संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : लगेगी आग तो आएंगे कई घर कई जद में, यहां पे सिर्फ हमारा मकान थोड़ी है...
22-May-2022 1:05 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय :  लगेगी आग तो आएंगे कई घर कई जद में, यहां पे सिर्फ हमारा मकान थोड़ी है...

मध्यप्रदेश में अभी एक विचलित बुजुर्ग को भाजपा के एक नेता, भाजपा पार्षद के पति ने पकड़ा। यह बुजुर्ग अपना नाम-पता भी नहीं बता पा रहा था, बहुत कमजोर और बीमार हालत, खाली हाथ किसी को कोई नुकसान पहुंचाए बिना बैठा था। परिवार से बिछड़ा हुआ विचलित इंसान, जाहिर है कि दाढ़ी कुछ उग आई होगी। उसे मुसलमान समझकर उसे लगातार थप्पड़ें मारते हुए यह भाजपा नेता उससे पूछते रहा कि क्या उसका नाम मोहम्मद है? लगातार पीटते रहा, और खबरों के मुताबिक उसने खुद ने इस पिटाई का वीडियो फैलाया। वीडियो फैलने के बाद यह पता लगा कि यह बुजुर्ग मरा पड़ा मिला है। अब मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार ने इसे गिरफ्तार किया है। गिरफ्तारी भी आसान नहीं रही, इसे खबर भेजी गई कि अगर वह समर्पण नहीं करेगा तो उसके घर को बुलडोजर से जमींदोज कर दिया जाएगा, इसके बाद जाकर वह पुलिस तक पहुंचा। चूंकि वीडियो चारों तरफ फैल चुका था, लाश सामने थी, मरने वाला एक जैन परिवार का था, इसलिए बात दबना मुमकिन नहीं था। अभी हाल ही के हफ्तों में मध्यप्रदेश में दो अलग-अलग वारदातों में दबंगों ने जाकर आदिवासियों को घरों से निकाला, और पीट-पीटकर मार डाला। चूंकि सारे सुबूत मौजूद थे इसलिए उनमें भी गिरफ्तारियां हुई हैं। मारने वाले एक उग्रवादी हिन्दू संगठन बजरंग दल के थे, और उनका ऐसे संदेह का आरोप था कि ये आदिवासी गाय मारते हैं। न कोई गाय बरामद हुई, न गोमांस बरामद हुआ, दो आदिवासी जरूर मार दिए गए।

आदिवासियों को तो फिर भी यह आरोप लगाकर मारा गया कि वे गाय मारते हैं, लेकिन बहुत कमजोर, विचलित, और बूढ़े इंसान से तो मक्खी भी ठीक से नहीं मारी जाती होगी, उसे भी उसका नाम मोहम्मद मानकर पीट-पीटकर मार डाला गया। हिन्दुत्व की प्रयोगशाला के कुछ प्रयोग उत्तरप्रदेश में हो रहे हैं, कुछ प्रयोग कर्नाटक में, और कुछ का जिम्मा मध्यप्रदेश को दिया गया है। इन प्रदेशों में सरकार, सत्तारूढ़ संगठन, और उनके सहयोगी संगठन तरह-तरह के प्रयोग कर रहे हैं, और उन पर देश की जनता का, अदालतों का बर्दाश्त तौलते भी जा रहे हैं। अलग-अलग दिखती इन घटनाओं को जो लोग अलग-अलग समझते हैं, उन्हें कुछ दूर बैठकर, आसमान पर उड़ते एक पंछी की निगाहों से इन राज्यों को देखना चाहिए, तो इन घटनाओं के बीच एक सीधा रिश्ता दिखेगा। यह रिश्ता मुस्लिमों या दूसरे अल्पसंख्यकों, दलितों, और आदिवासियों, महिलाओं को दहशत में लाने का सिलसिला है। दहशत में लाना इसलिए जरूरी है कि इन तबकों में से कोई सवर्ण हिन्दुओं, मर्दों, और उग्रवादी संगठनों के सामने सिर न उठा सकें। अभी मारा गया बुजुर्ग जैन न होकर मोहम्मद ही हुआ होता, तो भी उससे मुस्लिम आबादी में एक की कमी आई होती। लेकिन जिस तरह उसे पीटकर बार-बार उससे यह पूछकर कि क्या उसका नाम मोहम्मद है, और फिर इस वीडियो को खुद फैलाकर जिस दहशत को फैलाने की कोशिश की गई थी, वह तो कामयाब हो गई। इससे यह साफ हो गया कि जिसके मुस्लिम होने का शक होगा, उसके कमजोर, विचलित, और बुजुर्ग होने पर भी उसे छोड़ा नहीं जाएगा, और पीट-पीटकर मार डाला जाएगा। जिसका आदिवासी होना तय होगा, उसके गाय न मारने पर भी उसे मारा जा सकेगा, और कहीं पर बजरंग दल, कहीं भाजपा, कहीं आरएसएस, अलग-अलग तरीके से लोगों को मार सकते हैं, और इस माहौल को परखने का काम अलग-अलग राज्यों में एक साथ जारी है। लोगों की बर्दाश्त तौली जा रही है, और लोगों की दहशत नापी जा रही है। मकसद पूरा होने तक बर्दाश्त और दहशत दोनों को बढ़ाते चलना है, और जहां-जहां हमखयाल सरकार है, वहां-वहां पर न्याय की प्रक्रिया भी अपने ही हाथ है। इसलिए देश भर में भीड़त्याओं और दूसरे किस्म की नफरती हत्याओं पर अदालती फैसले मनमाफिक होते हैं। जांच करने वाली पुलिस, मौजूदा गवाह, गढ़े गए सुबूत, ये सब मिलकर तय कर लेते हैं कि किसी नफरतजीवी का बालबांका न हो।

