकारों को और भी करीब से जान सकें. इसलिए हिन्दीनामा की टीम कवि, साहित्यकार और कलाकारों के घर पर जाती है. उनके साथ उनकी दिनचर्या के अनुसार एक दिन व्यतीत करती है.
जानें गीत चतुर्वेदी के बारे में
‘जो मेरे घर कभी ना आएंगे’ शृंखला की पहली कड़ी में चर्चित युवा कवि गीत चतुर्वेदी की दिनचर्या को शामिल किया गया है.
अंकुश ने बताया कि ‘हिन्दीनामा’ की टीम गीत चतुर्वेदी के भोपाल स्थित घर पहुंची. उनके पूरे दिन को बहुत करीब से देखा. कैसे लोगों के पसंदीदा लेखक अपने हाथ से चाय बनाते हैं और उसी चाय पर अपने जीवन के किस्से भी सुनाते हैं. घर के बाहर टहलने निकलते हैं तो अपने सपनों के बारे में बाते करते हैं. खाने की मेज पर गीत गुनगुनाते हैं. गीत चतुर्वेदी के साथ बने इस एपिसोड में प्रेम से लेकर दार्शनिकता पर तमाम बातें, सवाल और जवाब हैं.
रात में लिखते हैं गीत चतुर्वेदी
गीत चतुर्वेदी के साथ हुई लंबी बातचीत में उन्होंने बताया कि इन दिनों वह अपने नए उपन्यास ‘उस पार’ पर काम कर रहे हैं. लेखन के समय के बारे में गीत बताते हैं कि वे रात की तन्हाई में लेखन का काम करते हैं. उन्होंने दिन के उजाले में कभी लिखा ही नहीं. दिल और दिमाग की खिड़की रात में ही खुलती है.
यहां गीत बताते हैं कि जब लोगों के उठने का समय होता है तब वह सोने जाते हैं. वह सुबह 6-7 बजे सोते हैं और फिर दोपहर 1 बजे के आसपास उठते हैं.
गीत अपने निजी के बारे में बताते हैं कि पहले वह एक अखबार में काम करते थे. अखबार में काम करने के दौरान उनके लगातार कई शहरों में तबादले हुए. एक बार उनका तबादला भोपाल हुआ. भोपाल आकर करीब एक साल बाद उन्होंने नौकरी छोड़ दी और पूरी तरह से लेखन में रम गए. भोपाल में नौकरी छोड़ी तो यहीं बस गए.
चाय के शौकीन
इस तरह कभी चाय पर तो कभी खाने पर चर्चा करते हुए हिन्दीनामा के मार्फत आप गीत चतुर्वेदी के जीवन के तमाम पहलुओं से परिचित हो पाएंगे. यहां बातचीत में गीत बताते हैं कि चाय खुद एक कविता है. और किसी समय वह दिन में 30-40 चाय पी जाया करते थे. फिलहाल कुछ कंट्रोल किया है. गीत की चाय में सिर्फ गर्म पानी और चाय की पत्ती होती है.
गीत बताते हैं कि किचन उनकी पसंदीदा जगह है. जब विचार आपस में उलझे हुए होते हैं, कोई सिरा नजर नहीं आ रहा होता है तो उस समय वह किचन में आते हैं. किचन में आकर मन के तमाम ताले खुल जाते हैं.
लॉर्ड्स में बॉलिंग करने का सपना
लेखन से इतर अपने अन्य शौक और सपनों के बारे में गीत बताते हैं कि वह क्रिकेट के मक्का कहे जाने वाले लॉर्ड्स क्रिकेट ग्राउंड में बॉलिंग करना चाहते थे. क्रिकेट उनका बचपन का सपना था.
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पसंदीदा किताब के बारे में वह कहते हैं कि आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा रचित ‘बाणभट्ट की आत्मकथा’ उनकी प्रिय रचना है.
कुछ ऐसी ही तमाम सवालों के जवाब पाएंगे हिन्दीनामा की अनोखी शृंखला ‘जो मेरे घर कभी ना आएंगे’ में.
हिन्दीनामा
‘हिन्दीनामा’ ऑनलाइन साहित्य मंच है. ‘हिन्दीनामा’ ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर हिंदी साहित्य की तमाम विधाओं को एक मंच पर लाने का काम कर रहा है. इस सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म की स्थापना की बुलंदशहर के गांव परतापुर के रहने वाले अंकुश कुमार ने. अंकुश पेशे से इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हैं. लेकिन हिंदी के प्रति गहरे लगाव के चलते हुए उन्होंने ‘हिन्दीनामा’ शुरू किया. हिन्दीनामा के सह-संस्थापक हैं उज्ज्वल भड़ाना. टीम के अन्य सदस्यों में राजेन्द्र नेगी, नेहा रॉय, प्रतिभा किरण, अनुष्का ढौंडियाल, अनूप काहिल और आकांक्षा इरा हैं.
अंकुश कुमार ने बताया कि ‘हिन्दीनामा’ अब तरंग नाम से एक नई पहल शुरू कर रहा है. हिन्दीनामा तरंग की जिम्मेदारी दीक्षा चौधरी को दी गई है. (news18.com)