अंतरराष्ट्रीय
आग बुझाने की कोशिश करता व्यक्ति
शेरलॉट एटवुड, कोको आंग और रिबेका हेंस्के
बीबीसी को दिए एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में म्यांमार सेना के सैनिकों ने आम नागरिकों की हत्याएं, उत्पीड़न और बलात्कार करना स्वीकार किया है. ये पहली बार है जब उन्होंने बड़े पैमाने पर मानवाधिकार उल्लंघन करना स्वीकार किया है. उनका कहना है कि उन्हें ऐसा करने के आदेश दिए गए थे.
चेतावनीः इस रिपोर्ट में यौन हिंसा और प्रताड़ना का विवरण है
"उन्होंने मुझे मासूम लोगों को प्रताड़ित करने, लूटने और उनकी हत्याएं करने के आदेश दिए"
मांग ऊ का कहना है कि उन्हें लगा था कि सेना में उनकी भर्ती रक्षा करने के लिए हुई है. लेकिन वो उस बटालियन का हिस्सा थे जिसने मई, 2022 में एक मॉनेस्ट्री में छिपे आम नागरिकों की हत्याएं की.
वो बताते हैं, "हमें सभी पुरुषों को एक साथ खड़े करने और और फिर उन्हें गोली मारने का आदेश दिया गया था. सबसे दुखद बात ये है कि हमें महिलाओं और बुजुर्ग लोगों को भी मारना पड़ा."
छह सैनिकों, जिनमें एक कोर्पोरल भी शामिल हैं, और उनके कुछ पीड़ितों की गवाही से म्यांमार की सत्ता पर पकड़ बनाए रखने के लिए बेचैन सेना की दुर्लभ झलक मिलती है. इस रिपोर्ट में शामिल म्यांमार के सभी नाम पहचान छुपाने के लिए बदल दिए गए हैं.
ये सैनिक, जिन्होंने हाल ही में सेना छोड़ी है, इस समय पीपुल्स डिफेंस फ़ोर्स (पीडीएफ़) की सुरक्षा में हैं. पीडीएफ़ म्यांमार में फिर से लोकतंत्र स्थापित करने के लिए लड़ रहे मिलिशिया समूहों का एक नेटवर्क है.
पिछले साल सेना ने तख़्तापलट करके आंग सांग सू ची के नेतृत्व में चल रही लोकतांत्रिक सरकार को हटा दिया था. सेना अब हथियारबंद विद्रोह को कुचलने का प्रयास कर रही है.
पिछले साल 20 दिसंबर को केंद्रीय म्यांमार के या म्येत गांव को सेना के तीन हेलीकॉप्टरों ने घरे लिया. इनसे उतरे सैनिकों को लोगों को गोली मारने के आदेश दिए गए थे.
कम से कम पांच अलग-अलग लोगों, एक दूसरे से अलग-अलग बात करते हुए बीबीसी को बताया कि क्या हुआ था.
उन्होंने बताया कि सेना तीन अलग-अलग समूहों में दाख़िल हुई, पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को अंधाधुंध गोलियां मारी गईं.
म्यांमार के जंगल में अज्ञात स्थान पर बात करते हुए कोर्पोरल आंग ने बताया, "हमें आदेश दिया गया था कि जो भी दिखाई दे उसे गोली मार दो."
वो बताते हैं कि कुछ लोग सुरक्षित समझकर एक ठिकाने पर छुप गए थे लेकिन जब सैनिक उनकी तरफ बढ़े तो उन्होंने भागना शुरू किया. "हमने उन भागते हुए लोगों को गोली मारी."
कोर्पोरल आंग ने स्वीकार किया कि उनकी यूनिट ने पांच लोगों को मारा और दफ़न किया.
"हमें गांव के हर बड़े और अच्छे घर को आग लगाने के आदेश भी दिए गए थे."
सैनिकों ने पूरे गांव में घूमकर घरों को आग लगाई. इस दौरान वो 'आग लगाओ, आग लगाओट चिल्ला रहे थे.
कोर्पोरल आंग ने स्वयं चार इमारतों को आग लगाई. बीबीसी से बात करने वाले लोगों ने बताया है कि कम से कम 60 घरों को जलाया गया था. गांव का अधिकतर हिस्सा राख का ढेर बन गया था.
गांव से अधिकतर लोग भाग गए हैं लेकिन गांव के मध्य में एक घर में लोग रह रहे थे.
थीहा कहते हैं कि वो इस छापे से सिर्फ़ पांच महीने पहले सेना में शामिल हुए थे.
बहुत से दूसरे सैनिकों की तरह उन्हें समुदाय में से शामिल किया गया था और उन्हें प्रशिक्षण नहीं मिला था. इन सैनिकों को स्थानीय स्तर पर आंघार-सित्थार या 'भाड़े के सैनिक' कहा जाता है.
