संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : नए साल का मौका कुछ छोडऩे और कुछ पकडऩे का भी होता है
31-Dec-2021 5:19 PM
 ‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय :  नए साल का मौका कुछ छोडऩे और कुछ पकडऩे का भी होता है

नए साल का मौका एक वक्त तो डायरी कैलेंडर बदलने का रहता था, लेकिन अब तो मोबाइल फोन ने डायरी और कैलेंडर दोनों की जरूरत को खत्म कर दिया है। नतीजा यह है कि शायद ही कोई डायरी और कैलेंडर आते होंगे, या उसका इस्तेमाल करते होंगे। ऐसे में बाकी तमाम चीजें ज्यों की त्यों बनी रहतीं, अगर कोरोना का हमला नहीं हुआ रहता। आज हालत यह है कि बहुत सी जगहों पर सरकारी हुक्म से, और बहुत सी जगहों पर अपनी मर्जी से भी, लोग नए साल के जश्न से दूर हैं। लेकिन फिर भी मोबाइल फोन की मेहरबानी से लोग एक-दूसरे को बहुत से संदेश भेज रहे हैं, और कुछ डिजाइनें घूम-घूमकर बहुत से लोगों की तरफ से आ रही हैं। लोगों के पास वक्त भी कम रहता है और कल्पनाशीलता भी कम, इसलिए लोग किसी की गढ़ी हुई डिजाइन को आगे बढ़ाते रहते हैं, या किसी के बनाए हुए संदेश को। लेकिन यह मौका बहुत से लोग अपने-आपको धोखा देने के लिए भी इस्तेमाल करते हैं। नया साल नए वायदों और नई कसमों का वक्त भी रहता है, और लोग कई किस्म के संकल्प लेते हैं। इनमें से बहुत से संकल्प तो किसी नशे से पीछा छुड़ाने के होते हैं, लेकिन कुछ और खाने-पीने की नुकसानदेह चीजों को छोडऩे के रहते हैं, तो बहुत से उत्साही लोग नए साल से सुबह-शाम की सैर, कसरत, योग, या जिम शुरू करने  की कसमें भी खाते हैं। बुरी आदतों को छोडऩा, और अच्छी आदतों को शुरू करना, यह नए साल के मौके पर सबसे लोकप्रिय कसमें रहती हैं, और इन्हीं के मार्फत लोग अपने-आपको धोखा देते हैं। फिर भी दो-चार फीसदी लोग भी अगर इन पर कायम रहते हैं तो वे अपने नए साल को सचमुच चमकता हुआ नया साल बना सकते हैं।

बुरी आदतों को छोडऩा और अच्छी आदतों को शुरू करना, दोनों में से अधिक मुश्किल कौन रहता है, यह सोच पाना आसान नहीं है. हो सकता है कि इन दोनों के बीच कड़ा मुकाबला रहता हो, और एक ड्रॉ की नौबत आती हो। फिर भी इन दोनों की कोशिश करना चाहिए क्योंकि किसी के लिए इन दोनों में से किसी एक ही को छांटने की मजबूरी तो रहती नहीं है, लोग इन दोनों को अगर साथ-साथ करें तो इन्हें खुद एक-दूसरे से बढ़ावा भी मिलता है. हम कुछ तो अपने खुद के तजुर्बे से यह नसीहत देने की हालत में हैं कि जब कभी समझदारी आती है, वह अकेले नहीं आती, सहेलियों के साथ आती है। लोग किसी एक मामले को लेकर जिम्मेदार नहीं होते हैं अगर वह खाने-पीने को लेकर जिम्मेदार बनते हैं, तो वे अपने आप सैर, कसरत या योग के लिए भी जिम्मेदार हो जाते हैं। इसी तरह जो लोग कसरत या योग शुरू करते हैं, वे लोग अपने-आप खाने-पीने को लेकर चौकन्ने हो जाते हैं। और ये दोनों बातें एक-दूसरे से बड़ी गहराई से जुड़ी हुई इसलिए हैं कि एक पर ध्यान देते ही दूसरे का महत्व समझ आने लगता है। इसलिए लोगों को तुरंत ही इन दोनों में से किसी एक को पकडऩा चाहिए तो दूसरी बात अपने-आप साथ चलने लगती है।

 आज तो टेक्नोलॉजी की मेहरबानी से बहुत सी चीजें आसान हो गई हैं। तकरीबन हर किसी के हाथ में एक मोबाइल फोन रहता ही है और मोबाइल फोन पर मुफ्त के दर्जनों ऐसे एप्लीकेशन हासिल हैं जो कि आपके पैदल चलने, दौडऩे, या साइकिल चलाने का हिसाब-किताब रखते हैं आपकी रफ्तार बताते हैं, आपकी तय की हुई दूरी बताते हैं, और हर हफ्ते या हर दिन आपके पिछले रिकॉर्ड के मुकाबले ताजा रिकॉर्ड की तुलना करके भी आपके सामने रखते हैं। इसमें कोई खर्च नहीं होता है। एक बार यह सिलसिला शुरू हो जाए तो उत्साह बने रहता है और जो लोग इस सफर पर बढ़ निकलते हैं, उनका यह भी मिजाज होने लगता है कि वे उठते-बैठते दूसरे लोगों से अपने फिटनेस की चर्चा करने लगते हैं। फिटनेस का ख्याल रखते हुए लोगों को यह समझ आता है कि एक दिन पहले खाई हुई मिठाई का नुकसान घटाने के लिए कितने किलोमीटर पैदल चलना पड़ेगा, यह याद आते ही लोगों को हर बार मिठाई सामने आते ही किलोमीटर याद आने लगते हैं। इस तरह खानपान और फिटनेस इन दोनों की एक यारी है जो कि साथ-साथ चौकन्ना होकर चल सकती है, या कि साथ-साथ लापरवाह होकर।

