संपादकीय
पंजाब में गुरु ग्रंथ साहब के अपमान के आरोपों के साथ पिछले लगातार दो दिनों में दो लोगों की हत्याएं हुई हैं। पहली हत्या तो स्वर्ण मंदिर में ग्रंथ साहब के पास पहुंचने वाले एक नौजवान की हुई है जो कि बहुत बुरे हाल में दिख रहा था, उसे वहां मौजूद सिख संगत के लोगों ने पीट-पीटकर मार डाला। इसके बाद पंजाब के एक और शहर कपूरथला में एक गुरुद्वारे में कुछ गलत हरकत करने के आरोप में एक और नौजवान को पहले तो पुलिस ने पकड़ा और फिर पुलिस से छीनकर उसे भीड़ ने मार डाला। बाद में कपूरथला पुलिस ने ही यह साफ किया कि न कोई बेअदबी हुई, और न ही इस आदमी ने कुछ किया था।
इस बारे में जब देश के एक प्रमुख टीवी समाचार चैनल एनडीटीवी ने पंजाब के बहुत से नेताओं और शिरोमणि गुरुद्वारा कमेटी के अध्यक्ष से बात करके यह जानना चाहा कि गुरु ग्रंथ साहब की बेअदबी तो बहुत ही निंदनीय है, लेकिन ऐसे शक में पकड़े गए लोगों को पीट-पीटकर मार डालने पर उनका क्या कहना है? इस पर कांग्रेस के पंजाब अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू तो आग उगलते हुए मंच और माइक से कह रहे हैं कि जो ऐसी बेअदबी कर रहा है उसे देश की सबसे कड़ी सजा मिलनी चाहिए और चौराहे पर फांसी लगानी चाहिए। पंजाब चुनाव के मुहाने पर खड़ा हुआ है इसलिए वहां के दूसरे राजनीतिक दल बहुत पीछे तो रह नहीं सकते थे, और उन्होंने भी तकरीबन इसी अंदाज में बयान दिए हैं और भीड़त्या की कोई भी निंदा करने से इंकार कर दिया है। हर किसी को यह लग रहा है कि गुरु ग्रंथ साहब का अपमान एक व्यक्ति पर हमला है और आत्मरक्षा के लिए कोई भी कार्रवाई की जा सकती है। अकाली दल के प्रवक्ता पेशे से वकील भी हैं और उन्होंने दुनिया भर की धाराएं भी गिना दीं कि ग्रंथ साहब पर हमला होने पर आत्मरक्षा में कौन-कौन सी कार्यवाही की जा सकती है। पंजाब की किसी भी प्रमुख पार्टी के नेता ने भीड़ की ऐसी हिंसा और मौके पर लोगों को शक में मार डालने के खिलाफ एक शब्द भी बोलना मंजूर नहीं किया है, न ही शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने।
यह एक बड़ी खतरनाक नौबत है कि जब देश के राजनीतिक दल सार्वजनिक और सामूहिक हिंसा के खिलाफ कुछ भी बोलने से कतराएं, और साथ ही उसे जायज बताने के लिए बहस करने लगें। और कांग्रेस के सिद्धू ने तो बाकी सबको पीछे छोड़ दिया और चौराहे पर फांसी पर टांगने की मांग कर डाली। इन तमाम बातों का नतीजा यह होगा कि पंजाब में अगर दोबारा ऐसी कोई नौबत आती है कि जब लोगों को यह संदेह हो कि धर्म ग्रंथ का या धर्म का कोई अपमान हो रहा है तो कोई भी भीड़ मौके पर ही अपने अंदाज का इंसाफ करने में लग जाएगी। हालत यह है कि स्वर्ण मंदिर में जिस नौजवान की हत्या हुई उसके बारे में चुप्पी साधकर मुख्यमंत्री से लेकर बाकी तमाम लोगों ने बार-बार यह बयान दिए कि इसके पीछे, गुरु ग्रंथ साहब के अपमान की कोशिश के पीछे, कौन सी साजिश थी उसका पता लगाना चाहिए। सवाल यह उठता है कि किसी संदिग्ध को मार देने के बाद कौन सी साजिश का पता लग सकता है? अगर और किसी वजह से न भी किया जाए, तब भी साजिश की जांच का पता लगाने के लिए तो संदिग्ध व्यक्ति को जिंदा बचाना चाहिए। किसी भी जुर्म को अगर बड़ा माना जा रहा है, तो उस सिलसिले में पकड़ाए गए व्यक्ति को भी बड़ा संवेदनशील मानकर उसे बचाना चाहिए और सजा देने का काम कानून के जिम्मे छोडऩा चाहिए।
