संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : दंगाई मीडिया जिंदाबाद, और सच्चाई मीडिया जेल में, यह कैसा लोकतंत्र है?
02-Jul-2022 5:52 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय :  दंगाई मीडिया जिंदाबाद, और सच्चाई मीडिया जेल में, यह कैसा लोकतंत्र है?

Photo : Twitter

हिन्दुस्तान में नफरत और साम्प्रदायिकता फैलाने के लिए हिन्दी के जिन समाचार चैनलों पर सबसे अधिक तोहमत लगती है, उसके समाचार-मुखिया के चैनल छोडऩे की खबर कल आई, तो कुछ लोगों ने राहत की सांस ली कि इस आदमी की नफरत अब एक चैनल पर नहीं दिखेगी। लेकिन फिर उसके इस्तीफे में यह पढक़र कि वह अपना खुद का कोई कारोबार शुरू कर रहा है लोग फिर फिक्र में पड़ गए कि यह तो नफरत की अपनी खुद की मालिकाना दुकान शुरू कर रहा है, अब पता नहीं और क्या करेगा। लेकिन जिस चैनल को छोडक़र वह निकल रहा था, उसे भी इसके जाने के बाद धंधे में बने रहना है, और वहां बाकी लोगों पर यह जिम्मेदारी भी आ गई थी कि इस आदमी की कमी न खलने दें। इसलिए कल जीन्यूज में बड़े जोर-शोर से एक समाचार दिखाया गया जिसमें राहुल गांधी का एक वीडियो दिखाया जा रहा था जिसमें वे कुछ हमलावरों को बच्चा कह रहे थे। इस वीडियो के साथ जीन्यूज के एंकर ने कहा कि राहुल गांधी ने उदयपुर हत्याकांड के आरोपियों को बच्चा कहा है। उसने कहा कि इस बर्बरता को देश का हर वर्ग सीधे-सीधे कह रहा है कि ये गलत है, और इसको कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए। एंकर ने आगे कहा कि राहुल गांधी विपक्ष के सबसे बड़े नेता के तौर पर हैं, और उनका कहा सबके सामने बहुत मायने रखता है, राहुल गांधी अगर उन आरोपियों को बच्चा कह रहे हैं, और फिर सोचें ये आगे क्या संदेश लेकर जाता है, क्या कन्हैया को मारने वाला, बेरहमी से उसका कत्ल करने वाला बच्चा था?

अब जीन्यूज के इस समाचार के वीडियो के साथ देश के एक पिछले केन्द्रीय सूचना प्रसारण राज्यमंत्री राज्यवर्धन राठौर सहित ढेर सारे भाजपा सांसदों, विधायकों, भाजपा प्रवक्ताओं, और आक्रामक हिन्दुत्व वाले कई टीवी पत्रकारों ने इसे री-ट्वीट किया, और बताया कि राहुल गांधी कन्हैया के हत्यारे को बच्चा कह रहे हैं, और इस तोहमत के साथ राहुल गांधी पर आतंकी, गद्दार, देशद्रोही होने जैसी तमाम तोहमतें भी लगाई गईं। यह सिलसिला कुछ घंटे चलते रहा, ऐसी हिंसक-हिन्दुत्व सोच रखने वाले लोगों ने इसे वॉट्सऐप पर खूब चलाया, चारों तरफ फैलाया। बड़े नामी-गिरामी टीवी पत्रकारों ने इसे आगे बढ़ाया। लेकिन कांग्रेस पार्टी ने राहुल गांधी की बात का पूरा वीडियो जारी करते हुए जीन्यूज के फर्जीवाड़े का भांडाफोड़ किया। इस पूरे वीडियो में राहुल गांधी यह कहते दिख रहे हैं कि केरल के वायनाड में उनके संसदीय कार्यालय में जिन लोगों ने तोडफ़ोड़ की है, वे बच्चे हैं। उन्होंने कहा कि यह काम अच्छा नहीं है, लडक़ों ने गैरजिम्मेदाराना हरकत की है, लेकिन वे बच्चे हैं। उन्होंने यह भी कहा यह उनका संसदीय कार्यालय तो है, लेकिन उसके पहले वह वायनाड के लोगों का दफ्तर है, उनकी आवाज का दफ्तर है, इसलिए यह हमला दुर्भाग्यजनक है। उन्होंने कहा कि हमलावर बच्चे थे, और उन्होंने गैरजिम्मेदारी का काम किया है। जब कई अलग-अलग समाचार-कैमरों की रिकॉर्डिंग में राहुल गांधी का यही पूरा भाषण निकलकर सामने आया, और कांग्रेस पार्टी ने भी इस पूरे भाषण को पोस्ट किया, तब जाकर जीन्यूज ने अपने उस समाचार बुलेटिन को इंटरनेट से हटाया, और अगले समाचार बुलेटिन में अपनी गलती मानी, लेकिन इसका कोई जिक्र नहीं किया कि राहुल गांधी पर उन्होंने तीन हत्यारों को बच्चा कहने का झूठ कहा था। अपने उस गलत काम के जिक्र के बिना उन्होंने सिर्फ अपनी जानकारी को गलत करार दिया, जिसे लेकर उसके खिलाफ कई किस्म की कानूनी कार्रवाई आज हो सकती है। यह कार्रवाई कांग्रेस और राहुल गांधी की साजिशन बेइज्जती की तो हो ही सकती है, यह कार्रवाई धार्मिक उन्माद और साम्प्रदायिक नफरत फैलाने की भी हो सकती है। अभी कल ही सुप्रीम कोर्ट भाजपा की प्रवक्ता की हैसियत से ऐसे ही एक दूसरे समाचार चैनल पर नफरत और साम्प्रदायिक हिंसा फैलाने वाली नुपूर शर्मा के बारे में बोल चुका है कि उदयपुर में इस हत्या और देश के आज के हिंसक माहौल की जिम्मेदार वह अकेली है। अब यह दूसरा समाचार चैनल और यह दूसरा एंकर कल ही से यह साबित करने में जुट गए कि वे नुपूर शर्मा और उसके वाले समाचार चैनल से कम नहीं हैं, और अपना चैनल कल ही छोडक़र जाने वाले सुधीर चौधरी नाम के ऐसे ही एक नफरतजीवी से भी कम नहीं है।

