संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : परिवार का आकार और खर्च दोनों छोटे बनाए रखें
21-Jun-2022 5:10 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : परिवार का आकार और खर्च दोनों छोटे बनाए रखें

मुम्बई की एक रिपोर्ट है कि 2021 में वहां नए जन्म का रजिस्ट्रेशन कोरोना के पहले के बरस 2019 के मुकाबले 24 फीसदी गिर गया है। 2019 में 1 लाख 48 हजार से अधिक जन्म रजिस्ट्रेशन हुआ था, जो 2020 में गिरकर 1 लाख 20 हजार हो गया, अब 2021 में वह कुल 1 लाख 13 हजार रह गया है। इसकी एक बड़ी वजह मुम्बई में बाहर से आकर काम करने वाले लोगों का लॉकडाउन के दौरान अपने गांव लौट जाना रहा, और उसके बाद से अब तक वे सारे लोग काम पर लौटे नहीं हैं। ऐसा भी नहीं है कि जो काम मुम्बई में हासिल था, वह अपने गांव या कस्बे में मिल रहा होगा, लेकिन लॉकडाउन के दौरान महानगरों से जो हौसला टूटा, तो वह फिर जुड़ नहीं पाया। ऐसा भी देखा गया है कि मजदूर अगर लौटकर आ भी गए हैं, तो भी उनके परिवार नहीं लौटे हैं, और नतीजा यह है कि अगर उनमें नई संतान होती भी है तो उसका रजिस्ट्रेशन कहीं और हुआ होगा। लोगों को लगा कि मुसीबत के वक्त न मालिक काम आए, न महानगर।

ऐसे कामगारों के अलावा जानकारों का यह भी अंदाज है कि मुम्बई में जन्म घटने के पीछे लोगों पर छाई हुई आर्थिक अनिश्चितता भी एक वजह थी। मंदी छाई हुई थी, लोगों को यह समझ नहीं पड़ रहा था कि कोई भी नया खर्च वे कैसे उठाएंगे, और अस्पतालों के नाम से दहशत हो रही थी। ऐसे में बीमारी और बदहाली से घिरे हुए लोगों ने चाहे-अनचाहे यह समझदारी दिखाई कि ऐसे दौर में परिवार नहीं बढ़ाए। जबकि खतरा यह था कि महीनों तक घर बैठे हुए लोग आबादी बढ़ा सकते थे, लेकिन वह नौबत नहीं आई। हो सकता है कि पूरे देश के ऐसे आंकड़े कुछ और तस्वीर दिखाएं क्योंकि पूरा देश तो महानगर मुम्बई है नहीं। लेकिन ऐसा लगता है कि देश की बड़ी आबादी ने आज की आर्थिक हकीकत का अहसास करते हुए यह समझ लिया है कि नए मुंह और पेट तुरंत कमाने वाले नए हाथ लेकर नहीं आने वाले हैं, और इसलिए अच्छे कहे जाने वाले दो बच्चों का भी यह शायद सही वक्त नहीं है।

अभी आबादी के आंकड़ों को लेकर तो हम अधिक विश्लेषण करना नहीं चाहते क्योंकि पूरे देश के आंकड़े सामने भी नहीं हैं, और कोरोना-लॉकडाउन के इस दौर को लेकर अधिक अटकल भी नहीं लगानी चाहिए। लेकिन एक बात तय है कि हिन्दुस्तान में आज जिंदा रहना जितना महंगा हो गया है, पढ़ाई और इलाज जिस तरह लोगों की पहुंच के बाहर होते चल रहा है, रोजगार सिमटते चल रहे हैं, इन सबको देखते हुए लोगों को पहले कमाई की गारंटी करनी चाहिए, उसके बाद ही शादी या नए परिवार जैसे खर्च बढ़ाने चाहिए। आज परिवार को बढ़ाना एक दिन का खर्च नहीं है, जन्म और अस्पताल का बिल तो एक बार ही जुट सकता है, लेकिन नई जिंदगी का रोजाना का खर्च, और किसी परेशानी के वक्त अचानक आने वाला खर्च जुटाना आज अधिकतर लोगों की पहुंच के बाहर हो चुका है। आज एक बार फिर अग्निपथ और अग्निवीर के बारे में लिखने का कोई इरादा नहीं है, लेकिन सेना से चार बरस बाद रिटायर कर दिए जाने वाले अग्निवीरों को केन्द्रीय सुरक्षा बलों, राज्य सरकारों, या निजी कंपनियों में नौकरी देने का भरोसा या गारंटी उस वक्त बेमायने लगते हैं जब यह दिखता है कि सरकारी से लेकर निजी क्षेत्र तक लगातार नौकरियों की कटौतियां चल रही हैं, सरकारों में लाखों कुर्सियां सोच-समझकर खाली रखी गई हैं, ताकि तनख्वाह का बोझ घट सके। यह नौबत न तो अग्निपथ से सुधरने वाली है, न ही अधिक बिगडऩे वाली है। इसलिए लोगों को परेशानी से जूझने की अपनी क्षमता पर अधिक भरोसा करना चाहिए, अच्छे दिन आने की उम्मीद पर कम भरोसा करना चाहिए।

लोगों को परिवार बढ़ाने से परे भी अपने खर्चों पर काबू रखना चाहिए, क्योंकि आज जो कमाई है, वह कल जारी रह सकेगी इसकी कोई गारंटी नहीं हैं। दूसरी तरफ बढ़े हुए खर्च कम कर पाना आसान नहीं रहता, इस बात की तो गारंटी सी रहती है। भारत जैसे देश में सकल राष्ट्रीय उत्पादन के आंकड़े चाहे हौसला बहुत पस्त न करें, लेकिन यह याद रखने की जरूरत है कि इन आंकड़ों में मनरेगा मजदूरों से लेकर अडानी-अंबानी की कमाई के, उत्पादन के आंकड़े भी शामिल हैं। और आज देश में कमाई का जो अनुपातहीन बंटवारा है, उसमें अडानी-अंबानी की दोगुनी होती दौलत और कई गुना बढ़ती कमाई के आंकड़ों से देश के गरीब और मध्यम वर्ग को खुश होने की जरूरत नहीं है। आने वाला वक्त इससे और अधिक कड़ा हो सकता है, और लोगों को न सिर्फ अपने काम को बेहतर करने की कोशिश करनी चाहिए ताकि हुनर के बाजार में उनकी कद्र बनी रहे, बल्कि उन्हें लगातार अपने खर्चों पर काबू भी रखना चाहिए। अभी पूरी दुनिया में आसमान पर पहुंच रही महंगाई के कम होने का आसार नहीं दिख रहा है, और लोगों को खर्च घटाते जाने की कोशिश भी करनी चाहिए।
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