संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : इस मुल्क को सभ्य होने में कई सदियां लगेंगी
15-Jan-2022 4:54 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : इस मुल्क को सभ्य होने में कई सदियां लगेंगी

अमेरिकी संसद ने अभी एक 14 बरस के ब्लैक लडक़े और उसकी मां को अपना सर्वोच्च नागरिक सम्मान, कांग्रेसनल मेडल देने की घोषणा की है। इस लडक़े की मौत 67 साल पहले एक हत्या का शिकार होकर हुई थी, और उसकी साहसी आंदोलनकारी मां की मौत अभी 2003 में हुई। इस काले लडक़े की जिस तरह से नस्लवादी हत्या हुई थी और उसके पीछे जिस तरह से गोरे लोग थे, उसे देखते हुए अमेरिका के अश्वेत या काले समुदाय में एक बड़ा नागरिक आंदोलन शुरू हुआ था। अपने बेटे की हत्या के बाद इस साहसी मां ने उसके तहस-नहस किए हुए शव को ताबूत में बंद नहीं करने दिया था ताकि पूरी दुनिया उसके बदन के बदहाल को देख ले। इस लडक़े की लाश की तस्वीरें चारों तरफ फैलीं, और उसने अमेरिका में अश्वेतों के नागरिक अधिकारों के आंदोलन को एक मजबूती दी। अश्वेत समुदाय के इसी आंदोलन में ऐतिहासिक योगदान के लिए आज इस लडक़े और उसकी मां को अमेरिकी संसद ने अपना सर्वोच्च सम्मान दिया है।

 इस मामले को अमेरिका के बाहर भी समझने की जरूरत है कि किस तरह कोई एक अकेली घटना पूरे देश की चेतना को हिलाकर रख सकती है, अगर वहां पर बसे हुए नागरिकों में चेतनासंपन्न लोग रहते हैं। और अगर लोग संघर्ष करने को तैयार हैं तो कोई एक मामूली सी लगती हुई घटना भी किस तरह इतिहास को बदलने वाला आंदोलन खड़ा कर सकती है। हम इसकी ठीक-ठीक मिसाल तो हिंदुस्तान में नहीं याद कर पा रहे हैं, लेकिन इस किस्म की छोटी सी एक घटना दिल्ली में दो बच्चों संजय और गीता चोपड़ा भाई-बहनों को लेकर लंबे समय पहले हुई थी जब रंगा-बिल्ला नाम के 2 गुंडों ने इन्हें पकड़ा था और संजय की हत्या कर दी थी और गीता चोपड़ा के साथ बलात्कार करके उसे भी मार डाला था। संजय और गीता चोपड़ा के नाम से कोई सम्मान भी शुरू किया गया था और हिंदुस्तान में रंगा-बिल्ला शब्द उसी दिन से एक बहुत बड़ी गाली की तरह बन गए थे, और शायद ही उसके बाद किसी मां बाप ने अपने घर में किसी बच्चे को भी ऐसे घरेलू नाम से बुलाया होगा। इसके बाद अभी पिछले दशक में दिल्ली में ही निर्भया कांड हुआ, जिसमें एक सामूहिक बलात्कार और भयानक हिंसा, हत्या की शिकार एक युवती को लेकर पूरे देश की चेतना इस तरह हिल गई कि निर्भया बलात्कार की शिकार लडक़ी के नाम का एक प्रतीक बन गया और सरकार को निर्भया के नाम पर एक फंड शुरू करना पड़ा, जो कि किसी काम का नहीं रहा क्योंकि उसमें पैसा तो डाला गया लेकिन सैकड़ों करोड़ का खर्च सिर्फ इश्तहारों पर हुआ, किसी लडक़ी की सुरक्षा का कोई इंतजाम उस पैसे से नहीं हो पाया। फिर भी हम दिल्ली की इन दो घटनाओं को याद करते हुए यह भी याद करते हैं कि यह दोनों देश की राजधानी में संसद, केंद्र सरकार, और सर्वोच्च न्यायालय के शहर में होने वाली घटनाएं थीं जहां देश के सबसे अधिक अखबार और टीवी चैनल भी थे, और नतीजा यह था कि इन दोनों की खूब जमकर चर्चा हुई थी, और न सिर्फ सरकार की कार्रवाई बल्कि समाज की प्रतिक्रिया भी उसी अनुपात में हुई थी।

