संपादकीय

दैनिक ‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : परिवारों के भीतर हिंसा और अश्लीलता के बढ़ते खतरे...
25-Mar-2022 5:12 PM
दैनिक ‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : परिवारों के भीतर हिंसा और अश्लीलता के बढ़ते खतरे...

छत्तीसगढ़ के एक जिले जीपीएम में 45 साल की एक महिला की रिपोर्ट पर उसके पति और बेटे को गिरफ्तार किया गया है। उसने शिकायत की थी कि उसका एक न्यूड वीडियो फैलाया जा रहा है, और यह काम उसका पति और बेटा कर रहे हैं। महिला का अपने पति से झगड़ा चल रहा था, और वह मायके चली जाती थी। अभी वह ससुराल लौटी तो 19 बरस के बेटे ने उससे उसका मोबाइल मांगा, और उसमें से उसके कुछ वीडियो निकालकर रिश्तेदारों के बीच फैला दिए। इस महिला के मुताबिक ये वीडियो उसके पति ने ही बनाए थे, और अब उसका चरित्र खराब बताने के लिए पति और बेटा मिलकर उसके वीडियो फैला रहे हैं। इस तरह के दर्जनों मामले हिन्दुस्तान के अलग-अलग हिस्सों से रोज आते हैं जिनमें परिवार के लोग ही बच्चों से बलात्कार करते हैं, एक-दूसरे की हत्या करते हैं या करवाते हैं, या बच्चों को सेक्स के लिए दूसरों को बेच देते हैं, पत्नी को जुए के दांव पर लगा देते हैं। बहुत से ऐसे मामले आते हैं जिनमें कोई महिला अपने प्रेमी की पत्नी को मारने की सुपारी देती है, या कोई नौजवान दोस्तों के साथ मिलकर प्रेमिका के पति को मार डालता है। परिवार के भीतर जितने किस्म की हिंसा और वर्जित माने जाने वाले काम होते हैं, वे हैरान करते हैं। हैरानी दो बातों से होती है, एक तो यह कि इंसानी मिजाज में इतनी हिंसा आती कैसे है, और दूसरी बात यह कि क्या वर्जित और अनैतिक मानी जाने वाली बातों के पैमाने समाज में आज एकदम से खत्म हो चुके हैं?

परिवार के भीतर बच्चों के सेक्स-शोषण के मामले जितने सामने आते हैं उससे शायद सैकड़ों गुना अधिक वे होते हैं लेकिन परिवार अपनी इज्जत की दुहाई देकर और परिवार के लोगों से संबंध जारी रखने के लिए ऐसी बातों को छुपा देते हैं। नतीजा यह होता है कि बलात्कारी परिजन या रिश्तेदार, या पारिवारिक परिचित बेधडक़ हो जाते हैं, और उनका सेक्स-शोषण करने का सिलसिला जारी रहता है, बढ़ते चलता है। परिवार की इज्जत बची रहे इस नाम से घर की महिला भी बाप के बेटी के साथ बलात्कार को भी अनदेखा करती चलती है, और इज्जत से परे रोटी का भी एक मुद्दा रहता है कि अगर आदमी ही परिवार का अकेला कमाऊ सदस्य है, तो उसके बलात्कार को भी अनदेखा करना मजबूरी हो जाती है। बच्चों के यौन शोषण के अधिकतर मामले ऐसे ही होते हैं जिनमें परिवार अपने बच्चों की बात पर भरोसा नहीं करते, या उसे सोच-समझकर अनसुना कर देते हैं। यह सामाजिक निष्कर्ष है कि ऐसे बच्चे आगे चलकर समाज के लिए खतरा बनने की अधिक आशंका रखते हैं।

आज परिवार के भीतर वर्जित संबंधों के पैमाने कमजोर होते चल रहे हैं। एक वक्त परिवार के दो पीढ़ी के लोग, या भाई-बहन साथ बैठकर कोई अश्लील या वयस्क फिल्म या टीवी कार्यक्रम नहीं देखते थे। लेकिन अब यह बात खत्म सी हो गई है, और सभी किस्म के संबंधी साथ बैठकर किसी भी किस्म का कार्यक्रम देख लेते हैं। नतीजा यह होता है कि जिन रिश्तों में एक लिहाज रहना चाहिए था उन रिश्तों के बीच अब नजरों की कोई ओट नहीं रह गई है, और यह नौबत बढ़ते-बढ़ते पारिवारिक संबंधों को कई किस्म से प्रभावित कर रही है। ऐसे में परिवारों के भीतर अनैतिक कहे जाने वाले संबंध भी बढ़ रहे हैं, और परिवार के बाहर के लोगों से भी विवाहेतर संबंधों के मामले बढ़ते जा रहे हैं। ऐसे में परिवार के लोगों को ही यह सावधानी बरतनी चाहिए कि रिश्तों में खतरे की नौबत ही कम आए। यह बात कहना आसान है लेकिन आज जिस तरह से शहरीकरण बढ़ते चल रहा है, परिवार छोटे और अकेले होते जा रहे हैं, परिवार के हर सदस्य बाहर काम करने लगे हैं, लोगों से मिलना-जुलना बढ़ रहा है, टेक्नालॉजी की मेहरबानी से जिंदगी में वयस्क मनोरंजन अश्लीलता और हिंसा की हद तक बढ़ रहा है, तो ऐसे में आग और पेट्रोल मिलकर खतरा तो बनते ही जा रहे हैं। अब मोबाइल फोन पर वीडियो कैमरा शुरू होने के पहले तक यह खतरा तो नहीं था कि मां के फोन पर बेटा उसका नग्न वीडियो देख लेगा। टेक्नालॉजी ने परिवार के लोगों को एक-दूसरे के सामने उघाडक़र भी रख दिया है, और खतरे में भी डाल दिया है।

कुछेक और मामले दिल दहलाने वाले आए हैं जिनमें कहीं मां अपनी बेटी को लोगों के सामने बेच रही है, तो कहीं बाप और भाई मिलकर बेटी के लिए ग्राहक ढूंढ रहे हैं। कुछ लोग इन्हें विचलित और अप्राकृतिक सोच का बतला सकते हैं, लेकिन ये सारे लोग सोच-समझकर ऐसा करने वाले रहते हैं। इसलिए इन्हें मानसिक रोगी होने के संदेह का लाभ देना ठीक नहीं होगा, और इन्हें समाज का एक हिस्सा मानकर चलना ठीक रहेगा, और इनके अस्तित्व को मंजूर करने के बाद ही इनसे बचाव के तरीके सोचे जा सकेंगे। फिलहाल तो इस मुद्दे पर हमारा यहां पर लिखने का मकसद यह है कि आज परिवार और समाज के तमाम लोगों को अपने बारे में भी सावधान रहना चाहिए, और अपने अड़ोस-पड़ोस का भी ध्यान रखना चाहिए कि वहां किसी हिंसा या जुर्म की नौबत तो नहीं आ रही है। लोगों को अपने बच्चों के शिक्षक-प्रशिक्षक के बारे में भी सावधान रहना चाहिए, घर-परिवार में काम करने वाले लोगों के प्रति भी आंखें खुली रखनी चाहिए, और अपने-आप पर भी काबू रखना चाहिए। ऐसे जुर्म बढ़ते चले जा रहे हैं, और उनके मुकाबले सावधानी और अधिक बढऩी चाहिए।
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