उस समय उन्हें दो लाख म्यांमार क्यात (लगभग 100 डॉलर या 8 हज़ार भारतीय रुपये) का ठीकठाक वेतन दिया जाता था. उस घर में क्या हुआ था उन्हें अच्छे से याद है.
जिस घर को वो जलाने जा रहे थे उसमें लोहे के सींखचों के पीछे उन्होंने एक किशोरी को फंसे हुए देखा.
"मैं उसकी चीख को भूल नहीं पा रहा हूं. मैं अभी भी अपने कानों में उसे सुन सकता हूं और वो मेरे दिल में बस गई है."
जब उन्होंने इस बारे में अपने कैप्टन को बताया तो उन्होंने जवाब दिया, "मैंने तुमसे कहा था कि जो भी दिखाई दे उसे मार दो."
ये सुनकर थीहा ने घर को आग लगा दी. कोर्पोरल आंग भी वहीं मौजूद थे और जब उस लड़की को ज़िंदा जलाया गया तो उन्होंने भी उसकी चीखें सुनीं.
वो याद करते हैं, "उसकी चीखें दिल को भेद रहीं थीं. हमने करीब 15 मिनट तक उसकी चीखें सुनीं. उस दौरान घर धधक रहा था."
बीबीसी उस लड़की के परिवार तक पहुंची जिन्होंने जले हुए घर के बाहर बात की.
उसके रिश्तेदार यू म्यिंत ने बताया कि लड़की मानसिक रूप से बीमार थी. उसके परिजन काम पर गए थे और ो घर पर अकेली थी.
वो कहते हैं, "उसने जान बचाने की कोशिश की थी लेकिन सैनिकों ने उसे रोक दिया और मरने दिया."
वो इन सैनिकों के हाथों प्रताड़ित होने वाली अकेली लड़की नहीं थी.
थीहा कहते हैं कि वो पैसों के लिए सेना में शामिल हुए थे लेकिन जिस तरह का ज़ुल्म करने के लिए उन्हें मजबूर किया गया और जो उन्होंने देखा उससे वो भीतर तक हिल गए थे.
उन्होंने महिलाओं के एक समूह के बारे में बात की जिसे या म्येत में गिरफ़्तार किया गया था.
अधिकारी ने अपने अधीनस्थों को उन महिलाओं को सौंपते हुए कहा, 'जो मर्ज़ी है करो.' थीहा बताते हैं कि उन लड़कियों के साथ बलात्कार किया गया लेकिन वो स्वयं उसमें शामिल नहीं थे.
बीबीसी ने इनमें से दो लड़कियों की पहचान की.
पा पा और खिन हित्वे बताती हैं कि जब वो भागने की कोशिश कर रहीं थीं तब रास्ते में सैनिक मिल गए थे. वो या म्येत गांव की नहीं थी बल्कि वहां एक टेलर के पास आईं थीं.
ये लड़कियां गुहार लगाती रहीं कि वो इस गांव से या पीडीएफ़ से नहीं है लेकिन सैनिकों ने उनकी नहीं सुनी और उन्हें एक स्थानीय स्कूल में तीन रातों तक बंधक बनाकर रखा गया. हर रात सैनिकों ने बार-बार शराब के नशे में उनके साथ बलात्कार किया. वो याद करती हैं, "उन्होंने मेरी आंखों पर सरोंग बांध दिया और मुझे नीचे गिरा दिया. मेरे कपड़े उतार कर मेरा बलात्कार किया गया." पा पा कहती हैं, "वो मेरा बलात्कार कर रहे थे और मैं चिल्ला रही थी."
उन्होंने सैनिकों से अपने आप को छोड़ देने की गुराह लगाई लेकिन वो नहीं रूके. उन्हें पीटा गया और बंदूक की नोक पर धमकाया गया.
कांपी आवाज़ में उनकी बहन खिन हित्वे बताती हैं, "हमें वो सब बिना विरोध के सहना पड़ा क्योंकि हमें डर था कि कहीं वो जान से ही ना मार दें."
ये लड़कियां इतनी डरी सहमी थीं कि अपने बलात्कारियों को सही से देख तक नहीं पाईं. वो याद करती हैं कि उनमें से कुछ ने सादे कपड़े पहने हुए थे और कुछ सेना की वर्दी में थे.
सैनिक थीहा याद करते हैं, "जब वो किसी जवान लड़की को पकड़ लेते हैं तो वो उनका बलात्कार करते हुए ताना मारते हैं कि ये इसलिए हो रहा है क्योंकि तुम पीडीएफ का समर्थन करती हो."
