संपादकीय
भारत सरकार का एक और फैसला लोगों को हैरान भी कर रहा है, और अनाज की कमी का सामना कर रही दुनिया को सदमा भी पहुंचा रहा है। लेकिन खुद हिन्दुस्तान के भीतर अभी यह साफ नहीं है कि केन्द्र सरकार ने एक हफ्ते के भीतर अपनी खुद की नीतिगत घोषणाओं पर इतना बड़ा यूटर्न क्यों लिया है? दुनिया में गेहूं की एक तिहाई सप्लाई अकेले यूक्रेन-रूस से होती थी, और अब वहां चल रही जंग की वजह से वहां से कुछ भी अनाज निकलना बंद है। ऐसे में भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक देश है, और दुनिया की निगाहें भारत की ताजा फसल पर लगी हुई थी। हिन्दुस्तानी किसान, हिन्दुस्तानी कारोबारी, सभी को यह उम्मीद थी कि बढ़े हुए अंतरराष्ट्रीय दामों पर उनका गेहूं दूसरे देशों में हाथों हाथ लिया जाएगा, और सबको कमाई होगी। खुद सरकार ने इसी हफ्ते गेहूं रिकॉर्ड निर्यात के लक्ष्य की घोषणा की थी, और यह कहा था कि भारत अपने कारोबारी प्रतिनिधि मंडल को किन-किन देशों में भेजने जा रहा है जिससे कि निर्यात को मजबूत करने के नए तरीके निकाले जा सके। लेकिन हफ्ता भी पूरा नहीं गुजरा, और केन्द्र सरकार ने गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया।
दुनिया के कई विकसित देशों ने भारत के इस फैसले पर अफसोस जाहिर किया है। जी-7 देशों ने खुलकर भारत के इस फैसले की निंदा की है। जर्मन कृषि मंत्री ने कहा है कि अगर हर देश इसी तरह निर्यात प्रतिबंध लगाते चलेगा तो उससे हालात बहुत बुरे होंगे। दुनिया को हिन्दुस्तानी यूटर्न पर हैरानी इसलिए भी हो रही है कि भारत में इस बरस गर्मी का मौसम आने के पहले पड़ी भयानक गर्मी से गेहूं की फसल घट जाने का अनुमान कई हफ्ते पहले ही आ चुका था। भारत की अपनी घरेलू जरूरत, यहां लोगों को सरकारी राशन में मुफ्त या रियायती दिया जाने वाला अनाज भी सरकार की फाइलों में अच्छी तरह दर्ज था। सरकार के पास अनाज का कितना स्टॉक है, और अगले बरस की फसल आने तक कितने स्टॉक की जरूरत रहेगी, किसी प्राकृतिक विपदा की नौबत में कितना अनाज सुरक्षित रखा जाना जरूरी है, ये तमाम आंकड़े कृषि अर्थव्यवस्था और अनाज के कारोबारी में लगे आम लोगों की भी जुबान पर हैं। इसलिए यह कल्पना नहीं की जा सकती कि भारत सरकार में बैठे हुए पूरी तरह से जानकार लोगों को इस एक हफ्ते में अचानक कोई नई जानकारी मिली है जिससे कि सरकार का रूख इतना बदल गया है।
इस तस्वीर को देखने के कई अलग-अलग पहलू हैं। पहली बात तो यह कि आज दुनिया में जब दसियों करोड़ लोगों के भूख से मरने की नौबत आई हुई है, उस वक्त हिन्दुस्तान को अपना अंतरराष्ट्रीय सरोकार भी निभाना चाहिए। दूसरी बात यह कि निर्यात पर रोक लगने से भारतीय किसान को भी उसकी उपज का अच्छा दाम नहीं मिल सकेगा, और इसीलिए किसान संगठनों से लेकर कांग्रेस पार्टी तक ने सरकार के इस निर्यात प्रतिबंध का विरोध किया है। कांग्रेस नेता पी.