संपादकीय

दैनिक ‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : जब मंत्री का कमीशन ही 40 फीसदी होगा तो जमीन पर काम कितने का होगा?
13-Apr-2022 12:28 PM
दैनिक ‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : जब मंत्री का कमीशन ही 40 फीसदी होगा तो जमीन पर काम कितने का होगा?

कर्नाटक में एक सरकारी काम करने वाले ठेकेदार ने कल आत्महत्या कर ली, और वह चिट्ठी छोडक़र मरा है कि प्रदेश पंचायत राज मंत्री और वरिष्ठ भाजपा नेता के.एस. ईश्वरप्पा की रिश्वत की मांग से थककर वह आत्महत्या कर रहा है। उसने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और पिछले भाजपा मुख्यमंत्री येदियुरप्पा के प्रति अपार सम्मान के साथ लिखते हुए यह अपील की है कि उसके परिवार का ख्याल रखा जाए। उसने अपनी चिट्ठी में यह लिखा है कि यह मंत्री उसकी मौत के लिए सीधे-सीधे जिम्मेदार है, और उसे इसकी सजा मिलनी चाहिए। चिट्ठी के मुताबिक इस ठेकेदार को पंचायत विभाग के तहत सडक़ों का ठेका मिला था, और मंत्री चार करोड़ के काम में चालीस फीसदी रिश्वत मांग रहा था। पुलिस ने आत्महत्या के बाद जो जुर्म दर्ज किया है उसमें मंत्री का नाम है। लोगों को याद होगा कि कुछ समय पहले कर्नाटक के सरकारी निर्माण के ठेकेदारों ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को चिट्ठी लिखकर राज्य में चालीस फीसदी कमीशन के चलन के शिकायत की थी, और उसकी भी खबरें खूब छपी थीं।

सरकारी कामकाज में भ्रष्टाचार कोई बहुत अनोखी बात नहीं है, और न ही यह कर्नाटक तक सीमित बात है। अधिकतर प्रदेशों में सरकारी कामकाज में भ्रष्टाचार बहुत ही आम है, और मंत्रिमंडल में किसी मंत्री की ताकत का अंदाज इसी बात से लगता है कि उसे कितने अधिक बजट वाले और कितने अधिक कमाई वाले विभाग मिले हैं। लेकिन कर्नाटक में यह भ्रष्टाचार जितने बड़े पैमाने पर और जितना अधिक सुनाई पड़ रहा है, वह कुछ अभूतपूर्व लगता है। अगर मंत्री ही चालीस फीसदी कमीशन लेने लगे, और बाकी विभाग का कमीशन भी बंधा हुआ रहता है, फिर ठेकेदार की अपनी कमाई, इन सबको देखें तो लगता है कि सरकार के खर्च का आधे से भी कम जमीन पर लगता होगा। भ्रष्टाचार की चर्चा करते हुए ही अभी यह भी याद पड़ता है कि पिछले कुछ दिनों से लगातार पंजाब के नए मुख्यमंत्री आम आदमी पार्टी के भगवंत सिंह मान का इश्तहार टीवी पर चल रहा है जिसमें उन्होंने प्रदेश की जनता से सरकारी दफ्तरों में मोबाइल फोन लेकर जाने कहा है, जो कि अभी तक कई जगहों पर प्रतिबंधित था, और कहा है कि कोई भी रिश्वत मांगे तो उसकी ऑडियो या वीडियो रिकॉर्डिंग करें, और मुख्यमंत्री को भेजें।