लोगों को नए साल के इस मौके पर हम यही नसीहत या सलाह देना चाहते हैं कि वे अगर अपने खुद पर हर दिन एक-दो घंटे खर्च करने का फैसला लें, तो उनका तन और मन भी ऐसा फैसला लेंगे कि वे उनकी जिंदगी को इन खर्च किए हुए घंटों से कई गुना अधिक बढ़ा दें। इस बात के महत्व को समझने की जरूरत है कि लोग निठल्ले हों, या जरूरत से ज्यादा व्यस्त रहते हों, सबके पास अपने ऊपर खर्च करने के लिए दिन में एक-दो घंटे रहने चाहिए। यह एक किस्म का पूंजी निवेश होता है जिसका नफा कुछ महीनों के भीतर ही बढ़ी हुई ताकत और बढ़ी हुई ऊर्जा की शक्ल में मिलने लगता है। यह भी याद रखने की जरूरत है कि सेहत का ख्याल न रखने से जितने किस्म की बीमारियां घर कर जाती हैं, वे बीमारियां दिवाला भी निकाल सकती हैं, और दिवाली का मजा भी खत्म कर सकती हैं, जिंदगी की उत्पादकता भी घटा सकती हैं, और उम्र तो घटती ही है। इसलिए अपनी सेहत को बेहतर रखने के लिए हर दिन 1-2 घंटों का पूंजी निवेश सबसे अधिक फायदा देने वाला म्यूच्युअल फंड है, इस बात को याद रखते हुए सुबह-शाम वक्त निकालने का सिलसिला शुरू भर करना होता है, और कुछ ही महीनों में वह जिंदगी का सबसे मजेदार हिस्सा बन जाता है। जो लोग सुबह-शाम पैदल चलना या दौडऩा नहीं करते हैं, जो योग-ध्यान या कसरत नहीं करते हैं, उन्हें यह अंदाज भी नहीं रहता कि यह कोई यातना-प्रताडऩा नहीं है, एक बहुत ही मजे और सुख का सिलसिला है जिसका स्वाद विकसित होने में कुछ महीनों का समय जरूर लग सकता है।

नए साल के इस मौके पर यह भी समझने की जरूरत है कि लोग अपनी अगली पीढ़ी के लिए कारोबार खड़ा कर जाते हैं, मकान बना जाते हैं, गहने और बैंक डिपॉजिट छोड़ जाते हैं। इनमें से कोई भी चीज अगली पीढ़ी के लिए इतने काम की नहीं रहती, जितने काम की उनकी सेहत हो सकती है। और उन पर अच्छी सेहत की कोई भी नसीहत इतना असर नहीं कर सकती जितना कि आप अपनी मिसाल सामने रखकर डाल सकते हैं। जो लोग अपनी फिटनेस और अपनी सेहत पर ध्यान देते हैं, और मेहनत करते हैं, वे अपनी अगली पीढ़ी की बेहतर सेहत की एक किस्म से गारंटी भी कर जाते हैं। परिवार में किसी एक का फिट रहना बाकी लोगों के लिए बिन बोली चुनौती सरीखा रहता है और उसका असर होता ही होता है। लोग अपने परिवार से परे, अपने दोस्तों के बीच, अपने दफ्तर और पड़ोस के लोगों के बीच, एक मिसाल की तरह रहते हैं, अच्छे कामों के लिए भी, और बुरे कामों के लिए भी। इसलिए नए साल के इस मौके पर लोगों को नशे और बुरी आदतों को छोडऩा तो तय करना ही चाहिए, और इसके साथ-साथ अच्छे खान-पान और बेहतर जीवन शैली का संकल्प भी लेना चाहिए। आज बीमारियां इतनी जानलेवा और इतनी महंगी हो रही हैं कि उनसे जूझ पाना हर किसी के बस का नहीं रह गया है। किसी बीमारी के होने से बच जाना ही सबसे अच्छा इलाज है। इसलिए जीवन शैली से होने वाली अनगिनत जानलेवा बीमारियों से बचने का सबसे सस्ता और आसान रास्ता है बिना किसी खर्च वाली ऐसी जीवन शैली को अपना लेना जिसमें आसान सी कसरत करके, पैदल चलकर, और दौडक़र, योग और ध्यान करके, और सेहतमंद चीजें खाकर अपने को अधिक उत्पादक बनाकर रखना और बीमारियों से दूर रखना। आज के दिन इससे अधिक जरूरी बात हमें और कोई नहीं सूझ रही है और इसे अधिक नैतिक अधिकार से कहने का दमखम आज इसलिए है कि पिछले कई महीनों से हमने ऐसी बेहतर जीवन शैली का अनुभव किया है और उसका फायदा देखा है। इससे सस्ता और इससे अधिक सुखद और कोई काम नहीं हो सकता, बस यही है कि इसका टेस्ट डेवलप होने में कुछ हफ्तों या कुछ महीनों का समय लग सकता है।
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