धर्म के नाम पर और धर्म का नाम लेते हुए कत्ल जैसी सार्वजनिक घटना की जाए, और उस पर किसी को कोई अफसोस भी न हो। जब राज्य के मुख्यमंत्री ही अपने पहले बयान में इसे एक साजिश मानते हैं और पुलिस को गहराई से जांच करने कहते हैं, लेकिन अपने राज में हुई इस हत्या पर उन्हें न अफसोस है और न ही पुलिस को वह हत्यारों का पता लगाने के लिए कहते हैं। भयानक नौबत यह है कि राज्य का कोई भी राजनीतिक दल इन दोनों भीड़त्याओं को देखना भी नहीं चाह रहा उस बारे में कुछ बोलना भी नहीं चाह रहा। आज नौबत यह है कि पंजाब में किसी भी गुरुद्वारे के आसपास कोई भी विचलित व्यक्ति अगर संदिग्ध हालत में मिले तो उसे मारने के लिए भीड़ आनन-फानन जुट जाएगी। जबकि लंबा इतिहास यह है कि जब लोगों को खाने कहीं कुछ नहीं मिलता है तो वे गुरुद्वारे पहुंचकर लंगर पाने की उम्मीद करते आए हैं, और यह कौम चारों तरफ मुसीबत में दूसरों की मदद करते आई है। जब वह मुस्लिमों को नमाज पढऩे के लिए जगह नहीं मिलती है, तो कई जगहों पर अपने गुरुद्वारों को उनके लिए खोल देते हैं। अब ऐसे में जिन दो लोगों को मार डाला गया है, वे सिख पंथ के अपमान के लिए आए थे या गुरु ग्रंथ साहब को नुकसान पहुंचाने के लिए आए थे, ऐसा कोई भी सुबूत नहीं है, और कि यह दोनों ही लोग मानसिक रूप से विचलित हैं, और उन्हें खुद नहीं पता होगा कि वह क्या कर रहे थे। स्वर्ण मंदिर में ग्रंथ साहब के करीब तक पहुंचने वाले व्यक्ति को जब पकड़ कर वहीं के एक ऑफिस में ले जाया गया तो उस आदमी को यह भी नहीं मालूम था कि वह खुद कौन है। वह जाहिर तौर पर एक बहुत ही कमजोर और विचलित व्यक्ति दिख रहा था जिसे बात की बात में मार डाला गया। यह सिलसिला खतरनाक है। ऐसे कामों से किसी धर्म का सम्मान नहीं बढ़ता। दुनिया की मुसीबत में अलग-अलग तमाम देशों में सिख लोग सबसे आगे बढक़र दूसरों की मदद करते हैं। उन्हें जगह-जगह ऐसी समाज सेवा के लिए वाहवाही भी मिलती है। लेकिन धर्म ग्रंथ की रक्षा के नाम पर अगर आनन-फानन सिर्फ शक के आधार पर किसी संदिग्ध को मार डाला जाएगा तो यह दुनिया के कौन से पैमाने पर इंसाफ कहलाएगा?
पंजाब के राजनीतिक और धार्मिक तमाम लोगों को इस खतरे के बारे में सोचना चाहिए जिसे कि वे आज चुनावी माहौल को देखते हुए बढ़ावा देने पर आमादा हैं। अगर खून-खराबा सिर्फ शक के आधार पर बिना किसी जांच और न्यायिक प्रक्रिया के होते चलेगा, तो वह उस प्रदेश में लोकतंत्र का खात्मा भी होगा। आज वहां पर तमाम राजनीतिक दलों के लोगों को यह शिकायत है कि इसके पहले जहां-जहां ग्रंथ साहब की बेअदबी हुई है, उन मामलों में पिछले कई वर्षों में कोई कार्यवाही नहीं हुई, किसी को सजा नहीं मिली। अब अगर पिछले मामलों में कोई गुनहगार नहीं पकड़ाया है तो उसका यह मतलब तो नहीं कि आज शक के आधार पर जो पकड़ा गया है उसे ही दुनिया की सबसे भयानक सजा दे दी जाए। पंजाब में सक्रिय देश के तमाम राजनीतिक दलों को एक जिम्मेदारी दिखानी होगी और आज जिस तरह से वे लोगों से शांति की अपील करने के लिए भी तैयार नहीं है, वह खतरनाक रुख बदलना होगा। वरना ऐसी धार्मिक और सार्वजनिक हिंसा बढ़ते-बढ़ते कहां पहुंचेगी इसका कोई ठिकाना तो है नहीं।
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