संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : बैटरी-गाडिय़ों में आगजनी, खतरे, और बचाव के तरीके
21-Apr-2022 12:35 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : बैटरी-गाडिय़ों में आगजनी, खतरे, और बचाव के तरीके

हिन्दुस्तान में पेट्रोल और डीजल के अंधाधुंध बढ़ते हुए दामों के चलते हुए, और सरकारी रियायतों की वजह से भी बैटरी से चलने वाली गाडिय़ों का चलन तेजी से बढ़ रहा है। बिजली से चार्ज होने वाली बैटरियों पर ईंधन की लागत पेट्रोल-डीजल के मुकाबले बहुत कम आ रही है, और यही वजह है कि लोगों को इन्हीं गाडिय़ों का भविष्य दिख रहा है, और है भी। इसके साथ-साथ बैटरी से चलने वाली गाडिय़ों में डीजल-पेट्रोल को ऊर्जा में बदलने वाले इंजन का कोई काम नहीं रहता, इसलिए उसमें पुर्जे बहुत कम लगते हैं, उसकी आवाज नहीं के बराबर होती है, और उससे कोई धुआं नहीं निकलता। लेकिन दुनिया में कोई भी चीज एक हसीन सपने की तरह खूबसूरत नहीं हो सकती, इसलिए पिछले कुछ महीनों में हर हफ्ते हिन्दुस्तान में एक से अधिक बैटरी वाहनों में आग लग रही है, चलते-चलते सडक़ पर भी लग रही है, और घर में चार्जिंग के दौरान भी बैटरी-गाडिय़ां जल रही हैं। ऐसी एक आगजनी में उसी कमरे में सोए बाप-बेटी भी जल मरे हैं।

एक तरफ तो जिन शहरों में बैटरी से चलने वाले ऑटोरिक्शा बढ़ते जा रहे हैं वहां सडक़ों पर शोर घट गया है, और चौराहों पर धुआं। लोग राहत की सांस ले रहे हैं, और बैटरी से चलने वाले ऑटोरिक्शा इतने आसान भी हैं कि छत्तीसगढ़ में हजारों महिलाएं मुसाफिर-ऑटोरिक्शा चलाने लगी हैं। भारत में सरकार ने भी आने वाले बरसों में बहुत तेजी से बैटरी-गाडिय़ों का अनुपात बढ़ाने की घोषणा की है, और इसी अनुपात में डीजल-पेट्रोल की खपत में कमी भी आते जाएगी। यह सब कुछ पर्यावरण के हिसाब से भी बेहतर तस्वीर लग रही है, लेकिन इसमें एक दिक्कत भी आ रही है। उस दिक्कत पर चर्चा जरूरी है।

जानकार लोगों का कहना है कि बैटरी वाली गाडिय़ों में आग लगने के पीछे उनकी बैटरी घटिया होना एक बड़ी वजह हो सकती है। आज हिन्दुस्तान में कोई बैटरियां इन गाडिय़ों के लिए शायद बन नहीं रही हैं, और चीन बाकी बहुत से सामानों की तरह इस चीज का भी सबसे बड़े निर्माता है। तकनीकी जानकारी रखने वालों का कहना है कि बैटरी चार्ज करते हुए, और फिर उस चार्जिंग से गाड़ी चलाते हुए बैटरी के भीतर कई किस्म की रासायनिक क्रिया होती है, और अगर बैटरी के भीतर रसायनों में किसी तरह की मिलावट होती है, तो उसकी नतीजा भी आग की शक्ल में सामने आ सकता है। फिर बिजली के कनेक्शन से जब बैटरी को चार्ज किया जाता है, तब भी हिन्दुस्तान में बिजली के ऐसे कनेक्शन कई बार स्तरहीन होते हैं, उनकी अर्थिंग सही नहीं होती है, और वैसे में चार्जिंग से मोबाइल फोन तक में आग लगने की खबरें आते ही रहती हैं, वैसी ही खबरें अब बैटरी-गाडिय़ों में चार्जिंग के दौरान आग लगने की आने लगी हैं। इसलिए बिजली से बैटरी चार्जिंग की तकनीक तो सही है, लेकिन बिजली का कनेक्शन सही और सुरक्षित होना भी उतना ही जरूरी होता है।