या म्येत गांव में हुए हमले में कम से कम दस लोगों की मौत हो गई थी और आठ लड़कियों का तीन दिन तक बलात्कार किया गया था.
भाड़े के सैनिक मांग ऊ ने जिन बर्बर हत्याओं में हिस्सा लिया था वो 2 मई 2022 को सेगेंग इलाक़े के ओहाको फो गांव में हुईं थीं.
उन्होंने अपनी 33वी डिवीज़न (लाइट इंफेट्री डिवीज़न 33) के बारे में एक मोनेस्ट्री में लोगों को इकट्ठा करने और गोली मारने का जो दावा किया था वो चश्मदीदों की गवाही और हमले के तुरंत बाद बीबीसी द्वारा हासिल किए गए हिंसक वीडियो से मेल खाता है.
इस वीडियो में कतार में पड़े 9 शव दिखाई देते हैं जिनमें एक महिला और एक बुजुर्ग़ का शव एक दूसरे के आसपास पड़ा नज़र आता है. इन सभी ने सरोंग और टी-शर्ट पहनी थी.
इस ज़ुल्म को देखने वाले ग्रामीणों से भी हमने बात की. उन्होंने बुजुर्ग के पास पड़ी युवा महिला की पहचान की. उसका नाम मा मोए मोए था.
उसके पास अपना बच्चा और एक बैग था जिसमें सोने के आभूषण थे. उसने सैनिकों से अपनी चीज़ें ना छीनने की गुहार लगाई थी.
हला हला मौके पर मौजूद थीं लेकिन उन्हें बख़्श दिया गया था. वो बताती हैं, "उसकी गोद में बच्चा था, इसके बावजूद उन्होंने उसका सामान लूट लिया और उसे गोली मार दी. उन्होंने पुरुषों को लाइन में लगाया और एक-एक करके गोली मार दी."
बच्चा बच गया था और अब उसकी देखभाल रिश्तेदार कर रहे हैं.
हला हला कहती हैं कि उन्होंने सैनिकों को फ़ोन पर ये शेखी बघारते सुना था कि उन्होंने आठ नौ लोग मार दिए हैं और इसमें उन्हें बहुत 'मज़ा आया.' वो कह रहे थे कि 'ये उनका अब तक का सबसे कामयाब दिन है.'
वो बताती हैं कि जब सैनिक गांव से गए तो वो विजय के नारे लगा रहे थे.
एक अन्य महिला ने अपने पति को मारे जाते हुए देखा. वो बताती हैं, "उन्होंने पहले उनकी जांघ में गोली मारी और फिर उल्टा लेटने के लिए कहा. फिर उनके कूल्हे पर गोलियां मारी और आख़िर में सिर में गोली मारी."
वो ज़ोर देकर ये कहती हैं कि उनके पति पीडीएफ़ के सदस्य नहीं थे. वो बताती हैं, "वो ताड़ी का काम करते थे और पारंपरिक तरीक़े से रोज़ी कमाते थे. मेरी एक बेटी और बेटा है और मैं नहीं जानती की आगे जीवन कैसे चलेगा."
मांग ऊ कहते हैं कि उन्हें अपने किए का पछतावा है. वो कहते हैं, "मैं आपको सब बताउंगा. मैं चाहता हूं कि सभी को इस बारे में पता चलें ताकि वो हमारे जैसे हश्र से बच सकें."
जिन सभी छह सैनिकों ने बीबीसी से बात की उन सभी ने मध्य म्यांमार में घरो को जलाना स्वीकार किया. इससे ये पता चलता है कि ये विद्रोह के समर्थन को बर्बाद करने का एक सुनियोजित तरीक़ा है.
ये ऐसे समय में हो रहा है जब कई लोगों का मानना है कि सेना कई मोर्चों पर चल रहे गृह युद्ध में बढ़त बनाए रखने में संघर्ष कर रही है.
म्यांमार विटनेस- शोधकर्ताओं का एक समूह है जो उपलब्ध जानकारी के ज़रिए म्यांमार में मानवाधिकार उल्लंघन का रिकार्ड रखता है. इस समूह ने बीते दस महीनों में इस तरह 200 से अधिक गांवों को जलाए जाने की रिपोर्टें संकलित की हैं.
उनका कहना है कि इस तरह के हमलों का पैमाना व्यापक हो रहा है और इस साल जनवरी और फ़रवरी में ही ऐसे कम से कम 40 हमले हुए थे जबकि मार्च और अप्रैल में ऐसे 66 हमले हुए.
ये पहली बार नहीं है जब म्यांमार की सेना घरों और गांवों को आग लगाने की नीति पर चल रही है. 2017 में रखीने प्रांत में रोहिंग्या लोगों के ख़िलाफ़ भी बड़े पैमाने पर इसका इस्तेमाल किया गया था.
