सामान्य ज्ञान
ज्ञान की देवी सरस्वती को ही वाग्देवी के रूप में पूजा जाता है। बौद्ध और जैन धर्म में भी वाग्देवी की पूजा-अर्चना का उल्लेख तथा मां शारदा की प्रतिमा अंकन की परंपरा रही है।
बंगाल में विशेष रूप से सरस्वती को पूज्य माना जाता है। सरस्वती का उल्लेख वैदिक साहित्य में एक नदी और एक देवी दोनों रूपों में आता है। भारतीय ज्ञानपीठ न्यास द्वारा भारतीय साहित्य के लिए दिया जाने वाला सर्वोच्च पुरस्कार ज्ञानपीठ पुरस्कार में विजेता पुरस्कार की धनराशि, प्रशस्तिपत्र के अलावा वाग्देवी की कांस्य प्रतिमा दी जाती है।
ज्ञानपीठ पुरस्कार में प्रतीक स्वरूप दी जाने वाली वाग्देवी का कांस्य प्रतिमा मूलत: धार, मालवा के सरस्वती मंदिर में स्थित प्रतिमा की अनुकृति है। इस मंदिर की स्थापना विद्याव्यसनी राजा भोज ने 1035 ईस्वी में की थी। अब यह प्रतिमा ब्रिटिश म्यूजिय़म लंदन में है। भारतीय ज्ञानपीठ ने साहित्य पुरस्कार के प्रतीक के रूप में इसको ग्रहण करते समय शिरोभाग के पाश्र्व में प्रभामंडल सम्मिलित किया है। इस प्रभामंडल में तीन रश्मिपुंज हैं जो भारत के प्राचीनतम जैन तोरण द्वार (कंकाली टीला, मथुरा) के रत्नत्रय को निरूपित करते हैं। हाथ में कमंडलु, पुस्तक, कमल और अक्षमाला ज्ञान तथा आध्यात्मिक अंतर्दृष्टि के प्रतीक हैं।