संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : ...इस बुलडोजरी-जुल्म के खिलाफ जाएं तो जाएं कहां?
13-May-2022 4:50 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : ...इस बुलडोजरी-जुल्म के खिलाफ जाएं तो जाएं कहां?

मध्यप्रदेश का डिंडौरी जिला छत्तीसगढ़ के करीब है, और इसकी पहचान एक आदिवासी इलाके के रूप में होती है। लेकिन अभी चार दिन पहले की एक खबर बताती है कि ऐसे इलाके में भी हिन्दू-मुस्लिम साम्प्रदायिक तनाव इतना बढ़ गया है, और मध्यप्रदेश की भाजपा की शिवराज सिंह सरकार अपने तीसरे कार्यकाल में बुलडोजर को अल्पसंख्यकों के खिलाफ जिस तरह एक राजकीय हथियार बनाकर चल रही है, वह नौबत कितनी भयानक हो सकती है। एक हिन्दू लडक़ी और मुस्लिम लडक़े के बीच स्कूल के समय से मोहब्बत चली आ रही थी, और दोनों के परिवारों को भी यह बात मालूम थी। लेकिन लडक़ी का परिवार इस शादी के लिए तैयार नहीं था, इसलिए लडक़ी खुद घर छोडक़र चली गई और उसने फोन करके लडक़े को बुलाया, और दोनों ने जाकर एक हिन्दू मंदिर में शादी कर ली। इस पर लडक़ी के परिवार ने पुलिस में रिपोर्ट लिखाई और हिन्दू साम्प्रदायिक संगठनों ने प्रदर्शन करते हुए प्रशासन से यह मांग की कि इस लडक़े के परिवार के घर-दुकान गिराए जाएं। चूंकि भारत में हिन्दुत्व के सबसे कट्टर राज, उत्तरप्रदेश से यह सिलसिला शुरू हो चुका है कि मुस्लिमों को खत्म करने के लिए उनके सिर की छत और उनके रोजगार को बुलडोजर से खत्म कर दिया जाए, इसलिए हिन्दुत्व टीम के उपकप्तान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह भी इसी श्लोक का पाठ करते हैं, और उन्होंने जगह-जगह यही काम किया भी है। यह किसी और का आरोप नहीं है बल्कि डिंडौरी के कलेक्टर रत्नाकर झा ने खुद होकर कई तस्वीरें पोस्ट की हैं, और यह लिखा है- डिंडौरी जिले में छात्रा के अपहरण के मामले में आरोपी आसिफ खान के दुकान और मकान को जमींदोज कर दिया गया है। दो दिन तक आरोपी आसिफ खान की दुकानों सहित उसके अवैध मकान पर कार्रवाई की गई है। इसके साथ माफियामुक्तएमपी का हैशटैग भी लगाया गया है, और इस ट्वीट को सीएममध्यप्रदेश को टैग भी किया गया है। कलेक्टर ने लिखा है कि उन्होंने कार्रवाई करते हुए बुलडोजर/जेसीबी चलवाकर दुकानों और मकान को तोड़ दिया है। अब हिन्दू लडक़ी और मुस्लिम लडक़े की शादी पर साम्प्रदायिक संगठन तो अभी तक खुद बुलडोजर नहीं चला पा रहे हैं, लेकिन उनके लिए यह अधिक सहूलियत की बात है कि उनकी फरमाईश को प्रशासन विविध भारती की तरह पूरा कर रहा है, और सरकारी खर्च पर, पुलिस की मौजूदगी में मुस्लिमों के घर-दुकान जमींदोज किए जा रहे हैं। इस लडक़े के परिवार को पूरा गांव छोडक़र चले जाना पड़ा है, और रिश्तेदारों के यहां दिन गुजार रहे हैं। परिवार का कहना है कि 1992 में पंचायत ने सभी की सहमति से उन्हें यह घर आबंटित किया था।

