राजनीति

भाजपा, तृणमूल का प्रचार यानी कबीर की उलट बांसी
05-Apr-2022 1:18 PM
भाजपा, तृणमूल का प्रचार यानी कबीर की उलट बांसी

  उपचुनाव विशेष रिपोर्ट-6   

आसनसोल से बिकास के शर्मा

आसनसोल संसदीय इलाके में हिंदी भाषी मतदाताओं का प्रतिशत करीब 55 है। मुख्य रूप से जिन दो दलों में टक्कर संसदीय उपचुनाव में देखी जा रही है वैसी भाजपा एवं तृणमूल ने हिंदी भाषी मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के लिए एडी से लेकर चोटी तक एक करने वाला प्रचार अभियान शुरू कर दिया है। जहां एक और राज्य की सत्ताशीन तृणमूल के प्रत्याशी शत्रुघ्न सिन्हा स्वयं एक हिंदी भाषी हैं और प्रचार के दौरान ज्यादातर हिंदी का ही इस्तेमाल कर रहे हैं, वहीं उनके काम चलाऊ बांग्ला भाषा का ज्ञान उनको बांग्ला भाषी मतदाताओं के बीच भी कहीं-न-कहीं स्थापित कर रहा है।

साथ ही भाजपा ने एक बांग्ला भाषी आसनसोल दक्षिण की विधायक अग्निमित्रा पॉल को टिकट देकर अपने पारंपरिक रूप से माने जाने वाले हिंदी वोटरों के साथ-साथ बंगाली समुदाय को भी यह संदेश दिया है कि पार्टी गैर बंगालियों की नहीं बल्कि आपकी अपनी ही है। हालांकि श्रीमती पॉल के समर्थन में दिखाई देने वाले विधायक अजय कुमार पोद्दार, पूर्व मेयर जितेंद्र तिवारी, राजेश सिंहा आदि नेता हिंदी भाषी ही हैं। भाषाई संतुलन में तृणमूल और भाजपा दोनों ही एक दूसरे को मात देने में जुटी हुईं हैं।

पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में तृणमूल को बांग्ला भाषियों का प्रचुर समर्थन मिला था, जिसकी बदौलत वे बहुमत से जीतकर मुख्यमंत्री बनीं। लगातार भाजपा की तरफ खिसकते गैर बांग्ला भाषियों को साधने के लिए ही तृणमूल नेत्री ने एक समय भाजपा के संग रहे केंद्रीय मंत्री एवं अपने जमाने के लोकप्रिय फिल्म अभिनेता शत्रुघ्न सिंहा को लोकसभा उपचुनाव में आसनसोल सीट से उतारा है।

राजनीतिक विश्लेषक दिनेश पांडे की मानें तो भाजपा द्वारा अग्निमित्रा को यूं ही टिकट नहीं दिया गया है अपितु उसके पीछे भगवा दल की सोची समझी रणनीति यह है कि गैर बांग्ला भाषियों के वोट तो भाजपा के संग होते ही हैं और बंगाली महिला को खड़ा करके कुछ प्रतिशत वोट भी ले लिए जाएं तो जीत निश्चित होगी।

श्री पांडेय ने आगे कहा कि तृणमूल द्वारा हिंदी भाषी को और भाजपा द्वारा बांग्ला भाषी नेता को टिकट देना ही आसनसोल सीट को सबसे रोचक बना देता है। लेकिन देश के क्षेत्रीय दलों को अपनी राष्ट्रवादी रणनीति में फंसाने वाली विश्व की सबसे बड़ी पार्टी भाजपा और देश में विपक्ष की मजबूत आवाज बन चुकीं नेत्री ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस के उपचुनाव प्रचार को देखकर कबीर की उलट बांसी याद आती है।

आसनसोल के पिछले दो लोकसभा चुनावों में भाजपा ने जहां हिंदी भाषियों के बीच जमकर काम किया था और तृणमूल केवल बंगाली समुदाय और मुस्लिमों के बीच ही फंसी रह गई इस बार भाजपा का बांग्ला भाषी उम्मीदवार को टिकट देना और प्रचार के लहजे में 'आसनसोल घोरेर मेेयेके चाय' (आसनसोल घर की बेटी को चाहता है) यह मानकर किया जा रहा है कि दो चुनाव में आए हिंदी भाषियों के वोटों के साथ इस बार बंगाली वोट भी भाजपा के साथ रहेगा।

वहीं तृणमूल सुप्रीमो के बंगाल की जमीन का होने के दावे के बीच हिंदी भाषी शत्रुघ्न सिन्हा को टिकट देकर दोनों वोटों का संतुलन बनाया जा रहा है। किंतु राजनीतिक विश्लेषक सह वरिष्ठ पत्रकार डॉ प्रदीप कुमार सुमन का मानना है कि इस बार यह भी स्पष्ट है कि श्री सिन्हा के पक्ष में हिंदी भाषियों का एक बड़ा वर्ग मैदान में उतारा हुआ है और जहां भी वे जा रहे हैं लोगों का हुजूम लग जा रहा है जो कि विगत दो चुनावों में तृणमूल प्रार्थियों के साथ नहीं देखा गया है। उन्होंने कहा कि लगातार बंगाल के सभी चुनावों में जीत से भी राज्य की सत्ताशीन पार्टी का आत्मबल मजबूत है और सभी नेताओं ने सीट को भाजपा से छीनने में पूरी ताकत लगा दी है। वाममोर्चा समर्थिक सीपीआईएम और कांग्रेस के जनाधार के कम होने का लाभ भी इस बार तृणमूल के पक्ष में ही जाता दिखाई दे रहा है।

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