सामान्य ज्ञान
ड्रायोपिथेकस वनमानुष सदृश जंतुओं की विलुप्त जाति है, जो आधुनिक वनमानुष और मनुष्य के पूर्वज सामान्य छोटे वनमानुषों का प्रतिनिधित्व करती है। हालांकि ड्रायोपिथेकस को यूरोप, अफ्रीका और एशिया समेत विस्तृत क्षेत्रों में प्राप्त अवशेषों के आधार पर अलग-अलग नाम दिए गए हैं, लेकिन यह प्रतीत होता है कि ये एक ही प्रजाति से संबंधित हैं। ड्रायोपिथेकस के जीवाश्म 16 लाख से साढ़े 23 लाख वर्षे पुरानी मध्यनूतन और अतिनूतन युग की चट्टïानों से प्राप्त हुए थे तथा संभवत: इनकी उत्पत्ति अफ्रीका में हुई थी।
ड्रायोपिथेकस के विभिन्न स्वरुप ज्ञात हैं कि, जिनमें छोटे, मध्यम और बड़े कद के गुरिल्ला के आकार के जंतु शामिल हैं। देखा जाए तो ड्रायोपिथेकस एक सामान्य वनमानुष है और इससे ऐसा कोई विशेष लक्षण नहीं है जो आधुनिक वनमानुष को आधुनिक मानव से अलग करता हो। ड्रायोपिथेकस के रदनक (कैनाइन) दांत मनुष्य की तुलना में बड़े अवश्य थे, लेकिन आधुनिक गुरिल्लो के समानेे मजबूत नहीं थे। इसके पैर ज्यादा लंबे नहीं हैं, जो पेड़ों पर चढऩे और झूलने के लिए वनमानुषों में एक किस्म का अनुकूलन है। इसके अतिरिक्त आधुनिक गुरिल्ला में विकसित खोपड़ी के उभार और भौंहों की हड्डिïयों का इसमें अभाव था।
संभवत: मूल ड्रायोपिथेकस से ही आधुनिक गुरिल्ला और चिंपांजी की उत्पत्ति हुई है। मध्य नूतन युग के जीवाश्म से लगता है कि ड्रायोपिथेकस से पहले मानव जैसी प्रजाति की उत्पत्ति हुई , जो बाद में मानव में परिवर्तित हो गई। इसके निकट ड्रायोपिथेसीन कुल की एक शाखा का वशंज, रामापिथेकस था, जिसकी दंत रचना अधिक विकसित थी। ड्रायोपिथेकस संभवत: वन्य क्षेत्रों में रहता था।