लेकिन हम छत्तीसगढ़ के बस्तर जैसे इलाके को अगर देखें तो जहां राज्य बनने के बाद के इन 20 वर्षों में पुलिस और सुरक्षा बलों के किये दर्जनों बलात्कार के मामले पूरी तरह पुख्ता दर्ज हो चुके हैं, दर्जनों हत्याएं दर्ज हो चुकी हैं, आदिवासियों के गांव के गांव जलाना पूरी तरह से दर्ज हो चुका है, लेकिन अब तक किसी एक को भी इसकी कोई सजा नहीं हुई है। और तो और सजा से परे भी किसी जिम्मेदार पुलिस वाले को कोई विभागीय सजा भी नहीं हुई है। नतीजा यह है कि देश का एक सबसे सरल, सीधा, और अहिंसक समुदाय आज एक तरफ नक्सल धमाकों का शिकार है, और दूसरी तरफ पुलिस और दूसरे सुरक्षाबलों की बंदूक की नोक पर होने वाले बलात्कार और हत्या का शिकार है। लेकिन बारी-बारी से कांग्रेस, भाजपा, और कांग्रेस सरकारें इस राज्य में आ गईं, लेकिन ऐसी अनगिनत हिंसक हत्याओं और बलात्कारों पर कोई कार्यवाही नहीं हुई, जो बातें सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के सामने अच्छी तरह दर्ज हो चुकी हैं, उन पर भी कोई कार्यवाही यहां नहीं हुई है। ऐसे में लगता है कि क्या हिंदुस्तान में आदिवासी समुदाय, दलित समुदाय, या अल्पसंख्यक समुदाय पर होने वाले जुल्म से ऐसी कोई चेतना खड़ी हो सकती है जो एक आंदोलन शुरू कर सके और जो आगे चलकर देश की संसद किसी सम्मान के लायक पा सके?

ऐसे ही मौके पर ऑस्ट्रेलिया जैसे देश याद आते हैं जहां पर शहरी समाज मूल निवासियों के बच्चों को जंगलों से लाकर शहरी परिवारों में और ईसाई हॉस्टलों में उन्हें सभ्य बनाने के नाम पर रखता था और बाद में जब खुद शहरी समाज सचमुच कुछ सभ्य हुआ तो उसने यह पाया कि उसने बच्चों की यह पीढिय़ां वहां के आदिवासियों से चुरा ली थीं, और उसके बाद उन आदिवासियों को संसद में आमंत्रित करके पूरी संसद ने खड़े होकर उनसे माफी मांगी। इस सिलसिले को समझने की जरूरत है कि किस तरह युद्ध की हिंसा को लेकर युद्ध के बाद की ज़्यादतियों को लेकर दुनिया के इतिहास में कोई एक देश दूसरे देशों से भी माफी मांगता है। हिंदुस्तान में 1984 के सिख दंगों को लेकर कांग्रेस पार्टी ने और उसके नेताओं ने उसके प्रधानमंत्री ने माफी मांग ली है, लेकिन इसी देश के इतिहास के वैसे ही बड़े-बड़े कत्लेआम अभी तक दर्ज हैं, और उन पर फख़़्र करने वाले लोग घूम रहे हैं, किसी माफी का तो कोई सवाल ही नहीं उठता। हिंदुस्तान जिस किसी सदी में जाकर सभ्य हो सकेगा, उसके सामने यह तमाम और सुविधाजनक सवाल खड़े रहेंगे कि उसने कौन-कौन सी जातियों को अपने सामने बुरी तरह ख़त्म होते हुए देखा और उनका विरोध नहीं किया। हो सकता है कुछ सौ बरस बाद जाकर उत्तर पूर्वी लोगों से हिंदू संगठन इस बात के लिए माफी माँगें कि उनकी बच्चियों को लाकर हिंदू बहुतायत वाले प्रदेशों में शबरी आश्रम के नाम पर हिंदू संस्कृति में ढाला गया और उन्हें उत्तर-पूर्व के अपने आदिवासी मां-बाप से, उनकी संस्कृति और जमीन से दूर कर दिया गया। इसी तरह इस हिंदुस्तान में इन दिनों किसी नस्ल को मिटा देने की एक खुली चेतावनी दी जा रही है एक धमकी दी जा रही है, और लोगों का आव्हान किया जा रहा है कि 20 करोड़ आबादी वाली एक नस्ल को मिटा दिया जाए। नफरतजीवी ऐसे हिंसक लोगों को तो कभी माफी मांगना सूझ नहीं सकता, लेकिन ऐसे तत्वों के बीच जो लोग देश-प्रदेश की सत्ता पर हैं, और जिनके मुंह भी नहीं खुलते हैं, उनकी आने वाली पीढिय़ों को अगर किसी दिन यह देश सभ्य हो जाएगा, तो उस दिन माफी जरूर माननी पड़ेगी कि उनके पुरखे उस दिन देश-प्रदेश का राज्य चला रहे थे, लेकिन जनसंहार के ऐसे खुले आव्हान के बावजूद चुप रहे, इसलिए आज उनके वंशज होने की हैसियत से लोग माफी मांग रहे हैं। आज जिस तरह हिटलर की ज़्यादतियों और जुल्मों को लेकर पूरा का पूरा जर्मनी शर्मिंदा रहता है, और तरह-तरह से सिर झुकाए रहता है, उसे देखना चाहिए। अमेरिका के इस ताजा संसदीय सम्मान को लेकर यह तमाम बातें मन में उठ रही हैं कि दुनिया में कौन सा ऐसा सभ्य देश है, या कौन सा ऐसा सभ्य समाज है जो अपने ऐतिहासिक जुर्मों को लेकर माफी नहीं मांगता है? लेकिन हिंदुस्तान बाकी सभी देशों से बहुत अलग है यहां तो अब गांधी का कत्ल करने के लिए गोडसे का गौरवगान जोर-शोर से चल रहा है जो कि बढ़ावा भी पा रहा है, और आज की हिंदू संस्कृति भी कहला रहा है। इसलिए हमें लग रहा है कि शायद इस मुल्क को सभ्य होने में कई सदियां लगेंगी।
-सुनील कुमार

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news