हिन्दुस्तान में इन दिनों चल रहे बुलडोजर-इंसाफ पर सुप्रीम कोर्ट का रूख भी बड़ा ही हैरान करने वाला है। सीपीएम की नेता बृन्दा करात दिल्ली में मुस्लिमों बस्तियों पर बुलडोजर के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची हुई हैं, और उन्हें अदालत ने प्रभावित पक्ष मानने से इंकार कर दिया, और हाईकोर्ट जाने कहा है। तब तक दिल्ली में छांट-छांटकर मुस्लिमों इलाकों में बुलडोजर चलाना जारी है, अधिकतर जगहों पर लोगों का कहना है कि उन्हें कोई नोटिस नहीं मिला था। अब डिंडौरी के मामले से तो यह जाहिर है कि हिन्दू-मुस्लिम शादी के चार दिन के भीतर अगर प्रशासन बड़े गर्व के साथ मुस्लिम परिवार के मकान-दुकान को जमींदोज करने की कामयाबी लिख रहा है, और मध्यप्रदेश को माफियामुक्त कराने का दंभ भी दिखा रहा है, तो इसके लिए अब क्या किसी अमरीकी अदालत में जाकर अपील की जाए? अगर हिन्दुस्तान में बड़ी अदालतों को अपनी जिम्मेदारी का अहसास है, तो अब तक मध्यप्रदेश हाईकोर्ट को खुद होकर इस मामले में राज्य सरकार और डिंडौरी कलेक्टर को नोटिस जारी करना था, और पूछना था कि दो वयस्क लोगों की शादी में कौन सी माफिया हरकत शामिल है, और किस तरह प्रशासन किसी के मकान-दुकान को जमींदोज करने का काम कर सकता है? अगर अदालत इतना भी पूछने का सरदर्द नहीं ले रही है, तो फिर इंसाफ की गुंजाइश कम ही दिखती है। कायदे की बात तो यह होती कि सीधे सुप्रीम कोर्ट को ऐसे नोटिस जारी करने थे, और पगड़ी बांधे प्रोफाइल फोटो वाले कलेक्टर को कटघरे में बुलाना था। अदालतों को और कुछ नहीं तो कम से कम यह तो सोचना ही चाहिए कि एक बुलडोजर उनका विकल्प बना दिया गया है, और हिन्दुस्तान में न्यायपालिका का एकाधिकार एक कलेक्टर या म्युनिसिपल कमिश्नर छीन ले रहे हैं। ऐसा लगता है कि आंखों पर पट्टी बांधी हुई न्याय की देवी की आत्मा गुजर चुकी है, और एक मुर्दा बदन से तराजू टंगा रह गया है।

सुप्रीम कोर्ट बृन्दा करात के मामले की सुनवाई करते हुए इस बात को जाने क्यों अनदेखा कर रहा है कि भाजपा के राज वाले कई प्रदेशों में एक सिलसिले से ऐसे बुलडोजर चल रहे हैं। फिर हिन्दुस्तान में बीते कई दशकों में धीरे-धीरे करके अल्पसंख्यक समुदायों की रिहाईश हर शहर में कुछ चुनिंदा इलाकों में होती चली गई है। ऐसी मुस्लिम बस्तियों को कई शहरों में साम्प्रदायिक जुबान में मिनी पाकिस्तान कहा जाता है, और यहां तक म्युनिसिपल की सहूलियतें, या राज्य सरकार की इलाज और पढ़ाई की सहूलियतें बहुत कम पहुंच पाती हैं। ऐसे में मुस्लिम इलाकों की शिनाख्त एकदम साफ रहती है, और अब जब सरकारी बुलडोजरों को मुस्लिमों के कपड़े सुंघाकर उनके खिलाफ छोड़ा जा रहा है, तो भी इस नौबत को देखने से सुप्रीम कोर्ट इंकार कर रहा है। जब लोगों की जिंदगी भर की कमाई, रोजगार का अकेला जरिया, सिर छुपाने की अकेली छत, इन सबको बड़े गर्व के साथ खत्म किया जा रहा है, तब भी सुप्रीम कोर्ट के माथे पर शिकन नहीं आ रही है। ऐसे ही बुलडोजर किसी दिन असहमति वाले जजों के गाऊन सुंघाकर उनके पीछे छोड़े जाएंगे, तो उस दिन जजों के पास कोई नोटिस जारी करने के कलम-कागज भी नहीं बचेंगे।

यह नौबत ऐसी दिख रही है कि हिन्दुस्तानी अदालतों से कोई राहत न मिलने पर अब अंतरराष्ट्रीय न्यायालय या संयुक्त राष्ट्र संघ में अपील की जाए, और अभी कम से कम राजद्रोह के नए मामले दर्ज करने पर रोक लगी है, इसलिए ऐसी अपील करने वालों के खिलाफ राजद्रोह का मुकदमा तुरंत दर्ज नहीं हो सकेगा। लेकिन आज जिस तरह धर्म देखकर बुलडोजर हांका जा रहा है, उसके खिलाफ अदालतों में जैसा सन्नाटा दिख रहा है, वह नौबत लोकतंत्र में बर्दाश्त करने लायक नहीं है। ऐसी अदालती चुप्पी और अनदेखी के खिलाफ भी लोगों को सडक़ों पर आना चाहिए।
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