हमारे नियमित पाठकों को याद होगा कि हम सरकारी कामकाज में गलत निर्देशों को लेकर, या गलत मांग को लेकर बरसों से यह बात लिखते आ रहे हैं कि लोगों को इसकी रिकॉर्डिंग करना चाहिए ताकि वह सुबूत की शक्ल में हिफाजत से रहे। लोगों को उनके वरिष्ठ मंत्री या अफसर कई गलत निर्देश देते हैं जो कि कागजों पर लिखे हुए नहीं रहते, और दबाव डालकर गलत काम करवाए जाते हैं। ऐसी तमाम किस्म की बीमारियों का एक आसान इलाज रिकॉर्डिंग हो सकती है, और यह मोबाइल फोन पर बातचीत हो, या रूबरू कही जा रही बात हो, अगर यह सरकारी कामकाज से जुड़ी हुई बात है, तो उसकी सारी रिकॉर्डिंग जायज होनी चाहिए। ऐसा न हो कि इसे सरकार के भ्रष्ट लोग अनुशासनहीनता करार देकर रिकॉर्डिंग करने वाले लोगों का नुकसान करें। अभी तक ऐसा कोई मामला सामने आया नहीं है इसलिए किसी अदालत का कोई फैसला भी इसे लेकर नहीं है। लेकिन यह पारदर्शिता के लिए और सरकारी कामकाज से भ्रष्टाचार को हटाने के लिए एक असरदार औजार हो सकता है। आम आदमी पार्टी और पंजाब सरकार की दूसरी सौ बातों से असहमत हुआ जा सकता है, लेकिन उसका यह फैसला ठीक है कि सरकारी दफ्तर में मोबाइल लेकर जाने पर अब कोई रोक नहीं रहेगी, और कोई नाजायज मांग होने पर लोग उसकी रिकॉर्डिंग कर सकेंगे। सरकारी दफ्तर में सरकारी समय पर सरकारी कामकाज से जुड़ी हुई बातों को रिकॉर्ड करने पर कोई रोक क्यों होनी चाहिए?

अभी छत्तीसगढ़ में लगातार ऐसे मामले सामने आए हैं जिनमें पुलिस कर्मचारियों और अधिकारियों ने एक संगठित मुजरिम गिरोह की तरह लोगों से उगाही और वसूली की है, वरना उन्हें तरह-तरह के खतरनाक जुर्म में फंसाने की धमकी दी है। ऐसी रिकॉर्डिंग सामने आने के बाद जिला पुलिस ने ऐसे लोगों को लाइन अटैच भी किया गया है। अगर ऐसी रिकॉर्डिंग न होती, तो इनकी बात भला कौन मानते? इसलिए आज हर जेब में रहने वाले इस मामूली से औजार को भ्रष्टाचार के खिलाफ हथियार की तरह इस्तेमाल किया ही जाना चाहिए। जो लोग जनता के पैसों से तनख्वाह पाते हैं, और सरकार में अधिकार संपन्न हैं, उन्हें ईमानदार होने के साथ-साथ जनता से अपना बर्ताव भी ठीक रखना चाहिए। बहुत से अफसर और कर्मचारी ऐसे रहते हैं जो अपनी बदजुबानी और बदतमीजी के लिए जाने जाते हैं, इन सबका इलाज भी ऐसी रिकॉर्डिंग हो सकती है। आज भी सरकार का कोई कानून इसके खिलाफ नहीं है, लेकिन भ्रष्ट और बददिमाग अफसरों ने अपने स्तर पर अपने दफ्तरों में ऐसे नोटिस लगा रखे हैं, इन्हें भी गैरकानूनी करार देना जरूरी है। हर व्यक्ति का यह हक है कि उसके साथ सरकारी दफ्तर में कैसा बर्ताव होता है, उसे रिकॉर्ड करके रखे।

कर्नाटक के जिस मंत्री के बारे में भाजपा के ही इस समर्थक या सदस्य ठेकेदार ने आत्महत्या की चिट्ठी में लिखा है, उसका इस्तीफा तुरंत ही लिया जाना चाहिए। अब तक मुख्यमंत्री भी इस बारे में कुछ बोल नहीं रहे हैं, और न ही सत्तारूढ़ भाजपा ने कुछ कहा है। लेकिन जिस तरह वहां के ठेकेदारों ने कुछ अरसा पहले सीधे प्रधानमंत्री को लिखकर इसकी शिकायत की थी, और जिस तरह इस खुदकुशी करने वाले ने भी प्रधानमंत्री के बारे मेें लिखा है, तो उसे देखते हुए भाजपा का इस पर चुप रहना जिम्मेदारी का बर्ताव नहीं है।
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