मध्यप्रदेश के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा का ताजा बयान अगर इस बुजुर्ग की हत्या पर देखें, तो वह एक थानेदार के जारी किए गए प्रेस नोट सरीखा पथरीला है। प्रदेश में कानून व्यवस्था जिस मंत्री की जिम्मेदारी है, उस मंत्री के मुंह से अफसोस का एक शब्द नहीं निकला है, बल्कि मंत्री की कही हुई इस बात को मृतक के परिवार ने गलत बताया है कि मंत्री ने उनसे फोन पर बात की है। मंत्री का पूरा बयान देखें तो बिना अफसोस वाला यह बयान सत्ता की जिम्मेदारी पर अपनी पूरी चुप्पी के साथ ऐसे और हमलावरों की हौसला अफजाई करने वाला दिखता है, क्योंकि इसमें ऐसी घोर साम्प्रदायिक हिंसा के खिलाफ एक शब्द भी नहीं है।

इस देश की न्यायपालिका पर धिक्कार है जो कि साम्प्रदायिकता के ऐसे बढ़ते चल रहे, अधिक और अधिक हिंसक होते चल रहे प्रयोगों को इस तरह देख रही है जिस तरह कि कोई क्रिकेटप्रेमी टीवी पर मैच देखते हैं। सत्ता से जुड़े हुए दूसरे संवैधानिक संगठनों की बोलती भी बंद है, न मानवाधिकार आयोग का मुंह खुला, न अल्पसंख्यक आयोग का मुंह खुला, और तो और जैन समाज के संगठनों का भी मुंह नहीं खुला, शायद इसलिए कि उन्होंने भी बुलडोजरों के वीडियो देखे हुए हैं। यह सिलसिला बहुत ही भयानक है। यूपी, कर्नाटक, और मध्यप्रदेश में यह शुरू तो मुस्लिमों के खिलाफ हुआ, लेकिन अब उसमें जैन हत्या भी होने लगी है। राहत इंदौरी नाम के इसी मध्यप्रदेश के एक शायर ने ठीक ही लिखा था- लगेगी आग तो आएंगे कई घर कई जद में, यहां पे सिर्फ हमारा मकान थोड़ी है।
 
आज जिन लोगों को सिर्फ मुस्लिम, ईसाई, दलित, आदिवासी, और औरतें निशाने पर दिख रहे हैं, और बाकी लोग अपने आपको बेफिक्र पा रहे हैं, वे इस बात को अच्छी तरह समझ लें कि इनसे परे एक जैन की बारी भी आ चुकी है, और उसकी हत्या के वीडियो को भी देख लें, फिर अपनी हिफाजत के प्रति बेफिक्र हों।
(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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