संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : हिन्दुस्तान में फैलाई हिंसा से धमाके हुए अफगान में
19-Jun-2022 1:22 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : हिन्दुस्तान में फैलाई हिंसा से धमाके हुए अफगान में

अफगानिस्तान के काबुल में एक गुरुद्वारे पर आईएस के आतंकियों ने हमला किया। हमला बहुत बड़ा था, दर्जन भर से अधिक विस्फोट किए गए, हथगोलों और रायफलों से लैस आतंकी गुरुद्वारे के अंदर घुसे, और दो लोगों मार डाला। इसके बाद अफगानिस्तान के आज के शासक, तालिबान ने इन आईएस आतंकियों को मार गिराया। खबरें बताती हैं कि अफगानिस्तान में हाल ही में सिक्ख धर्मस्थलों पर यह पांचवां बड़ा हमला है, और इनमें से अधिकतर की जिम्मेदारी आईएस ने ली है। इस बार आईएस ने इस हमले के बाद यह बयान जारी किया है कि उसने हिन्दुस्तान में (भाजपा प्रवक्ता) नुपूर शर्मा और नवीन जिंदल द्वारा पैगंबर का अपमान करने के जवाब में यह हमला किया है। अफगानिस्तान के घरेलू हालात ऐसे हैं कि तालिबान का भी आईएस आतंकियों पर कोई बस चल नहीं रहा है, और आज दुनिया के सबसे कट्टर इस्लामी आतंकी समूहों में से एक, आईएस वहां जब तब हमले करते रहता है।

अफगानिस्तान के किसी आतंकी हमले या मुठभेड़ के बारे में यहां लिखने की कोई वजह नहीं बनती थी, लेकिन इस बार आईएस ने इस हमले के बाद जो बयान दिया है, वह हिन्दुस्तान के लिए फिक्र की बात है। हिन्दुस्तानी लोग दुनिया के अधिकतर देशों में बसे हुए हैं, और दुनिया का ऐसा कोई इस्लामी देश नहीं है जहां पर हिन्दुस्तानी न हों। ऐसे में हिन्दुस्तान ने इस्लाम पर किया हुआ कोई भी हमला कई देशों में हिन्दुस्तानियों को निशाना बना सकता है, और बनाता ही है। जो आतंकी हमले हैं वे तो दिख जाते हैं, लेकिन जो आर्थिक हमले होते हैं, वे आसानी से दिखते नहीं हैं। जब न्यूयार्क के वल्र्ड ट्रेड सेंटर की जुड़वां इमारतों पर ओसामा-बिन-लादेन के आतंकियों ने विमान टकराकर हमला किया था, तो उसके जवाब में पूरी दुनिया में ही मुस्लिमों को जगह-जगह आर्थिक बहिष्कार झेलना पड़ा था, और उनके कारोबार में बड़ी गिरावट आई थी। अभी भारत में धार्मिक कट्टरता, साम्प्रदायिकता, और असहिष्णुता का नुकसान दुनिया भर में हिन्दुस्तानियों को कई अघोषित तरीकों से हो रहा है। और जो लोग अपनी-अपनी बसाहट में दुनिया भर में ऐसा नुकसान झेल रहे हैं, वे भी खुलकर इस बारे में कुछ बोलना नहीं चाहते हैं क्योंकि यह सिलसिला और आगे न बढ़े।

यह पहले भी कई बार लिखा जा चुका है कि खाड़ी के देशों में दसियों लाख हिन्दुस्तानी काम करते हैं, और उनके घर भेजे गए पैसों से भारत की विदेशी मुद्रा की जरूरत भी पूरी होती है, और भारतीय घरेलू अर्थव्यवस्था भी उसकी वजह से आगे बढ़ती है। ऐसे में हिन्दुस्तान के जिन नफरतजीवियों को तरह-तरह के फतवे देना सूझता है, उन्हें इस बात का अहसास भी नहीं है, और इसकी फिक्र भी नहीं है कि दूसरे देशों में अल्पसंख्यक कामगार तबके के हिन्दुस्तानियों, और हिन्दुओं का क्या हाल होगा। जिन्हें अपने मुहल्ले से बाहर निकलना नहीं है, और सबसे करीब की सडक़ पर उत्पात करना है, सबसे पास की बस्तियों में आग लगानी है, उन्हें दूर बसे अपने ही धर्म के लोगों की फिक्र की बात भला कैसे सूझेगी, क्यों सूझेगी? नतीजा यह है कि दुनिया के माहौल से बेखबर और बेफिक्र ऐसे धर्मान्ध और साम्प्रदायिक लोग हिन्दुस्तान में आग लगाकर यहां तो खुद बच निकलने की गारंटी कर लेते हैं, लेकिन दूसरे देशों में हिन्दुस्तानी लोग उसका दाम चुकाते हैं।

आज हिन्दुस्तान में धर्मान्धता, और साम्प्रदायिकता की जो आंधी चल रही है, उस बीच लोगों को यह भी दिखाई नहीं दे रहा है कि एक देश के रूप में भारत की सभ्य दुनिया में कितनी बेइज्जती हो रही है। और न सिर्फ दूसरे देशों के पूंजीनिवेशकों ने हाल ही के हफ्तों में बहुत बड़ी रकम हिन्दुस्तान से निकाल ली है, बल्कि चीन के विकल्प के रूप में भारत को जो महत्व मिलना था वह भी कहीं आसपास दिख नहीं रहा है। कुछ लोगों को हिंसक हिन्दुस्तानियों के हाथों में झंडे-डंडों से इसका रिश्ता समझ नहीं आएगा, लेकिन साम्प्रदायिकता की आग में झोंके जा रहे देश में पूंजीनिवेश करने भी लोग बाहर से नहीं आएंगे। आबादी के बहुसंख्यक हिस्से को जब सत्ता की तरफ से हिफाजत मिल जाती है, तब उसके भीतर अगर साम्प्रदायिक हिंसा सुलगती रहती है, तो वह लपटों में बदलने में वक्त नहीं लगता। और ऐसी लपटों में सबसे पहले अर्थव्यवस्था आती है, इस देश में भी, और इस देश के बाहर बसे हिन्दुस्तानियों की भी।

आज अफगानिस्तान के एक सिक्ख गुरुद्वारे को भारत में भाजपा प्रवक्ताओं के बयानों की वजह से इस्लामी आतंकियों का हमला झेलना पड़ा है। सिक्खों का इन बयानों से भी कोई लेना-देना नहीं था, और तो और इन प्रवक्ताओं में भी कोई निजी हैसियत में सिक्ख नहीं थे, लेकिन हिन्दुस्तानी होने की वजह से सिक्खों ने वहां कुछ साम्प्रदायिक हिन्दुओं के फैलाए जहर के दाम चुकाए हैं, अपनी जिंदगियां खोई हैं, और गुरुद्वारे पर हमला झेला है। देश के भीतर जो लोग बढ़ाई जा रही साम्प्रदायिकता पर चुप हैं, वे यह बात समझ लें कि दुनिया भर में जगह-जगह हिन्दुस्तानी लोग इसके दाम चुका रहे हैं, चुकाते रहेंगे। हिन्दुस्तान में जो लोग इस आग को आगे बढ़ाने में लगे हुए हैं, उनसे अफगानिस्तान के इस ताजा हमले को लेकर सवाल होने चाहिए कि यहां पर हिंसा फैलाते हुए क्या उन्हें दुनिया भर में बसे भारतवंशियों की फिक्र है?
(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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