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ताइवान और चीन : नैंसी पेलोसी की यात्रा से तनाव, क्या है इनके बीच का विवाद
03-Aug-2022 7:06 PM
ताइवान और चीन : नैंसी पेलोसी की यात्रा से तनाव, क्या है इनके बीच का विवाद

-डेविड ब्राउन
चीन और अमेरिका के बीच अमेरिकी कांग्रेस की स्पीकर नैंसी पेलोसी की ताइवान यात्रा को लेकर तनाव पैदा हो गया है।

पिछले 25 सालों में ये अमेरिका के किसी उच्चस्तरीय राजनेता की ये पहली ताइवान यात्रा है।

चीन ने पेलोसी की ताइवान यात्रा को ‘बहुत खतरनाक’ बताया है।

चीन के उप-विदेश मंत्री शी फ़ेंग ने इसे विद्वेषपूर्ण बताते हुए गंभीर परिणाम की चेतावनी दी है। उन्होंने कहा है कि चीन हाथ-पर-हाथ धरे नहीं बैठा रहेगा।

वहीं अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा विभाग के प्रवक्ता जॉन किर्बी ने कहा है नैंसी पेलोसी की यात्रा चीन की वन-चाइना पॉलिसी के अनुरूप है और इसे एक संकट में बदलने की कोई जरूरत नहीं है।

ताइवान को लेकर विवाद क्यों?
चीन ताइवान को अपने से अलग हुआ एक प्रांत मानता है और उसे लगता है कि अंतत: वो चीन के नियंत्रण में आ जाएगा।

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग कह चुके हैं कि ताइवान का ‘एकीकरण’ पूरा होकर रहेगा। उन्होंने इसे हासिल करने के लिए ताकत के इस्तेमाल को भी खारिज नहीं किया है।

मगर ताइवान खुद को एक स्वतंत्र देश मानता है जिसका अपना संविधान और अपने चुने हुए नेताओं की सरकार है।

ताइवान क्यों अहम है?
ताइवान एक द्वीप है जो चीन के दक्षिण-पूर्वी तट से लगभग 100 मील दूर है।

चीन मानता है कि ताइवान उसका एक प्रांत है, जो अंतत: एक दिन फिर से चीन का हिस्सा बन जाएगा।

दूसरी ओर, ताइवान खुद को एक आजाद मुल्क मानता है। उसका अपना संविधान है और वहां लोगों द्वारा चुनी हुई सरकार का शासन है।

ये ‘फस्र्ट आइलैंड चेन’ या ‘पहली द्वीप शृंखला’ नाम से कहे जाने वाले उन टापुओं में गिना जाता है जिसमें अमेरिका के करीबी ऐसे क्षेत्र शामिल हैं जो अमेरिकी विदेश नीति के लिए अहम माने जाते हैं।
अमेरिका की विदेश नीति के लिहाज से ये सभी द्वीप काफी अहम हैं।

चीन यदि ताइवान पर कब्जा कर लेता है तो पश्चिम के कई जानकारों की राय में, वो पश्चिमी प्रशांत महासागर में अपना दबदबा दिखाने को आजाद हो जाएगा। उसके बाद गुआम और हवाई द्वीपों पर मौजूद अमेरिकी सैन्य ठिकाने को भी खतरा हो सकता है। हालांकि चीन का दावा है कि उसके इरादे पूरी तरह से शांतिपूर्ण हैं।

चीन से अलग क्यों हुआ ताइवान?
दोनों के बीच अलगाव करीब दूसरे विश्वयुद्ध के बाद हुआ। उस समय चीन की मुख्य भूमि में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का वहां की सत्ताधारी नेशनलिस्ट पार्टी (कुओमिंतांग) के साथ लड़ाई चल रही थी।

1949 में माओत्से तुंग के नेतृत्व में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी जीत गई और राजधानी बीजिंग पर कब्जा कर लिया। उसके बाद, कुओमिंतांग के लोग मुख्य भूमि से भागकर दक्षिणी-पश्चिमी द्वीप ताइवान चले गए। उसके बाद से अब तक कुओमिंतांग ताइवान की सबसे अहम पार्टी बनी हुई है। ताइवान के इतिहास में ज़्यादातर समय तक कुओमिंतांग पार्टी का ही शासन रहा है। फिलहाल दुनिया के केवल 13 देश ताइवान को एक अलग और संप्रभु देश मानते हैं।
चीन का दूसरे देशों पर ताइवान को मान्यता न देने के लिए काफी कूटनीतिक दबाव रहता है।

चीन की ये भी कोशिश होती है कि दूसरे देश कुछ ऐसा न करे जिससे ताइवान को पहचान मिलती दिखे। ताइवान के रक्षामंत्री ने कहा है कि चीन के साथ उसके संबंध पिछले 40 सालों में सबसे खऱाब दौर से गुजर रहे हैं।
ताइवान क्या अपनी रक्षा खुद कर सकता है?

