संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : इस घर को आग लग गई घर के चिराग से, पार्टियों के बड़बोले नेताओं के खतरे
20-Jun-2022 4:54 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : इस घर को आग लग गई घर के चिराग से, पार्टियों के बड़बोले नेताओं के खतरे

Photo : Twitter

आज देश में कांग्रेस पार्टी से परे बाकी तमाम लोगों के लिए सेना में भर्ती की नई योजना अग्निपथ सबसे बड़ा मुद्दा बना हुआ है। कांग्रेस पार्टी की बात कुछ अलग है, उसके नए संचार प्रमुख, राज्यसभा सदस्य जयराम रमेश ने कल ही ट्वीट किया है कि आज 20 जून का देश भर का कांग्रेस का प्रदर्शन अग्निपथ के खिलाफ और राहुल गांधी पर केन्द्रित प्रतिशोध की राजनीति के खिलाफ रहेगा। आज जब देश की बहुत सी पार्टियां और संगठन अग्निपथ के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं, तो इस व्यापक मुद्दे से कांग्रेस पार्टी राहुल गांधी को जोडक़र अग्निपथ के महत्व को घटाने के अलावा और कुछ नहीं कर रही। खैर, जयराम रमेश आज अकेले ऐसे नेता नहीं हैं जो कि अपने बयान से आज अपनी पार्टी का नुकसान कर रहे हैं। भाजपा के कैलाश विजयवर्गीय ने कल वीडियो कैमरों के सामने जिस तरह यह बात कही कि अग्निपथ से भर्ती होने वाले सैनिक रिटायर होने के बाद भाजपा कार्यालय के सुरक्षाकर्मी बनने में प्राथमिकता पाएंगे, वह बात उनकी पार्टी का बहुत बड़ा नुकसान कर गई है, और भाजपा की अगुवाई वाली मोदी सरकार जो जनधारणा प्रबंधन करना चाह रही थी, कैलाश विजयवर्गीय ने उस कोशिश को मानो लात ही मार दी। दूसरी तरफ कल ही केन्द्र सरकार के एक मंत्री, जी.किशन रेड्डी ने औपचारिक प्रेस कांफ्रेंस में यह कहा कि अग्निवीरों को सेना से निकलने के बाद काम की कमी नहीं रहेगी क्योंकि उन्हें ड्राइवरी, बिजली मिस्त्री का काम, नाई और धोबी का काम सिखाया जाएगा। फिर मानो भाजपा इस तरह की बातों में आगे न निकल जाए इसलिए कांग्रेस के एक एमएलए इरफान अंसारी अपनी बेवकूफी की बातों के साथ दो दिनों से समाचार बुलेटिनों पर छाए हुए हैं, और अभी उनका यह बयान बार-बार दिखाया जा रहा है कि चार साल सैनिक रहकर निकले हुए लोग बाहर आकर हथियार उठा लेंगे, और सडक़ों पर खून-खराबा होगा। जिस तरह अग्निपथ योजना के खिलाफ प्रदर्शन करते हुए नौजवान भीड़ सडक़ों और पटरियों पर हिंसा कर रही है, कुछ उसी किस्म की हिंसा अलग-अलग पार्टियों के नेता कैमरा और माईक देखते ही कर रहे हैं, और लापरवाही और गैरजिम्मेदारी से बकवास करते हुए ये लोग अपनी खुद की पार्टी या अपनी खुद की सरकार को भी नुकसान पहुंचा रहे हैं।

लोगों को याद होगा कि अभी दो हफ्ते ही गुजरे हैं जब भाजपा के दो प्रवक्ताओं ने पार्टी को एक अभूतपूर्व और ऐतिहासिक मुसीबत में डाला है, और अपनी पार्टी के साथ-साथ उन्होंने इस पूरे देश को भी दुनिया के बीच हिकारत के घेरे में डाल दिया है, और एकमुश्त तमाम मुस्लिम देशों को भारत के आमने-सामने कर दिया है। उसके तुरंत बाद भी ऐसी अनौपचारिक खबर आई थी कि भाजपा के प्रवक्ता धर्म के मामलों पर नहीं बोलेंगे, कई और मुद्दों पर पार्टी के बड़े नेताओं से बात करने के बाद ही बोलेंगे, जिन्हें पार्टी ने अधिकृत किया है वे ही लोग टीवी चैनलों पर जाएंगे। इस अनौपचारिक खबर से ऐसा लगने लगा था कि अब भाजपा के प्रवक्ताओं की जुबान पर पार्टी की लगाम रहेगी। लेकिन जब कोई केन्द्रीय मंत्री, या कैलाश विजयवर्गीय सरीखे बड़े नेता किसी जलते-सुलगते मुद्दे पर ऐसे लापरवाही के शब्द इस्तेमाल करते हैं, तो यह समझ आता है कि पार्टी के प्रवक्ताओं और नेताओं पर पार्टी का कोई बस नहीं है। यही हाल दूसरी कई पार्टियों के बारे में भी कहा जा सकता है, और आज प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अपनी सुनाई अपने बचपन की कहानियों को लेकर उनकी आलोचना के साथ-साथ उनकी मां का भी जिस तरह का मजाक बनाया जा रहा है, उस पर भी कोई पार्टी अपने लोगों को कोई जिम्मेदारी सिखाते नहीं दिख रही है, क्योंकि हर पार्टी के पास भाजपा के कई नेताओं के इससे भी बुरे बयानों की मिसालें कायम हैं, और जुबानी गिरावट का यह सिलसिला बेधडक़ आगे बढ़ते चल रहा है।

