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मक्का में मुस्लिम श्रद्धालु फिर चूम सकते हैं काबे का काला पत्थर
04-Aug-2022 1:37 PM
मक्का में मुस्लिम श्रद्धालु फिर चूम सकते हैं काबे का काला पत्थर

सऊदी अरब के मक्का में श्रद्धालु एक बार फिर काबा के पवित्र काले पत्थर को छू और चूम सकते हैं.

कोरोना महामारी की वजह से काबा के चारों ओर घेराबंदी कर दी गई थी जिसे अब हटा लिया गया है.

इसके बाद वहाँ की तस्वीरों में दिखाई दे रहा है कि उत्साहित श्रद्धालु काले पत्थर को छूकर दुआ कर रहे हैं.

काबा से लगभग 30 महीने बाद घेराबंदी हटाई गई है. ये क़दम उमरा की यात्रा से ठीक पहले लिया गया है.

ये हज से इस मायने में अलग है कि हज जहाँ एक विशेष महीने में किया जाता है, वहीं उमरा साल में कभी भी किया जा सकता है.

उमरा के दौरान हज में किए जाने वाले कई धार्मिक कर्म-कांड किए जाते हैं. उमरा के लिए दुनिया भर से करोड़ों मुसलमान मक्का की यात्रा करते हैं.

इनमें से बहुत सारे लोग मक्का के पास मदीना की भी यात्रा करते हैं.

कोविड का असर
सऊदी अरब ने इस साल कोरोना महामारी की वजह से लगाए गए ज़्यादातर प्रतिबंधों को हटा लिया.

इस साल (2022) हज यात्रा 7 से 12 जुलाई तक हुई थी, और इसमें कोरोना महामारी के बाद पहली मर्तबा लगभग सामान्य संख्या में लोग मक्का पहुँचे.

वर्ष 2020 में, केवल 1,000 लोगों को हज पर जाने की अनुमति मिली थी. उस साल केवल सऊदी अरब के लोग ही हज कर सके थे. दूसरे देशों के लोगों के मक्का की यात्रा करने पर रोक थी.

2021 में हज यात्रियों की संख्या बढ़कर 60,000 हो गई और इस वर्ष लगभग 10 लाख लोगों ने मक्का पहुँचकर हज किया.

हालाँकि, कोरोना के पहले की तुलना में अभी भी ये संख्या कम है. स्टैस्टिका वेबसाइट के मुताबिक़ 2019 में 25 लाख लोगों ने मक्का में हज किया था. दुनिया में एक साथ इतने लोगों के जुटने का ये रिकॉर्ड था.

इसे अरबी भाषा में अल-हजर-अल-असवद कहा जाता है.

मक्का पहुँचने वाले मुस्लिम तीर्थयात्री काबा पहुँचने पर जिन तरीक़ों से दुआएँ करते हैं उनमें इस पवित्र पत्थर को छूना और चूमना भी शामिल है.

ऐसा माना जाता है कि ये पत्थर आदम (ऐडम) और हव्वा (ईव) के ज़माने के हैं जिन्हें दुनिया का पहला आदमी और औरत माना जाता है.

ब्लैक स्टोन को इस्लाम के उदय से पहले से ही पवित्र माना जाता था.

ये भी माना जाता है कि ये पत्थर मूलतः सफेद रंग का था, मगर इसे स्पर्श करने वाले लोगों के पापों का भार उठाने की वजह से इसका रंग काला हो गया.

सऊदी अरब में मौजूद मक्का पूरी दुनिया के मुसलमान लोगों के लिए एक पवित्र धर्मस्थल है.

4000 साल पहले मक्का एक सूखी और निर्जन घाटी हुआ करती थी.

मुसलमानों की मान्यता है कि पैग़ंबर इब्राहीम और उनके बेटे इस्माइल ने अल्लाह के आदेश पर मक्का में काबा की इमारत बनाई.

पहले वहाँ कई बुत रखे हुए थे जिनकी पूजा होती थी.

बरसों बाद अल्लाह ने पैग़ंबर मुहम्मद से कहा कि वो ऐसी व्यवस्था करें कि काबा में केवल अल्लाह को पूजा जाए.

628 ईस्वी में पैग़ंबर मोहम्मद ने अपने 1400 अनुयायियों के साथ मक्का की यात्रा की. ये इस्लाम की पहली तीर्थयात्रा थी.हर साल पूरी दुनिया से लाखों लोग हज की यात्रा करते हैं जो इस्लाम का एक ज़रूरी उसूल है. हज इस्लाम के पाँच ज़रूरी उसूलों में से सबसे आख़िरी उसूल है.

इस्लाम को मानने वाले हर व्यक्ति के लिए जीवन में कम-से-कम एक बार हज करना ज़रूरी माना जाता है, बशर्ते उनके पास इसके लिए सुविधा हो और वो शारीरिक रूप से सक्षम हों.

मक्का पहुँचने के बाद मुसलमान श्रद्धालु मस्जिद अल हरम जाते हैं और सात मर्तबा काबा के चक्कर लगाकर दुआ और अल्लाह की प्रार्थना करते हैं.

श्रद्धालु इसके बाद वहाँ कई और धार्मिक आयोजनों में हिस्सा लेते हैं.

हज के लिए सऊदी अरब के पवित्र शहर मक्का की यात्रा करने वाले यात्री मक्का से लगभग 450 किलोमीटर दूर मदीना शहर भी जा सकते हैं.

मदीना में मस्जिद-ए-नबवी है जहाँ श्रद्धालु नमाज़ पढ़ा करते हैं.

मदीना की यात्रा हज का ज़रूरी हिस्सा नहीं है.

मगर वहाँ जो मस्जिद मौजूद है उसे ख़ुद पैग़ंबर मोहम्मद ने बनवाया था, इसलिए हर मुसलमान इसे काबा के बाद दूसरा सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल मानता है.

यहीं पैग़ंबर हज़रत मोहम्मद की मज़ार भी है. हज यात्री उसका भी दर्शन करते हैं. (bbc.com)

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