सामान्य ज्ञान
तमाशा, मुख्य रूप से महाराष्ट्र के ग्रामीण लोगों के मनोरंजन का एक धर्मनिरपेक्ष रंगारंग कार्यक्रम होता है। इसका पूर्व वर्णन मांग और महाणों द्वारा प्रस्तुत खादी गम्मत के कथानकों में मिलता है, जो वास्तव में अभिनेताओं द्वारा खड़े होकर किया जाने वाला मनोरंजन होता है। इसका मूल स्वरूप जागरण - गंधाल जैसी विभिन्न लोक और लोकप्रिय परम्पराओं से लिया गया है। इसमें मराठी संत कवियों के ग्वालन, दशावतार और शाहिरों के पौडा तथा कथक के अन्य स्वरूप शामिल हैं और इसमें पारसी रंगमंच की मंचीय तकनीकों को उधार लिया गया है।
हालांकि महाराष्ट्र में तमाशा का स्वरूप अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग है, फिर भी तमाशा में मुख्यरूप से दो प्रधान भाग- यथा पूर्वरंग अथवा प्रस्तुतीकरण और वाग नाट्य यानी मूल नाटक होते हैं। जैसा कि रंगमंच के अन्य परम्परागत स्वरूपों में होता है, उसी प्रकार इसमें मंचन के बारे में हल्गीवाला और ढोलकीवाला के तबले की थापों द्वारा घोषणा की जाती है। इसके बाद अन्य वाद्ययंत्र वादक यथा टुंटुनवाला (एकतारा जैसा) और मंजीरवाला (जो झांझा बजाते हैं) अपने यंत्र बजाते हैं। नाटक प्रस्तुतीकरण अर्थात पूर्वरंग से शुरू होता है, जिसमें गणपति का आह्वान किया जाता है और जिसे तमाशा मंडली के सभी पुरूष सदस्य गाते हैं। इसके बाद कृष्णलीला शुरू होती है, जिसमें दो ग्रामीण लोग कृष्ण और उसके साथी पंड्या का अभिनय करते हैं और वे बाजार जाती हुई ग्वालनों (गोपियां अथवा दूधबेचने वाली महिलाओं) को रास्ते में रोकते हैं। नाटक के इस भाग में ग्वालनें मौसी से सुरक्षा का अनुरोध करती हैं। मौसी एक वरिष्ठ आंटी होती है, जिसका अभिनय एक पुरुष अभिनेता द्वारा किया जाता है ।
अगला कार्यक्रम रंगबाजी होता है, जिसमें लावणी गीत गाए जाते हैं, जिसमें अभिनेता वाग नाट्य के लिए अपनी वेशभूषा को बदलते रहते हैं और निपुणता के साथ दर्शकों का मनोरंजन करते रहते हैं। बटवाणी हास्यप्रद मध्यांतर होता है, जिसमें सरदार (शाहिर) और सोंगाद्य (विदूषक) एक- दूसरे से बढक़र अतिशयोक्तिपूर्ण तथा कालपनिक कथाएं सुनाते हैं। इसके पश्चात वाग नाट्य शुरू होता है, जो वास्तविक नाटक होता है। इसकी विषय वस्तु पौराणिक कथा, इतिहास अथवा सामाजिक समस्याओं पर आधारित होती है। पूर्वरंगा की तरह वाग नाट्य में भी नाटकीय अभिनय की तुलना में चतुर वार्तालाप को अधिक महत्व दिया जाता है। वाग नाट्य में लावणी गीतों और नृत्यों की भरमार होती है। तमाशा अभिनय भैरवी राग पर आधारित भैरवी के साथ संपन्न होता है, जिसमें सामान्यता वरकरी संप्रदाय के संत कवियों का आह्वान किया जाता है और संपूर्ण समारोह भक्ति भावना के साथ समाप्त होता है।