संपादकीय
आज दुनिया के बहुत से देशों में यह हड़बड़ी मची हुई है कि सामने क्रिसमस के त्यौहार पर भीड़ को किस तरह रोका जाए, किस तरह लोगों को कोरोना के संक्रमण से बचाया जाए। यूरोप के देशों में एक-एक करके कई तरह के प्रतिबंध लग रहे हैं, और नीदरलैंड ने एक बड़ा लॉकडाउन घोषित कर दिया है जिसमें बहुत ही जरूरी चीजों की दुकानों के अलावा बाकी सब कुछ बंद कर दिया गया है। अधिकतर देशों में क्रिसमस की पार्टियों को लेकर सरकार चौकन्ना है और ब्रिटेन के स्वास्थ्य मंत्री ने भी यह कहा है कि वे क्रिसमस के प्रतिबंधों के लिए कुछ भी नहीं कह सकते क्योंकि हालात बदलते जा रहे हैं, और कोई भी प्रतिबंध कभी भी लागू किए जा सकते हैं। ऐसे में ब्रिटेन ने रात-दिन टीकाकरण का एक नया अभियान छेड़ा है क्योंकि वहां बहुत से लोग टीका लगवाने से परहेज करते चले आ रहे थे। इस बारे में हमने इसी जगह पर पिछले दिनों एक से अधिक बार लिखा भी है लेकिन आज हिंदुस्तान के टीकाकरण के बारे में कुछ चर्चा की जरूरत है जहां पर लोगों के बीच टीकों को लेकर कोई परहेज नहीं है। ऐसे देश में टीकाकरण के आज तक के आंकड़ों को अगर देखें तो कुछ निराशा होती है। हिंदुस्तान में अब तक 18 बरस से ऊपर की आबादी को ही टीके लगाए जा रहे हैं। और यह आबादी तकरीबन 60 फीसदी है। 40 फीसदी आबादी 18 बरस से कम उम्र की है जिसको टीके लगाना अभी शुरू भी नहीं किया गया है। पूरी आबादी के अनुपात में अगर देखें तो 40 फीसदी लोग अब तक पूरी तरह टीके पा चुके हैं। और 60 फीसदी आबादी ऐसी है जिसे कम से कम एक डोज लग चुका है। उम्र के हिसाब से अगर देखें तो 18 से 45 बरस की उम्र में 100 लोगों पर कुल 86 डोज़ लगे हैं। 45 से 60 वर्ष की उम्र में 100 लोगों पर 160 लगे हैं, और 60 बरस की से अधिक की उम्र वाले लोगों को 100 लोगों पर 151 लगे हैं। कुल मिलाकर तस्वीर यह बनती है कि देश की आबादी का कुल 40 फीसदी हिस्सा अभी पूरी तरह वैक्सीन पाया हुआ है, और आज जब दुनिया के 60 से अधिक देशों में दो डोज के बाद एक तीसरे बूस्टर डोज का काम शुरू हो चुका है, हिंदुस्तान में 40 फीसदी आबादी तो एकदम ही अछूती है जिसके लिए टीकाकरण शुरू ही नहीं किया गया है।
18 बरस से कम के लोग जो कि अधिक सक्रिय रहते हैं, जिनका कि स्कूल-कॉलेज में अधिक उठना-बैठना, आना-जाना, खेलना-कूदना चलता है, उस आबादी को टीके लगना शुरू ही नहीं हुआ है। और अगर हिंदुस्तान में तीसरी लहर आती है, जैसा कि कई विशेषज्ञों का मानना है, तो स्कूल-कॉलेज के बच्चे और 18 बरस से कम उम्र के तमाम लोग एक बड़े खतरे में रहेंगे क्योंकि उनका एक दूसरे से मेलजोल दूसरी उम्र के लोगों के मुकाबले अधिक होता है। ऐसे में भारत में टीकाकरण की रफ्तार बढ़ क्यों नहीं रही है यह एक सवाल उठता है। दूसरी बात यह है कि राज्य सरकारों ने अपने टीकाकरण केंद्रों का ढांचा विकसित कर लिया है, और किसी भी प्रदेश से ऐसी खबरें नहीं आ रही हैं कि लोगों की भीड़ लग रही हो और टीके न हों, उनको लगाने वाले लोग न हों। अब दिक्कत यह है कि आबादी के 40 फ़ीसदी को तो टीके लगना शुरू ही नहीं हुआ है इसमें सिर्फ टीकों की कमी आड़े आ सकती है।