चीन सैन्य तरीकों से इतर कदम उठाकर भी ताइवान का फिर से एकीकरण कर सकता है। ऐसा दोनों देशों के आर्थिक संबंधों को मजबूत बनाकर हो सकता है। लेकिन दोनों देशों में यदि लड़ाई हुई तो ताइवान की सैन्य ताकत चीन के सामने बौनी साबित होगी।

चीन का अपनी सेना पर सालाना खर्च दुनिया में अमेरिका को छोडक़र सबसे ज़्यादा है। उसकी सैन्य ताकत काफी विविध और विशाल है। चाहे मिसाइल टेक्नोलॉजी को देखें या नौसेना या वायुसेना को। साइबर हमले करने में भी चीन का मुकाबला करना कुछ ही देश के बूते की बात है।

सैन्य ताकत में चीन का कोई मुकाबला नहीं
इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्ट्रेटेजिक स्टडीज (आईआईएसएस) के मुताबिक, चीन के पास हर तरह के सैनिकों को मिला लें तो वहां 20.35 लाख सक्रिय सैनिक हैं।
वहीं, ताइवान में केवल 1.63 लाख सक्रिय सैनिक हैं। इस तरह चीन की ताकत इस मामले में ताइवान से करीब 12 गुना ज्यादा हुई। बात यदि थल सेना की करें तो चीन में 9.65 लाख थल सैनिक हैं, जबकि ताइवान में 11 गुना कम केवल 88 हजार। वहीं नौसेना में चीन के पास 2.60 लाख कार्मिक हैं और ताइवान में केवल 40 हजार।

चीन की वायुसेना में करीब चार लाख लोग हैं, लेकिन ताइवान में केवल 35 हजार कार्मिक हैं। इन सबके अलावा, चीन के पास और 4.15 लाख दूसरे सैनिक हैं। वहीं ताइवान के साथ ऐसा नहीं है।

पश्चिम के कई जानकारों का अनुमान है कि दोनों देशो के बीच यदि आमने सामने की भिड़ंत हुई तो ताइवान बहुत कोशिश करके चीन के हमले को थोड़ा धीमा कर सकता है। उसे अमेरिका से मदद मिल सकती है, जो ताइवान को हथियार बेचता है। हालांकि अमेरिका की औपचारिक नीति ‘कूटनीतिक अस्पष्टता’ की रही है। दूसरे शब्दों में कहें तो अमेरिका जानबूझकर अपनी नीति को साफ नहीं करता कि हमले की सूरत में क्या और कैसे वो ताइवान की मदद करेगा। कूटनीतिक तौर पर चीन फिलहाल ‘एक चीन की नीति’ का समर्थन करता है। इसका मतलब ये हुआ कि अमेरिका की आधिकारिक लाइन है कि बीजिंग सरकार ही असली चीन की प्रतिनिधि है। उसका औपचारिक संबंध ताइवान की बजाय चीन के साथ है।

क्या हालात खऱाब होते जा रहे हैं?
2021 में, चीन ने ताइवान के वायु रक्षा क्षेत्र में अपने लड़ाकू विमान भेजकर उस पर दबाव बनाता हुआ दिखा। किसी देश का वायु रक्षा क्षेत्र, वो इलाका होता है, जहां देश की रक्षा के लिए विदेशी विमानों को पहचानकर, उन पर निगरानी और नियंत्रण रखा जाता है। ताइवान ने 2020 में विमानों की घुसपैठ के आंकड़े सार्वजनिक किए। वैसे इस तरह की घुसपैठ में तेजी पिछले साल के अक्टूबर में आई। अक्टूबर 2021 में एक ही दिन में चीन के 56 विमानों को ताइवानी इलाके में दाखिल होने की सूचना मिली।

दुनिया के लिए ताइवान अहम क्यों?
ताइवान की अर्थव्यवस्था दुनिया के लिए काफी मायने रखती है।  दुनिया के रोजाना इस्तेमाल के इलेक्ट्रॉनिक गैजेटों जैसे फोन, लैपटॉप, घडिय़ों और गेमिंग उपकरणों में जो चिप लगते हैं, वे ज्यादातर ताइवान में बनते हैं।
चिप के मामले में ताइवान फिलहाल दुनिया की बहुत बड़ी जरूरत है। उदाहरण के लिए ‘वन मेजर’ नाम की कंपनी को लें। अकेले यह कंपनी दुनिया के आधे से अधिक चिप का उत्पादन करती है।

2021 में दुनिया का चिप उद्योग करीब 100 अरब डॉलर का था और इस पर ताइवान का दबदबा है। यदि ताइवान पर चीन का कब्जा हो गया तो दुनिया के इतने अहम उद्योग पर चीन का नियंत्रण हो जाएगा।
क्या ताइवान के लोग चिंतित हैं?

चीन और ताइवान के बीच के तनाव के बढ़ जाने के बावजूद हाल के रिसर्च बताते हैं कि इसका ज्यादा असर वहां के लोगों पर नहीं पड़ा है। अक्टूबर में ताइवान पब्लिक ओपिनियन फाउंडेशन ने लोगों से पूछा कि क्या वे सोचते हैं कि चीन के साथ युद्ध होकर ही रहेगा। ताइवान के करीब 64 फीसदी लोगों ने इसका जवाब ‘न’ में दिया। वहीं एक दूसरे रिसर्च से पता चला कि ताइवान के ज़्यादातर लोग खुद को चीनी लोगों से अलग मानते हैं।

नेशनल चेंग्ची यूनिवर्सिटी के एक सर्वे में पता चला कि 1990 की तुलना में आज ताइवान में लोगों के बीच ताइवानी पहचान बढ़ती गई है। लोगों में खुद को चीनी या ताइवानी और चीनी दोनों मानने की प्रवृत्ति पहले से काफी कम हो गई है। (bbc.com/hindi)

 

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