हिन्दुस्तान में बहुत से, या शायद बेहतर यह कहना होगा कि अधिकतर, समाचार चैनलों का काम अब झूठ के सहारे से नफरत फैलाकर, हिंसा फैलाकर अपने लिए दर्शक जुटाने का रह गया है। ऐसे देश और ऐसे मीडिया का जहर सरकार कब तक फैलने देगी यह समझ नहीं पड़ता है। केन्द्र सरकार के मातहत ऐसी संवैधानिक या नियामक संस्थाएं हैं जो कि मीडिया की ऐसी साम्प्रदायिक साजिशों पर बड़ी सख्त कार्रवाई करने के लिए बनी हैं। केन्द्र सरकार चाहे तो ऐसे साजिशन झूठ के लिए इन या किन्हीं और समाचार चैनलों को बंद भी कर सकती है, उनके खिलाफ साम्प्रदायिक दंगे भडक़ाने के मुकदमे भी कर सकती है, लेकिन ऐसा कुछ किया नहीं जा रहा है। यह सिलसिला इस देश के लोकतंत्र को गड्ढे में धकेल रहा है। लोकतंत्र से भी पहले जो तथाकथित इंसानियत की बुनियादी बातें रहना चाहिए, उन्हें भी हिन्दुस्तान में कुचल दिया जा रहा है। आने वाली पीढिय़ों के सामने एक सबसे ही खराब मिसाल पेश की जा रही है कि यही लोकतंत्र में मान्यताप्राप्त तौर-तरीके हैं, और यही लोकतंत्र है।

इस जगह पर यह भी याद करना जरूरी है कि अभी कुछ दिन पहले ही देश की एक प्रमुख समाचार फैक्टचेक वेबसाइट, ऑल्टन्यूज के सहसंस्थापक मोहम्मद जुबैर को एक ऐसे ट्वीट के लिए गिरफ्तार किया गया है जिसमें उन्होंने ऋषिकेश मुखर्जी की एक पुरानी फिल्म का एक फोटो पोस्ट किया था। इस पोस्ट के खिलाफ एक बेनाम ट्विटर-हैंडल की तरफ से पुलिस को शिकायत की गई थी, उस पर पुलिस ने आनन-फानन यह कार्रवाई की। और इस शिकायत के तुरंत बाद वह ट्विटर-हैंडल बंद कर दिया गया, और आज सुबह की खबर है कि उसे दूसरे कई सौ ट्विटर-हैंडलों के साथ-साथ गुजरात का एक नेता अकेले ही चला रहा था, और इन सबका अभियान ऑल्टन्यूज को बदनाम करना था, उस पर हमला करना था क्योंकि ऑल्टन्यूज जितने भांडाफोड़ कर रहा है, उसमें से बहुत सारे धार्मिक और साम्प्रदायिक झूठ के समाचार को उजागर करते हैं।

देश में यह सवाल भी पिछले दो-चार दिनों से लगातार खड़ा हुआ है कि नुपूर शर्मा अपने आपको राष्ट्रीय समाचार चैनल कहने वाले एक बड़े समाचार चैनल पर मोहम्मद पैगंबर के बारे में आपत्तिजनक बातें कहकर भी अब तक पुलिस की पकड़ से बाहर है, दूसरी तरफ देश में साम्प्रदायिक, और दूसरे किस्म के झूठ फैलाने वाले समाचारों का झूठ उजागर करने वाला ऑल्टन्यूज का पत्रकार एक बेचेहरा ट्विटर-हैंडल की शिकायत पर जेल में है। यह हालत लोकतंत्र के लिए कई किस्म के सबक की है। जिन लोगों को लगता है कि यह सिर्फ मीडिया की परेशानी की बात है, वे ये जान लें कि जिस दिन आजाद मीडिया नहीं रहेगा उस दिन वे महज गुलाम नागरिक रहेंगे। आज इस देश में दंगाई मीडिया को जिंदाबाद कहा जा रहा है, और सच्चाई मीडिया को जेल में डाला जा रहा है, लोकतंत्र की इस खतरनाक नौबत के बारे में लोगों को चर्चा करने की जरूरत है।
(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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