चिदम्बरम ने सार्वजनिक रूप से इस प्रतिबंध को किसान-विरोधी कहा है, और कहा है कि आज बढ़े हुए दामों पर निर्यात से जो फायदा किसानों को हो सकता था सरकार उन्हें उससे वंचित कर रही है। उनका कहना है कि सरकार खुद गेहूं की खरीदी करने में पीछे रही है, और इसीलिए आज वह निर्यात को रोक रही है। दूसरी तरफ देश में गरीबों को मुफ्त या रियायती अनाज देने के हिमायती तबके की प्रतिक्रिया अभी सामने नहीं आई है कि सरकार की कल्याण योजनाओं में जाने वाले अनाज को लेकर हालात क्या हैं, और गरीबों को ध्यान में रखते हुए सरकार को अनाज कितना बचाकर रखना चाहिए।
लेकिन इन सबसे परे सबसे अधिक सदमा पहुंचाने वाली बात केन्द्र सरकार के फैसले का तरीका है। चार दिन पहले जो हिन्दुस्तानी अनाज निर्यात का एक नया रिकॉर्ड बनाने की घोषणा कर रही थी, जिसने देशों की शिनाख्त कर ली थी कि किन देशों में गेहूं निर्यात संभावना के लिए हिन्दुस्तानी प्रतिनिधि मंडल जाएंगे, और सरकार की निर्यात घोषणा के पहले से भी दुनिया को उम्मीद थी कि रूस-यूक्रेन से आई कमी की भरपाई में भारत मददगार होगा। ऐसी तमाम बातों को चार दिन के भीतर ही कूड़े के ढेर में डाल देने का केन्द्र सरकार का यह फैसला समझ से परे है, यह लापरवाह, मनमाना, और सरोकारविहीन फैसला लगता है। न तो इससे हिन्दुस्तानी किसान खुश हैं, और न ही अंतरराष्ट्रीय बिरादरी। भारत वैसे भी यूक्रेन पर रूस के हमले को लेकर अपनी चुप्पी की वजह से दुनिया के एक बड़े हिस्से की आलोचना झेल रहा है। बहुत से लोगों को यह निराशा हो रही है कि भारत विश्व शांति के लिए पर्याप्त कोशिश नहीं कर रहा है, या कोई भी कोशिश नहीं कर रहा है। भारत के बारे में ऐसा भी लग रहा है कि उसने अपने लोगों की जरूरतों को सबसे ऊपर रखा है, और अंतरराष्ट्रीय जिम्मेदारी से वह पीछे हट गया है। उस विश्वधारणा में अब गेहूं को लेकर सरकार का फैसला और जुड़ गया है। आज जब दुनिया में अनाज की नौबत यह है कि अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों की मदद से जिन देशों में लोग जिंदा हैं, उन देशों में भी अब अनाज की कमी के चलते हर व्यक्ति को एक वक्त का खाना देने के बजाय कुछ आबादी को दोनों वक्त का खाना देकर जिंदा रखा जा रहा है, और कुछ लोगों को मरने के लिए छोड़ दिया जा रहा है कि सबकी मौत के बजाय कुछ को जिंदा रखना बेहतर है। ऐसी भयानक नौबत के वक्त हिन्दुस्तान पहले तो खुद होकर अंतरराष्ट्रीय जवाबदेही और जिम्मेदारी का दावा करता है, और फिर हफ्ता गुजरने के पहले ही इतना बड़ा फैसला बदल लेता है जिससे दुनिया की भूख जुड़ी हुई है। भारत सरकार का यह फैसला हमारे जैसे लोगों को भी सदमा देता है जो कि भारत को आजाद इतिहास में अंतरराष्ट्रीय मुखिया देखते आए हैं, और जिन्हें आज भी इस देश से अधिक जिम्मेदार रहने की उम्मीद थी।
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