संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : सिंगल यूज प्लास्टिक पर रोक लगेगी या फिर यह आदेश रद्दी की टोकरी में?
01-Jul-2022 4:08 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : सिंगल यूज प्लास्टिक पर रोक लगेगी या फिर यह आदेश रद्दी की टोकरी में?

हिन्दुस्तान में आज से सिंगल यूज प्लास्टिक पर रोक लग रही है। अलग-अलग प्रदेशों में पिछले कुछ बरसों में धीरे-धीरे यह सिलसिला चल रहा था, लेकिन आज से केन्द्र सरकार ने पूरे देश में प्लास्टिक की ऐसी थैलियों और दूसरे सामानों पर रोक लगा दी है जिन्हें एक बार इस्तेमाल करके फेंक दिया जाता है, और दुबारा इस्तेमाल नहीं होता। उसमें चाय-पानी के लिए प्लास्टिक के गिलास, चम्मच-प्लेट, पतली पन्नियों की थैलियां जैसी बहुत सी चीजें शामिल हैं। केन्द्र सरकार ने सभी प्रदेशों को ऐसे सामानों की आवाजाही को रोकने के लिए आदेश भी दिया है। इसके तहत कान साफ करने के रूई लगे प्लास्टिक के डंडियों वाले ईयरबड, झंडे, पीपरमेंट और आईस्क्रीम की डंडियां, थर्मोकोल, प्लेट, कप, गिलास, निमंत्रण पत्र, और सिगरेट के पैकेट पर प्लास्टिक, पीवीसी के बैनर, जैसे डेढ़ दर्जन से अधिक चीजें हैं। अगर धरती को बचाना है तो इस एक आदेश को एक और रद्दी कागज साबित करने के बजाय राज्य सरकारों और खासकर स्थानीय संस्थाओं को ध्यान देना होगा, क्योंकि केन्द्र सरकार दिल्ली में बैठे हुए पूरे देश में इस पर अमल नहीं कर सकती। प्रदेशों को भी औद्योगिक क्षेत्रों, बाजारों की जांच करनी होगी ताकि ऐसे सामान न बने, और न बिकें। एक बार छोटे ठेलों और छोटी दुकानों तक सामान अगर पहुंच जाएंगे, तो उनका इस्तेमाल रोकना किसी के बस में नहीं रहेगा।

केन्द्र सरकार की बनाई हुई यह लिस्ट अमल के हिसाब से मुश्किल नहीं है। इनमें से सभी सामानों के कागज या दूसरे विकल्प मौजूद हैं, और हो सकता है कि शुरू में उनके दाम कुछ अधिक हों, लेकिन इस्तेमाल बढऩे के बाद उनका उत्पादन बढ़ेगा, और वे सस्ते हो जाएंगे। लेकिन जो अकेला सामान सबसे अधिक इस्तेमाल होता है, वह है पॉलीथीन की थैली। इसका आसान विकल्प कपड़े और जूट के थैले हो सकते हैं, जो कि हिन्दुस्तान में परंपरागत रूप से चलते भी आए हैं। पहले घरों में फटी चादर या दूसरे कपड़ों से थैले सिल लिए जाते थे, जो बरसों तक काम आते थे। लोग बाजार जाते हुए एक थैले के भीतर चार थैले रखकर ले जाते थे, और लौटने में सबमें सामान भरकर लाते थे। अब तो कई किस्म के सिंथेटिक कपड़े ऐसे आ गए हैं जो कि बहुत पतले भी हैं, और बहुत मजबूत भी हैं। उनकी बनी हुई थैलियां आसानी से जेब में आ जाती हैं, और महीनों या बरसों तक साथ दे सकती हैं। राजस्थान में पुरानी साडिय़ों से रोजाना के इस्तेमाल के थैले बनाने का चलन है, और किराने या दूसरे सामानों के दुकानदार ग्राहकों को मुफ्त में ही ऐसे थैलों में सामान भरकर देते हैं। ऐसा काम बड़े पैमाने पर पूरे देश में किया जाना चाहिए, और इसके लिए हर जगह अब महिलाओं के तरह-तरह के समूह मौजूद हैं जिन्हें मामूली सिलाई मशीन देकर, कारखानों से निकलने वाले कपड़ों के टुकड़े देकर उनके सामानों का एक स्थानीय बाजार बनाया जा सकता है।

