संपादकीय
दुनिया के एक सबसे बड़े कारोबारी एलन मस्क ने कुछ महीने पहले एक हैरतअंगेज दाम पर ट्विटर खरीदने की घोषणा की थी, और इस कंपनी के साथ खरीद-बिक्री के समझौते पर महीनों से उनकी बातचीत चल रही थी। इस बीच कारोबारी दुनिया के जानकार लोग हैरान हो रहे थे कि कर्ज लेकर इस दाम पर ट्विटर को खरीदकर एलन मस्क आखिर क्या हासिल करेंगे? और इतने पूंजीनिवेश को कैसे कमाई में बदल पाएंगे। लेकिन एक जिद्दी और सनकी कामयाब कारोबारी के रूप में एलन मस्क अड़े हुए थे, और कंपनी लेने के रास्ते पर वे आगे बढ़ रहे थे। अभी कल ऐसी खबर आई है कि वे इसे नहीं खरीदना चाहते क्योंकि खरीद-बिक्री का जो समझौता हुआ था उसके मुताबिक ट्विटर पर फर्जी या मशीनी अकाउंटों की जो जानकारी ट्विटर को देनी थी, उससे वह कतराती रही। एलन मस्क का शुरू से ही यह शक था कि ट्विटर इस्तेमाल करने वाले लोगों के जितने अकाउंट हैं, उनमें से बहुत से फर्जी या मशीनों से चलने वाले हैं, जिन्हें असली नहीं कहा जा सकता। वे ऐसे अकाउंट खत्म करने की बात भी कर रहे थे। वे सनकी हैं, लेकिन अभिव्यक्ति की आजादी के बड़े हिमायती हैं, और इतने बड़े हिमायती हैं कि यह उम्मीद भी की जा रही थी कि झूठी पोस्ट करने की वजह से अकाउंट खो बैठे पिछले अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप का ट्विटर खाता भी फिर से खुल सकता है अगर मस्क इसे खरीद लेते हैं। इस तरह मस्क की अभिव्यक्ति की आजादी सुनने में सभी को अच्छी लगती थी, लेकिन बहुत से लोगों के लिए वह फिक्र भी खड़ी कर रही थी क्योंकि उससे झूठ और नफरत फैलाने वालों को भी आजादी मिलने वाली थी।
यह एक संयोग है कि जब नकली या मशीनी ट्विटर-हैंडल की बात कहते हुए मस्क यह सौदा तोड़ रहे हैं, या तोड़ चुके हैं, तो उसके कुछ ही दिन पहले हिन्दुस्तान की एक प्रमुख समाचार-विचार वेबसाइट, द वायर, ने एक रिपोर्ट पेश की जिसमें यह बताया गया कि भारत में झूठी खबरों का भांडाफोड़ करने वाली वेबसाइट ऑल्टन्यूज के खिलाफ ट्विटर पर अभियान चलाने वाले 757 ट्विटर अकाउंट गुजरात के एक युवा भाजपा नेता से जुड़े हुए थे, और वे एक एप्लीकेशन के माध्यम से चलाए जा रहे थे, और इन्हीं अकाउंट में से एक अकाउंट से ऑल्टन्यूज के पत्रकार मोहम्मद जुबैर के खिलाफ पुलिस शिकायत की गई थी। यह लंबी रिपोर्ट बताती है कि किस तरह कम्प्यूटर एप्लीकेशन का इस्तेमाल करके गिने-चुने लोग ही सैकड़ों ट्विटर अकाउंट चलाते हैं, और फिर किसी को निशाना बनाकर उसके खिलाफ अभियान छेड़ देते हैं। जांच में यह भी पता लगा कि कुछ अकाउंट तो चौबीसों घंटे ऐसी हमलावर ट्वीट करते रहते हैं, जिन्हें कि मानवीय रूप से असंभव काम बताया गया। लेकिन 750 से अधिक ऐसे अकाउंट गुजरात के भारतीय जनता युवा मोर्चा के सहसंयोजक विकास अहीर के ईमेल एड्रेस से जुड़े हुए निकले, और फिर यह खुलासा हुआ कि किस तरह इन्हें कम्प्यूटर एप्लीकेशन द्वारा एक साथ चलाया जा रहा था।
