संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : मुगलों की निशानी ताजमहल से तालिबानी अंदाज़ में क्यों नहीं निपटना चाहिए?
29-Dec-2021 2:37 PM
 ‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय :  मुगलों की निशानी ताजमहल से तालिबानी अंदाज़ में क्यों नहीं निपटना चाहिए?

नफरत नजरों को छीन लेती है। कुछ लोगों की नजरों को तो कुदरत छीनती है लेकिन नफरत उनकी नजरों को भी छीन लेती है जिन्हें कुदरत ने नजरें दी हुई है। नतीजा यह होता है कि ना हकीकत दिखाई पड़ती, और न दिमाग उस मुताबिक काम करता। उत्तर प्रदेश सरकार में पूरे प्रदेश का भगवाकरण करने की मुहिम इस हद तक बढ़ गई है कि मुस्लिम विरोध की नफरत उसकी सोच-समझ को पूरी तरह खत्म कर बैठी है। एक-एक कर अलग-अलग शहर-मोहल्ले और सडक़ों के नाम बदलते हुए सरकार का दिमाग ही खत्म हो गया है। या फिर यह भी हो सकता है कि पूरे का पूरा दिमाग बाकी मुस्लिम नामों को तलाश करने में लगा हुआ होगा कि अगला नाम क्या बदला जाए। इलाहाबाद का नाम बदलकर प्रयागराज रख देना तो हिंदूकरण का अंत होना चाहिए था, लेकिन बात वहां पर थमी नहीं। राज्य सरकार की वेबसाइट देखें तो उस पर प्रयागराज के बारे में सामान्य जानकारी यह मिलती है कि इस शहर के अकबर प्रयागराजी एक प्रमुख आधुनिक शायर थे, और तेग प्रयागराज, राशिद प्रयागराज जैसे और शायरों की जगह प्रयागराज ही थी। अगर उर्दू साहित्य में इन नामों को तलाशा जाए तो इनका लिखा हुआ एक शेर ना मिले, शेर तो शेर, सियार या लोमड़ी भी ना मिले। इसलिए कि अकबर प्रयागराजी अकबर इलाहाबादी थे, और तेग प्रयागराज, तेग इलाहाबादी थे, और राशिद प्रयागराज, राशिद इलाहाबादी थे। उत्तर प्रदेश सरकार के उच्च शिक्षा विभाग की वेबसाइट इन उर्दू शायरों के नाम को प्रयागराज ही बना कर पेश कर रही है। पता नहीं कब्र में अकबर इलाहाबादी किस तरह बेचैनी से करवट बदल रहे होंगे।

नफरत के इस सिलसिले ने चीजों के हिंदूकरण कि यह पराकाष्ठा पेश की है जिसमें लोगों के नामों को बदलकर उनका हिंदूकरण किया जा रहा है। अब कृष्ण के बारे में लिखने वाले अनगिनत मुस्लिम शायरों और कवियों के नाम का हिंदूकरण अभी बाकी ही है, और पता नहीं कबीर को कौन सा नाम अलॉट किया जाएगा, शायद वे अब कृष्णवीर कहलायेंगे। आमतौर पर किसी राज्य सरकार का अमला भी इस दर्जे का बेवकूफ नहीं होता है कि जिंदा या मरे हुए शायरों के नाम को वह अपने बदले हुए शहरों के नाम के मुताबिक बदल दे, लेकिन उत्तर प्रदेश की बात अनोखी है, वहां पर मुस्लिम नामों और मुस्लिमों से नफरत इस हद तक बढ़ गई है कि उसने सरकारी अमले की अक्ल पर भी पर्दा डाल दिया है। दुनिया के इतिहास में इस दर्जे की घटिया हरकत और बेवकूफी का मिलाजुला मेल शायद ही कहीं और देखने मिलेगा। लेकिन अच्छा है इतिहास में नफरत और बदनीयत को इसी तरह साफ-साफ दर्ज होना चाहिए।

उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ की सरकार को भगवा रंग से अपनी मोहब्बत और हरे रंग से अपनी नफरत के चलते हुए अब कुछ काम और करने चाहिए। अपने प्रदेश के कृषि वैज्ञानिकों को लगाकर भगवे और केसरिया रंग की फसलें तैयार करनी चाहिए और पेड़-पौधों के हरे रंग को भी बदलकर भगवा-केसरिया करने का विज्ञान ढूंढना चाहिए। इसके अलावा योगी सरकार को अपने प्रदेश की महिलाओं का पूरा भारतीयकरण करने के लिए उनके उबटन की मुल्तानी मिट्टी पर रोक लगानी चाहिए क्योंकि वह तो पाकिस्तान के मुल्तान से आती है, हिंदू त्योहारों के उपवास के खाने में काले नमक या सेंधा नमक के इस्तेमाल पर भी रोक लगानी चाहिए क्योंकि यह भी पाकिस्तान से आता है, और हिंदुस्तान में नहीं होता। रामलला के मंदिर से लेकर बाकी मंदिरों तक तमाम जगहों पर केसर के इस्तेमाल पर रोक लगानी चाहिए क्योंकि इसे कश्मीर की वादियों में मुस्लिम उगाते हैं, और वही इसे इक_ा करके बेचते हैं। फिर अफगानिस्तान से आने वाले मेवे पर भी रोक लगानी चाहिए क्योंकि वह भी तालिबानी सरकार के मातहत आने वाला एक मुस्लिम देश है और मुस्लिम हाथों के बिना कोई मेवा हिंदुस्तान पहुंच नहीं पाता। हाल के बरसों में थोड़ा बहुत मेवा अमेरिका से भी आता है और कैलिफोर्निया ब्रांड सहित कुछ दूसरे मेवे बाजार में दिखाई पडऩे लगे हैं, लेकिन यह जाहिर है कि वहां पर भी ऐसे बागानों के मजदूर गौमांस खाने वाले लोग हैं, इसलिए उनके छुए हुए सामान को तो बिल्कुल भी इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। योगी सरकार को अपनी धार्मिक शुद्धता कायम रखनी चाहिए और दुनिया के किसी भी गौभक्षक देश से न तो मोबाइल फोन आने देने चाहिए, और ना ही कंप्यूटर। अभी जो मेट्रो शुरू हो रही हैं, और जो एयरपोर्ट बनने जा रहे हैं, उनके सामान भी किसी गौभक्षक देश से नहीं आने देने चाहिए। योगी आदित्यनाथ एक बहुत मजबूत नेता है और वह बिना गौभक्षकों के अपनी सरकार को, अपने प्रदेश को अच्छी तरह चला सकते हैं। प्रदेश की लाइब्रेरी से ऐसी तमाम किताबों को हटा देना चाहिए जो किसी वक्त किसी इलाहाबादी, बाराबंकवी, लखनवी, कानपुरी की लिखी हुई होंगी, और अब अगर उनके नए संस्करण उत्तर प्रदेश में बेचने हैं तो उन्हें प्रयागराजी जैसे नाम से दोबारा छापा जाए तो ही उन्हें बिकने दिया जाए। उत्तर प्रदेश को धार्मिक शुद्धता की एक मिसाल बनाकर पेश करना चाहिए और योगी आदित्यनाथ इसकी पूरी क्षमता रखते हैं। फिर संसद में भाजपा को श्राप देने वाली जया बच्चन के ससुर हरिवंश राय बच्चन के लिखे हुए को भी बदलने का वक्त है जिसमें प्रयागराज को इलाहाबाद कहकर जगह-जगह बदनाम किया गया है। उनकी किताबों को भी प्रदेश के बाहर करने का अब सही वक्त, और मौका है।  

योगी आदित्यनाथ एक मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति से संपन्न नेता हैं। और उन्हें उत्तर प्रदेश के खेतों में किसी भी हरी फसल को इजाजत नहीं देनी चाहिए। हरा रंग एक किसी धर्म से जुड़ा हुआ दिखता है, और योगीराज में ऐसी फसलें ठीक नहीं हैं। वहां पर लाल-केसरिया टमाटर के ऐसे पौधों को ही छूट मिलनी चाहिए जिनके पत्ते भी भगवा केसरिया, पीले या लाल रंग के हैं। ऐसा अगर तुरंत नहीं हो पाता है तो भी किसानों पर यह बंदिश लगानी चाहिए कि वह गोरखपुर के शहरी अफसरों से भगवा रंग लेकर अपनी फसलों को रंगें, तभी उन्हें पकने का मौका दिया जाएगा। और उत्तर प्रदेश को तो यह फैसला भी लेना चाहिए कि एक मुस्लिम के बनाए हुए ताजमहल को राज्य में रहने की छूट दी जाए या नहीं? अभी-अभी तो भाजपा के एक किसी बड़े मंत्री ने यह बयान दिया था कि ताजमहल बनाने वाले कारीगरों के हाथ काट दिए गए थे। जिस निर्माण के बाद मजदूरों और कारीगरों के हाथ काट दिए गए हैं, उस निर्माण को, और खासकर उस मकबरे को वहां पर रहने की इजाजत कैसे दी जा सकती है? ऐसे मामलों में धर्म के आधार पर राज करने वाले तालिबान ने एक मिसाल पेश की है कि उन्होंने अफगानिस्तान से बुद्ध की आसमान छूती प्रतिमा को बमों से उड़ा कर चूर-चूर कर दिया। अब अगर ताजमहल को यह सरकार ना उड़ा सके तो यह तो तालिबानों के मुकाबले कमजोर सरकार साबित होगी। योगी आदित्यनाथ और चाहे जो भी हों, एक कमजोर नेता तो बिल्कुल नहीं हैं, और उत्तर प्रदेश के पर्यटन नक्शे को देखें तो राज्य भर में मुस्लिम शासकों की बनाई हुई ऐसी ढेर सारी इमारतें हैं जिन्हें उड़ाना चाहिए। और यह काम अगर योगी आदित्यनाथ जैसा मजबूत नेता नहीं कर सकेगा, तो फिर तो आगे और कोई भी नहीं कर सकेगा।

उत्तर प्रदेश में एक आसार है कि चुनाव कुछ महीने आगे बढ़ जाएं ऐसे में योगी आदित्यनाथ को प्रयागराजी अमरूदों को इलाहाबादी अमरूद कहने पर सजा का इंतजाम करना चाहिए, और जितने किस्म के शायर और लेखक मुस्लिम उपनाम वाले हैं, उन्हें भी कोई ना कोई हिंदू उपनाम देना चाहिए ताकि कहीं भी उत्तर प्रदेश का शासन अफगानिस्तान के शासन के मुकाबले कमजोर न गिना जाए। कब्रिस्तानों में शायरों की कब्र में इतनी बेचैनी भर देने की जरूरत है कि वे सब कफन फाडक़र निकलें, और माइकल जैक्सन के गाने की दफन लाशों की तरह इलाका छोडक़र चले जाएँ।
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