टीकाकरण के आंकड़ों को देखें तो एक हैरानी की बात यह है कि 60 फ़ीसदी आबादी को कम से कम एक डोज़ लग चुका है, और 40 फ़ीसदी आबादी ऐसी है जिसे 2 डोज़ लग चुके हैं। इसका मतलब यह है कि सरकार के रिकॉर्ड में जो लोग आ चुके हैं, आबादी का ऐसा 20 फीसदी हिस्सा भी पहले डोज़ के बाद दूसरे डोज के लिए नहीं लौटा है जबकि सरकार के पास इनका आधार कार्ड है, इनके मोबाइल फोन नंबर हैं, इनका पता है, सब कुछ है। लेकिन इन्हें ढूंढकर या इन्हें बुलाकर टीके का दूसरा डोज देना नहीं हो पाया है। अब इसमें राज्य सरकारों की चूक है या केंद्र सरकार के स्तर पर कोई कमी है, या फिर ऐसा है कि वैक्सीन की केंद्र सरकार की तरफ से सप्लाई कम है इसलिए अधिक जोर नहीं दिया जा रहा है? अभी हाल-फिलहाल में सरकारों की तरफ से इस बारे में कुछ कहा नहीं गया है। इसलिए एक तो इस फिक्र को भी दूर करने की जरूरत है कि पहला टीका लगने के बाद दूसरा टीका न पाने वाली देश की 20 फीसदी आबादी को बुलाकर या ढूंढकर यह दूसरा टीका लगवाया जाए। लेकिन इससे भी अधिक फिक्र की बात यह है कि 18 बरस से नीचे की देश की 40 फीसदी आबादी को टीके लगना शुरू ही नहीं हुआ है। जबकि आबादी का यह हिस्सा अधिक संगठित है, इसके बहुत बड़े हिस्से को स्कूल-कॉलेज में पाया जा सकता है, और वहां पर टीकाकरण हो सकता है। लेकिन अब तक इनका टीकाकरण शुरू नहीं किया गया जबकि कई महीने पहले इसकी घोषणा की गई थी।
पिछले 1 साल में केंद्र सरकार के कई मंत्रियों ने बार-बार यह दावा किया था कि 18 बरस से अधिक की तमाम आबादी को इस साल दिसंबर के पहले दोनों टीके लग जाएंगे। ऐसी आबादी करीब 94 करोड़ है, लेकिन इसका एक बड़ा हिस्सा अभी तक पहले डोज़ भी दूर है, और दूसरे डोज से तो दूर है ही। इसलिए सरकार अब लगातार इस बात पर ध्यान दे रही है कि कैसे पहला डोज पाए हुए लोगों को दूसरा डोज लगाया जाए, बजाय इसके कि बाकी आबादी को पहला डोज लगाना शुरू किया जाए। मतलब यह कि अगले कई हफ्तों तक 18 बरस से नीचे के लोगों की बारी शुरू भी नहीं होने वाली है, और स्कूल-कॉलेज खुलने से इस उम्र के बच्चों के बीच संपर्क बढ़ते चले जा रहा है। सरकार के वैक्सीन के आंकड़ों का अंदाज भी बड़ा गलत निकल रहा है। कुछ महीने पहले मई में देश के टीकाकरण के लिए बनाई गई राष्ट्रीय कमेटी के अध्यक्ष डॉ. बी के पाल ने कहा था कि दिसंबर तक देश में 216 करोड़ डोज लग चुके रहेंगे। लेकिन जुलाई के महीने में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट को एक हलफनामे में कहा था कि कुल 135 करोड़ डोज ही साल के आखिरी तक उपलब्ध हो पाएंगे।
आज दुनिया में 60 से अधिक देश ऐसे हैं जिन्होंने अपने लोगों को तीसरा डोज लगाना शुरू कर दिया है, लेकिन हिंदुस्तान में सरकार लगातार ट्रायल किए चले जा रही है और अब तक यह तय नहीं कर पा रही है कि तीसरा डोज़ लगाया जाए, या न लगाया जाए। फिर एक बात यह भी है कि आज जब आबादी को पहला और दूसरा डोज़ ही ठीक से नहीं लग पाया है, तो बच्चों और नौजवानों को टीकाकरण शुरू किया जाए, या पहले से दो डोज़ पाए हुए लोगों को तीसरा डोज़ दिया जाए। यह बात तो वैज्ञानिक और विशेषज्ञ ही तय कर सकते हैं, लेकिन इतना तय है कि अगर कोई तीसरी लहर आती है तो नौजवानों और बच्चों की बिना टीके वाली पीढ़ी इसका आसान शिकार हो सकती है। देश और प्रदेश की सरकारों को रोज टीकाकरण के आंकड़े जारी करने के साथ-साथ यह भी बताना चाहिए कि देर किस बात की है, कितनी टीकाकरण-क्षमता का इस्तेमाल रहा है, और किसकी बारी कब आएगी। हिंदुस्तान में ओमिक्रॉन तो आधे राज्यों में पहुँच चुका है, लेकिन आधी आबादी का टीकाकरण अभी शुरू भी नहीं हुआ है।
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