संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : ईश्वर के प्रति आस्था के लिए लाउडस्पीकर पर शोर क्यों जरूरी?
30-Apr-2022 4:19 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय :  ईश्वर के प्रति आस्था के लिए लाउडस्पीकर पर शोर क्यों जरूरी?

उत्तरप्रदेश से आ रही खबरें बताती हैं कि वहां अभी तक करीब 50 हजार लाउडस्पीकर धर्मस्थानों से हटाए गए हैं, और करीब 60 हजार धर्मस्थानों के लाउडस्पीकरों की आवाज घटाई गई है। शायद उत्तरप्रदेश को लेकर ये कार्टूनिस्ट ने कार्टून बनाया है जिसमें बादलों के ऊपर आसमान में अल्लाह और भगवान दोनों राहत की सांस लेते हुए आपस में बात कर रहे हैं कि अब जरा चैन पड़ा है। दूसरी तरफ एक खबर यह है कि उत्तरप्रदेश के बगल के बिहार में भाजपा नेता लाउडस्पीकर पर रोक के हिमायती हैं, और सत्तारूढ़ गठबंधन की उनकी मुखिया पार्टी जेडीयू कह रही है कि बिहार में ऐसी किसी रोक की जरूरत नहीं है। यह पूरा सिलसिला मस्जिदों पर लगे लाउडस्पीकरों के खिलाफ देश में जगह-जगह शुरू हुआ, और महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के पारिवारिक भाई राज ठाकरे ने मस्जिदों पर लाउडस्पीकर बंद करने का खुला अल्टीमेटम दिया हुआ है। लेकिन अल्पसंख्यक या मुस्लिम विरोधी दिखती इस मुहिम से परे देश की बड़ी अदालतों के अनगिनत फैसले हैं जो कि लाउडस्पीकर के इस्तेमाल को रोकते हैं, और राज्य सरकारें ऐसे आदेशों पर कोई अमल नहीं करती हैं क्योंकि धर्म के मामले को छूना सरकारों को मधुमक्खी के छत्ते में हाथ डालने सरीखा लगता है। लेकिन आज का वक्त ऐसा है कि इस मुद्दे पर खुलकर चर्चा होनी चाहिए।

जिन हिन्दू और मुस्लिम धर्मालुओं और कट्टर साम्प्रदायिक लोगों के बीच लाउडस्पीकर का यह शक्ति प्रदर्शन चल रहा है, उनसे परे क्या किसी धर्म के ईश्वर को, या आस्थावान को लाउडस्पीकर की जरूरत है? जब धर्म बने तो हजारों बरस तक कोई लाउडस्पीकर नहीं थे, गांव भी चैन की नींद सोते थे, और लोगों के ईश्वर भी बिना शोरगुल, चढ़ाया हुआ ढेर सारा प्रसाद खाकर खूब देर तक सोते थे। पिछले डेढ़-दो सौ बरस की टेक्नालॉजी ने लाउडस्पीकर मुहैया कराए तो इनका मंदिर-मस्जिद पर इस्तेमाल भी शुरू हुआ। चूंकि नमाज का वक्त तय रहता है, इसलिए दिन में पांच बार मस्जिदों से लाउडस्पीकर पर अजान की आवाज जाती है ताकि पांच वक्त के नमाजी लोग मस्जिद पहुंच सकें, या आसपास बसे हों तो वे आवाज सुनकर जहां हो वहां नमाज पढ़ सकें। मंदिर और गुरुद्वारों में वक्त की ऐसी पाबंदी नहीं रहती, इसलिए वहां आरती और शबद कीर्तन के वक्त लचीले रहते हैं, और लोग अपनी मर्जी से आते-जाते हैं, और अब तो ढोल-मंजीरा बजाने वाली भी मशीनें आ गई हैं जो कि आरती के वक्त शुरू कर दी जाती हैं, और एक अकेला पुजारी भी भक्तों की भीड़ होने का अहसास करा सकता है। आज हिन्दुस्तान में शायद ही कोई मंदिर बिना लाउडस्पीकर होगा। मस्जिद के लाउडस्पीकर तो दिन में पांच बार कुछ-कुछ मिनटों के लिए चलते हैं, लेकिन मंदिरों के लाउडस्पीकर तो एक-एक बार में घंटों भी चलते हैं, और साल में कई बार तो पूरे-पूरे दिन चलते हैं। इसलिए लाउडस्पीकर के शोरगुल को खत्म करना सिर्फ मुस्लिमों पर हमला मानना गलत होगा, यह इंसानों, जानवरों, और पंछियों, सभी को राहत देने का काम अधिक होगा।

आज उत्तरप्रदेश में योगी आदित्यनाथ की भाजपा सरकार ने लाउडस्पीकर उतरवाने की जो पहल की है, वह अगर धर्म देखे बिना हो रही है, तो उसका स्वागत किया जाना चाहिए। शोरगुल करना किसी एक धर्म का बुनियादी हक मानना बेवकूफी की बात होगी। आज के वक्त जब हर जेब में मोबाइल फोन है, तब हर शहर की एक सम्प्रदाय की मस्जिदें अपना एक मोबाइल ऐप बना सकती हैं, जिससे सभी नमाजियों को तय समय पर अलार्म चला जाए। लाउडस्पीकर को किसी धर्म के बाहुबल की तरह इस्तेमाल करना 21वीं सदी की शहरी दुनिया में बाकी शोरगुल के साथ कुछ और जुल्म लोगों पर ढहाने सरीखा है। यह काम करना किसी धर्म का सम्मान बढ़ाना नहीं है। राज्य सरकारों को चाहिए कि सभी किस्म के लाउडस्पीकर तुरंत ही खत्म करवाए, और सारे धर्मस्थानों के बाहर लगे हुए स्पीकर खत्म करके उन्हें उनके भीतर इस्तेमाल के लायक छोटे स्पीकरों की इजाजत दी जाए जिसकी आवाज अहाते के बाहर न आए। आज देश में आसमान पर पहुंचा हुआ साम्प्रदायिक तनाव घटाने के लिए धार्मिक ताकत का प्रदर्शन भी घटाना जरूरी है। लाउडस्पीकर खत्म करना उसका एक कदम हो सकता है। अभी किसी एक नेता ने यह भी मांग की थी कि तमाम किस्म के धार्मिक जुलूसों पर रोक लगाई जाए। इस सोच में भी कोई बुराई नहीं है, और इसके लिए राज्य सरकार में दमखम होना चाहिए कि वह सभी धर्मों को बराबरी से देखते हुए एक सरीखी रोक लगाए। फिलहाल लाउडस्पीकर पर रोक लोगों में इंसानियत की वापिसी का पहला कदम हो सकता है, और इसकी पहल की जानी चाहिए।

अभी कुछ ही दिन पहले हमने लिखा था- कांकड़ पाथर जोडक़र मस्जिद लेई बनाए, तां चढ़ मुल्ला बांग दे बहरा हुआ खुदाय। मतलब यह कि कंकड़-पत्थर जोडक़र मस्जिद बना ली, और उस पर चढक़र मुल्ला इस तरह से अजान देता है कि मानो खुदा को कम सुनाई देता है।
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