हिन्दुस्तान एक धर्मप्रधान देश है, और यहां धर्म के नाम पर लोग अपनी खुद की बलि देने के लिए तैयार हो जाते हैं, अपने बदन के हिस्से काटकर चढ़ा देते हैं। ऐसे में अगर देश के सभी धर्मस्थान पॉलीथीन बैग्स पर रोक लगा दें, वहां भीतर उन्हें घुसने न दें, तो कपड़ों की थैलियों का चलन एकदम से बढ़ सकता है। इस काम को केन्द्र सरकार के किसी आदेश के बिना भी राज्य सरकार और स्थानीय शासनों को अपने स्तर पर बहुत पहले से कर लेना था, और हम बरसों से इसी कॉलम में इस बात की सलाह भी देते आ रहे थे। अब देश भर में एकाएक प्लास्टिक थैलियों की कमी हो जाए, उसके पहले सत्तारूढ़ उत्साही लोगों को अपने-अपने कार्यक्षेत्र में महिलाओं को इस काम में लगाना चाहिए, उन्हें जूट के कपड़े, या दूसरे किस्म के सस्ते और मजबूत कपड़े दिलवाने चाहिए ताकि रोजगार का एक नया जरिया भी पैदा हो सके।

लोगों को जिस तरह मोबाइल फोन लेकर चलने की आदत है, या दुपहिया चालकों से उम्मीद की जाती है कि वे हेलमेट लेकर चलें, उसी तरह अब लोगों को घर से ही कपड़े या जूट की थैलियां लेकर निकलना चाहिए, और धरती पर बोझ बढ़ाने से बचना चाहिए। प्लास्टिक की छोटी सी थैली दिखने में पतली लगती है, लेकिन उसे नष्ट होने में हजारों बरस लग सकते हैं, इसलिए लोगों को अपनी आने वाली पीढिय़ों पर रहम करना चाहिए। लोग अपनी कई पीढिय़ों तक के लिए मकान, जमीन, या दौलत तो बनाकर छोड़ जाते हैं, लेकिन उनके लिए एक साफ-सुथरी धरती छोडक़र जाने की उन्हें फिक्र नहीं रहती। वे इस परले दर्जे का प्रदूषण छोडक़र जा रहे हैं, जंगलों को इस हद तक काट रहे हैं, नदियों और समंदर को जहरीला कर दे रहे हैं, और वे एक गंदगी के बीच बच्चों का भविष्य छोडक़र जा रहे हैं। भारत में आज से लागू हो रहा यह नया प्रतिबंध शुरू के कुछ महीनों में लोगों पर भारी पड़ सकता है क्योंकि हिन्दुस्तानी लोग सार्वजनिक जीवन के नियमों को मानने के आदी नहीं रह गए हैं। फिर यह भी है कि सरकारी स्तर पर नियमों को लागू करना सबसे ही कमजोर काम है, और सरकारी अमला या तो भ्रष्ट है, या निकम्मा है, और अधिकतर मामलों में ये दोनों ही बातें उस पर लागू होती हैं। इसलिए सरकारी व्यवस्था पर अधिक भरोसा किए बिना स्थानीय संस्थाओं, व्यापारिक और सामाजिक संगठनों को जूट और दूसरे किस्म के कपड़ों का इंतजाम करके महिलाओं को सिलाई के काम में लगाना चाहिए, और इससे ही धरती बच सकेगी। देश के बहुत से महानगर बारिश में बुरी तरह डूब जाते हैं, और उसकी एक वजह नालियों में जाकर फंसने वाली प्लास्टिक की ऐसी थैलियां भी हैं। इसलिए तमाम लोगों को इस नौबत से बचने के लिए जागरूकता दिखानी चाहिए।
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