अभी भारत में इस तकनीक के कुछ जानकार लोगों से मीडिया की बातचीत में यह सामने आया है कि बहुत से नए-नए वाहन निर्माता रातोंरात पैदा हो गए हैं जिनके पास कुछ चीजों को जोडक़र एक दुपहिया खड़ा कर लेने और उसे बैटरी से दौड़ाने के सामान तो हैं, लेकिन उनके पास न तो देश भर में मरम्मत का ढांचा है, और न ही उन्हें अपने ब्रांड की किसी साख को निभाना है। ऐसे नए-नए खिलाड़ी इस नई तकनीक के साथ बाजार में हैं, और दिक्कत यह भी है कि भारत में सरकार का कोई ढांचा बैटरी से चलने वाली गाडिय़ों की तकनीक के बारीक पैमाने तय करने वाला नहीं है, और बैटरियों की पुख्ता जांच का भी कोई तरीका आज भारत में प्रचलन में नहीं है। चूंकि बैटरी से चलने वाली गाडिय़ों की बैटरियों का भरपूर इस्तेमाल होता है, उनकी रोजाना पूरी चार्जिंग होती है, फिर उससे गाड़ी चलती है, तो यह अब तक कारों में महज हॉर्न और लाईट के लिए रहने वाली मामूली बैटरी से बिल्कुल अलग तकनीक है, और गाडिय़ों के इतने बड़े ईंधन-स्रोत की पुख्ता जांच के लिए यह देश अभी तैयार नहीं है।

सरकार के सामने कई किस्म की चुनौतियां हैं। उसे देश के प्रदूषण को कम करने के अपने अंतरराष्ट्रीय वायदे को भी पूरा करना है, देश में पेट्रोल-डीजल गाडिय़ों के चलन को घटाना है, और बैटरी गाडिय़ों को बहुत तेजी से बढ़ाना भी है। इसलिए टेक्नालॉजी और मरम्मत के ढांचे का पुख्ता इंतजाम हुए बिना भी सरकार ने इन गाडिय़ों को बाजार में आने की इजाजत दे दी है। जैसा कि किसी भी तकनीक के पहले-पहल इस्तेमाल में होता है, हिन्दुस्तान में भी इन गाडिय़ों के साथ हादसे हो रहे हैं, और शायद ऐसे हर हादसे के बाद सरकार, कारोबार, और ग्राहक, इन सभी को काफी कुछ सीखने मिलेगा। लेकिन इनमें सबसे महंगा ग्राहक का सीखना होगा क्योंकि उसने बरसों की बचत को डालकर ऐसी गाड़ी खरीदी होगी, और उसके साथ हादसा होने पर वह ईंधन में बचत पाना तो दूर रहा, गाड़ी से भी हाथ धो बैठेगा।

देश और प्रदेशों की सरकारों को चाहिए कि बैटरी-गाडिय़ों की चार्जिंग और मरम्मत के इंतजाम में अपने नियमों और अधिकारों का इस्तेमाल करके इन्हें ग्राहकों के लिए आसान बनाएं। एक बेहतर कल के लिए कम कलपुर्जे वाली ऐसी गाडिय़ां जो बिना धुएं के चलती हैं, जो शोर नहीं करती हैं, वे जरूरी हैं। और ऐसी जरूरी सामान के साथ आज अगर कुछ खतरे हैं, तो उन खतरों को कम करना सरकार की जिम्मेदारी है। राज्यों को भी बैटरी गाडिय़ों की चार्जिंग वाली जगहों के बिजली कनेक्शनों की कड़ी जांच लागू करना चाहिए ताकि चार्जिंग के दौरान गाडिय़ां और इंसान जलने के हादसे न हों। बैटरी की टेक्नालॉजी ही भविष्य इसलिए है कि धीरे-धीरे बिजली से चार्जिंग के बजाय सोलर पैनल से चार्जिंग का भी तरीका इस्तेमाल होने लगेगा, और धरती एक बेहतर जगह बन सकेगी।
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