अब आज जब दुनिया में ट्विटर को समाचारों का पहला स्रोत माना जा रहा है, जब दुनिया के हर किस्म के शासन और राष्ट्रप्रमुख, सबसे बड़े कारोबारी, सबसे बड़े खिलाड़ी और कलाकार, पत्रकार और लेखक अपनी बात सबसे पहले ट्विटर पर रखते हैं, और फिर उनमें से एक-एक पर लाखों लोगों की प्रतिक्रियाएं आती हैं, तो फिर ऐसे प्लेटफॉर्म का ईमानदार बने रहना भी दुनिया में समाचार-विचार की स्वतंत्रता के लिए जरूरी है। आज हिन्दुस्तान में जिस तरह एक खास विचारधारा के समर्थन में, और बाकी विचारधाराओं के खिलाफ एक भयानक संगठित हमलावर फौज काम कर रही है, और जिसके बारे में यह उजागर होते ही रहता है कि उनमें से एक-एक लोग सैकड़ों ट्विटर अकाउंट चलाते हैं, तो फिर इस फर्जीवाड़े का खत्म होना भी जरूरी है। अभी ट्विटर खरीदने का सौदा इसी बात पर टूटा है कि इसकी कंपनी संभावित खरीददार को यह बताने तैयार नहीं है कि उसके कितने फीसदी अकाउंट फर्जी हैं। किसी कंपनी के कारोबार के लिए फर्जी आंकड़े फायदे के हो सकते हैं जैसे कि हिन्दुस्तान में अखबारों के खरीददारों या टीवी समाचारों के दर्शकों के आंकड़ों में भयानक फर्जीवाड़ा चलते ही रहता है। लेकिन अगला मालिक अगर पिछले मालिक से एक जानकारी मांग रहा है, और उसे वह देने से मुंह चुराया जा रहा है, तो इसका एक मतलब यह दिखता है कि फर्जीवाड़ा काफी बड़ा है, और पूरे आंकड़े सामने आ जाने पर ऐसा खतरा दिख रहा होगा कि एलन मस्क उसे खरीदने से इंकार कर दे।
आज टेक्नालॉजी ने अखबारों के सर्कुलेशन के फर्जी आंकड़ों के कारोबार को बचकाना साबित कर दिया है। आज बड़े-बड़े नेताओं और शोहरत पाए हुए लोगों को फेसबुक, ट्विटर, और इंस्टाग्राम जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर फॉलोअर खरीदने की सहूलियत हासिल है, और लाखों फर्जी फॉलोअर खरीदे जा सकते हैं। यह देखना दिलचस्प रहता है कि किस तरह छत्तीसगढ़ के एक नेता के जितने फॉलोअर टर्की में हैं, उतने छत्तीसगढ़ में भी नहीं हैं। फिर जब ऐसे फर्जी फॉलोअर एक हमलावर फौज का हिस्सा रहते हैं, तो वे लोकतंत्र को तबाह करने के अभियान में लगे हुए सुपारी-हत्यारे रहते हैं जिन्हें इन प्लेटफॉर्म को दुहने के हथियार भी हासिल रहते हैं। यह सिलसिला बहुत ही खतरनाक है, और किसी भी लोकतांत्रिक देश को ऐसी अलोकतांत्रिक हमलावर तकनीक और कोशिश के खिलाफ कानून बनाना चाहिए। ऐसे किसी संभावित कानून के खिलाफ एक तर्क यह भी रहेगा कि इससे लोग गुमनाम अकाउंट नहीं बना सकेंगे, और अपनी शिनाख्त उजागर किए बिना अपनी बात नहीं लिख सकेंगे। लेकिन आज की बेचेहरा हमलावर फौज को उजागर करना, और ऐसे फौजी हमले में मददगार साइबर-हथियार रोकना किसी भी लोकतंत्र का एक अनिवार्य काम होना चाहिए।
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