देश के पहाड़ी और नस्लीय इलाक़ों में इस तरह के हमलों कई दशकों से होते रहे हैं. ऐसे ही कुछ नस्लीय मिलिशिया अब पीडीएफ़ को सेना के ख़िलाफ़ गृह युद्ध में हथियार और प्रशिक्षण हासिल करने में मदद कर रहे हैं.
मानवाधिकर संगठन ह्यूमन राइट्स वॉच का कहना है कि सैनिकों को मनमर्ज़ी से लूटमार और हत्याएं करने की अनुमति देने की ये संस्कृति म्यांमार में दशकों से चली आ रही है.
सेना के द्वारा किए गए ज़ुल्म के लिए लोगों को कभी कभार ही ज़िम्मेदार ठहराया गया है.
लेकिन पीडीएफ के सैनिकों को मारने और सैनिकें के छोड़कर जाने की वजह से म्यांमार की सेना को अधिक तादाद में भाड़े के सैनिकों और मिलिशिया की सेवाएं लेनी पड़ रही हैं.
2021 के सैन्य तख़्तापलट के बाद से अब तक दस हज़ार के क़रीब सैनिक और पुलिसकर्मी छोड़कर जा चुके हैं. पूर्व सैनिकों और पुलिसकर्मियों के संगठन पीपुल्स एंब्रेस ने ये आंकड़ा जारी किया है.
जलता हुआ घर
सेंटर फॉर स्ट्रेटेजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज़ थिंक टैंक से जुड़े माइकल मार्टिन कहते हैं, "सेना कई मोर्चों पर चल रहे गृह युद्ध में संघर्ष कर रही है."
मार्टिन कहते हैं, "सेना के पास लोगों की कमी है, अफ़सर रैंक में और सैनिक रैंक में भी क्योंकि उसे भारी नुक़सान हो रहा है और नई भर्तियों में भी समस्या है. इसके अलावा आपूर्ती और साज़ो-सामान की भी दिक्कते हैं. ये इस बात से भी साबित होता है कि वो देश के कई हिस्सों में कई इलाक़ों का नियंत्रण गंवाते दिख रहे हैं."
मेगवे और सेगेंग इलाक़ें जहां ये ज़ुल्म हुआ, ऐतिहासिक रूप से सेना की भर्ती के इलाक़े रहे हैं. लेकिन अब यहां के युवा पीडीएफ़ में शामिल होना पसंद कर रहे हैं.
कोर्पोरल आंग सेना छोड़ने के कारण को लेकर स्पष्ट थे. वो कहते हैं, "अगर मुझे ये लगता कि लंबी लड़ाई में सेना जीत जाएगी तो मैं कभी भी पाला बदलकर लोगों की तरफ़ नहीं आता."
वो कहते हैं कि सैनिक अकेले कभी भी अपना अड्डा नहीं छोड़ते हैं क्योंकि उन्हें डर होता है कि पीडीएफ़ उन्हें मार देगी.
"हम जहां भी जाते हैं सिर्फ़ सैन्य कॉलम में ही जाते हैं. कोई ये नहीं कह सकता है कि हम युद्ध में हावी हो रहे हैं."
हमने इस जांच रिपोर्ट में सामने आए आरोपों को म्यांमार की सेना के प्रवक्ता जनरल ज़ा मिन टुन के सामने रखा. एक बयान में उन्होंने सेना के नागरिकों पर हमले करने और उनकी हत्याएं करने के आरोप को नकार दिया. उन्होंने कहा कि यहां जिन दो छापों को रेखांकित किया गया है वो दोनों ही वैध निशाने थे और जो लोग मारे गए थे वो 'आतंकवादी' थी.
उन्होंने इस बात से इनकार किया कि सेना गांवों में आग लगा रही है. उन्होंने दावा किया कि पीडीएफ़ आगजनी और गांवों पर हमले कर रही है.
ये कहना मुश्किल है कि ये गृह युद्ध कब और किस तरह समाप्त होगा लेकिन ऐसा लग रहा है कि म्यांमार के दसियों लाख लोग इसकी दहशत के साये में रहेंगे.
और जितना वक्त शांति स्थापित होने में लगेगा, बलात्कार पीड़ित खिन हित्वे जैसी महिलाओं के सामने शोषण और हिंसा का ख़तरा बरक़रार रहेगा.
वो कहती हैं कि उनके साथ जो हुआ उसके बाद वो जीना नहीं चाहती थीं और उनके मन में कई बार अपनी जान लेने का विचार आया है.
उन्होंने अभी तक अपने मंगेतर को अपनी आपबीती नहीं बताई है.