साहित्य/मीडिया
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रवींद्रनाथ टैगोर का जन्म 7 मई 1861 को कोलकाता के जोड़ासांको ठाकुरबाड़ी में हुआ था. उन्हें गुरुदेव के नाम से भी जाना जाता है. आपको बता दें कि गुरुदेव विश्वविख्यात कवि, मशहूर साहित्यकार, दार्शनिक और भारतीय साहित्य के नोबल पुरस्कार विजेता हैं. उनकी दो रचनाएं 2 देशों का राष्ट्रगान बनीं. भारत का राष्ट्र-गान ‘जन गण मन’ और बांग्लादेश का राष्ट्रीय गान ‘आमार सोनार बांग्ला’ रवींद्रनाथ टैगोर ने ही लिखा था.
गीतांजलि
मेरा मस्तक अपनी चरणधूल तले नत कर दो
मेरा मस्तक अपनी चरण्ढूल तले नत कर दो
मेरा सारा अहंकार मेरे अश्रुजल में डुबो दो।
अपने मिथ्या गौरव की रक्षा करता
मैं अपना ही अपमान करता रहा,
अपने ही घेरे का चक्कर काट-काट
मैं प्रतिपल बेदम बेकल होता रहा,
मेरा सारा अहंकार मेरे अश्रुजल में डुबो दो।
अपने कामों में मैं अपने प्रचार से रहूँ दूर
मेरे जीवन द्वारा तुम अपनी इच्छा पूरी करो, हे पूर्ण!
मैं याचक हूँ तुम्हारी चरम शांति का
अपने प्राणों में तुम्हारी परम कांति का,
अपने हृदय-कमल दल में ओट मुझे दे दो,
मेरा सारा अहंकार मेरे अश्रुजल में डुबो दो।
विपदा से मेरी रक्षा करना
विपदा से मेरी रक्षा करना
मेरी यह प्रार्थना नहीं,
विपदा से मैं डरूँ नहीं, इतना ही करना।
दुख-ताप से व्यथित चित्त को
भले न दे सको सान्त्वना
मैं दुख पर पा सकूँ जय।
भले मेरी सहायता न जुटे
अपना बल कभी न टूटे,
जग में उठाता रहा क्षति
और पाई सिर्फ़ वंचना
तो भी मन में कभी न मानूँ क्षय।
तुम मेरी रक्षा करना
यह मेरी नहीं प्रार्थना,
पार हो सकूँ बस इतनी शक्ति चाहूँ।
मेरा भार हल्का कर
भले न दे सको सान्त्वना
बोझ वहन कर सकूँ, चाहूँ इतना ही।
सुख भरे दिनों में सिर झुकाए
तुम्हारा मुख मैं पहचान लूंगा,
दुखभरी रातों में समस्त धरा
जिस दिन करे वंचना
कभी ना करूँ, मैं तुम पर संशय।
कितने अनजानों से तुमने करा दिया मेरा परिचय
कितने अनजानों से तुमने करा दिय मेरा परिचय
कितने पराए घरों में दिया मुझे आश्रय।
बंधु, तुम दूर को पास
और परायों को कर लेते हो अपना।
अपना पुराना घर छोड़ निकलता हूँ जब
चिंता में बेहाल कि पता नहीं क्या हो अब,
हर नवीन में तुम्हीं पुरातन
यह बात भूल जाता हूँ।
बंधु, तुम दूर को पास
और परायों को कर लेते हो अपना।
जीवन-मरण में, अखिल भुवन में
मुझे जब भी जहाँ गहोगे,
ओ, चिरजनम के परिचित प्रिय!
तुम्हीं सबसे मिलाओगे।
कोई नहीं पराया तुम्हें जान लेने पर
नहीं कोई मनाही, नहीं कोई डर
सबको साथ मिला कर जाग रहे तुम-
मैं तुम्हें देख पाऊँ निरन्तर।
बंधु, तुम दूर को पास
और परायों को कर लेते हो अपना।(साभार-कविता कोश)