आज अग्निवीरों को लेकर एक तरफ तो फौजी वर्दी पहने हुए बड़े अफसर मीडिया के सामने आकर उन्हें अपनी बराबरी का सैनिक बता रहे हैं, अपने बगल में सुला रहे हैं, अपने से किसी मायने में कम नहीं बता रहे हैं, और ऐसा करके वे सरकार की शांति कायम करने की नीयत का साथ दे रहे हैं। दूसरी तरफ सरकार के ही हिमायती लोग तरह-तरह से इन अग्निवीरों को मनरेगा मजदूरों से बेहतर गिनाकर लोगों को यह तुलना करने पर मजबूर कर रहे हैं कि अग्निवीर मनरेगा मजदूरों से तो बेहतर ही रहेंगे। सरकार के हिमायती इन लोगों को यह भी समझ नहीं है कि मनरेगा मजदूर सरहद पर जान कुर्बान करने के लिए नहीं जाते हैं, अपने गांव के बगल ही मिट्टी खोदते हैं। देश का सिलसिला कुछ तो सोशल मीडिया की मेहरबानी से, और कुछ बाकी मीडिया की मेहरबानी से भी इतना बिगड़ चुका है कि अब लोग सेना भर्ती के तरीके पर उठाए सवालों को सेना को कमजोर करने की साजिश कह रहे हैं, दुश्मन देश की सेना को मजबूत करने की साजिश कह रहे हैं। जिसके मुंह में जो आ रहा है वह कहे जा रहे हैं, और जो बात जितनी अधिक अटपटी है, जितनी अधिक खटकने वाली है, वह मीडिया में उतनी ही अधिक अहमियत भी पा रही है। ऐसा लगता है कि जो सोशल मीडिया, और मीडिया भी, लोकतंत्र का बड़ा औजार माने जाते हैं, वे एक ऐसी लाठी बन गए हैं जिसे घुमा-घुमाकर लोकतंत्र के टुकड़े किए जा रहे हैं।

आज हर मोबाइल फोन एक मीडिया संस्थान बन गया है, और हर नागरिक मीडियाकर्मी। ऐसे में रद्दी से रद्दी नेता को भी कई कैमरे नसीब हो जाते हैं, और सामने कैमरे देखकर, खबरों में आने की उनकी हसरत उमडऩे लगती है, और वे अपनी पार्टी या अपने संगठन का नुकसान भी करने की कीमत पर उटपटांग बोलने लगते हैं। कल तक मोदी सरकार के विरोधी यह कह रहे थे कि चार साल बाद फौज से निकलकर अग्निवीर दर्जे के सैनिक अडानी और अंबानी के सिक्यूरिटी गार्ड बन पाएंगे, कैलाश विजयवर्गीय ने चार कदम आगे बढक़र उन्हें भाजपा दफ्तर का सिक्यूरिटी गार्ड बना दिया। फिर मानो कैलाश विजयवर्गीय के मुकाबले केन्द्रीय मंत्री जी.किशन रेड्डी को हीनभावना होने लगी, तो उन्होंने रिटायर्ड अग्निवीरों को ड्राइवर, बिजली मिस्त्री, नाई और धोबी बना दिया। अब देश के दर्जनभर राज्यों में लगी हुई आग को बुझाने में लगी मोदी सरकार को उसके घर के चिरागों से ही आग लग रही है। बहुत सी दूसरी विपक्षी पार्टियों के पास जलने लायक कुछ बचा नहीं है, इसलिए उन्हें आज समझ नहीं आ रहा है कि उनके नेता और प्रवक्ता उनका क्या नुकसान कर रहे हैं। हिन्दुस्तान के मीडिया की दिक्कत यह हो गई है कि सोशल मीडिया के बीच जिंदा रहने के लिए उसे तरह-तरह से सोशल मीडिया की अराजकता से मुकाबला करना पड़ता है। फिर यह भी है कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया अपने ग्राहकों की जरूरतों, और अपनी तकनीक की सीमाओं के चलते हुए चाहे-अनचाहे सनसनी पर ही जिंदा रहता है, और अधिक गैरजिम्मेदारी उसे अधिक कामयाब भी बनाती है।

इस पूरे दौर में राजनीतिक दलों को एक ही सहूलियत है कि उसके बकवासी नेताओं के मुकाबले दूसरी पार्टियों में भी बकवासी नेता हैं, और नुकसान किसी एक पार्टी का ही नहीं हो रहा है। लेकिन तमाम पार्टियों के नुकसान होने को राहत मानने वाली हिन्दुस्तानी राजनीति इस बात की तरफ से बेफिक्र और बेखबर है कि इससे हिन्दुस्तान की सार्वजनिक जीवन की हवा जहरीली होती चल रही है, और यहां पर अब कोई न्यायसंगत, तर्कसंगत संवाद मुमकिन नहीं रह गया है।
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