सामान्य ज्ञान
संविधान ने भारत का स्वतंत्र निर्वाचन आयोग बनाया है जिसमें मतदाता सूची तैयार करने और राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति , संसद और हर राज्य के लिए राज्य विधायिकाओं के चुनाव कराने के पर्यवेक्षण, निर्देश और नियंत्रण निहित है (अनुच्छेद 324)। ऐसे ही स्वतंत्र संवैधानिक प्राधिकरण की रचना नगर पालिकाओं, पंचायतों और अन्य स्थानीय निकायों के लिए की गई है। (अनुच्छेद 243 के और 243 जेडए)।
भारत के संविधान में राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, संसद और हर राज्य के लिए राज्य विधायिकाओं के चुनाव के लिए कानून बनाने के लिए प्राधिकार संसद को दिया है (अनुच्छेद 71 और 327)। नगर पालिकाओं, पंचायतों और अन्य स्थानीय निकायों के लिए चुनाव कराने संबंधी कानून बनाने का दायित्व राज्य विधायिकाओं को दिया गया है (अनुच्छेद 243 के और 243 जेडए)। राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव संबंधी सभी संदेह और विवाद उच्चतम न्यायालय देखता है (अनुच्छेद 71) जबकि संसद और हर राज्य के लिए राज्य विधायिकाओं के चुनाव संबंधी सभी संदेहों और विवादों के निपटारे का प्रारंभिक न्यायाधिकार संबंधित राज्य के उच्च न्यायालय और उसके साथ उच्चतम न्यायालय का है (अनुच्छेद 329) । नगरपालिकाओं इत्यादि के चुनाव संबंधी विवादित मामलों का निर्णय संबंधित राज्य सरकारों के बनाए गए कानूनों के अनुरूप निचली अदालतें करती हैं।
राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव संबंधी कानून राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति निर्वाचन अधिनियम 1952 के रूप में संसद ने बनाया है। इस कानून के पूरक के रूप में राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति निर्वाचन नियम 1974 तथा उसके बाद सभी पहलुओं में निर्वाचन आयोग के निर्देशों और अनुदेशों द्वारा पूरित किए गए हैं।
संसद और राज्य विधायिकाओं के चुनाव कराना दो कानूनों के प्रावधानों से शासित होता है - जनप्रतिनिधित्व कानून 1950 और जनप्रतिनिधित्व कानून 1951। जनप्रतिनिधित्व कानून 1950 मुख्य रूप से निर्वाचक सूचियों की तैयारी और संशोधन संबंधी मामलों से संबंधित है। इस कानून के प्रावधानों के पूरक के रूप में इस कानून की धारा 28 के तहत निर्वाचन आयोग के परामर्श से केंद्र सरकार ने निर्वाचक पंजीकरण नियम 1960 बनाए हैं तथा ये नियम निर्वाचक सूचियों की तैयारी, उनके आवधिक संशोधन और अद्यतन, पात्र नाम शामिल करने, कुपात्र नाम हटाने, विवरण इत्यादि ठीक करने संबंधी सभी पहलुओं को देखते हैं। ये नियम राज्य की लागत पर फोटो सहित पंजीकृत मतदाताओं के पहचान कार्ड के मुद्दे भी देखते हैं। ये नियम अन्य विवरण के अलावा निर्वाचक के फोटो सहित फोटो निर्वाचक सूचियां तैयार करने के लिए निर्वाचन आयोग को सशक्त भी बनाते हैं।
चुनावों का वास्तविक आयोजन कराने संबंधी सभी मामले जनप्रतिनिधित्व कानून 1951 के प्रावधानों से शासित हैं जो इस कानून की धारा 169 के तहत निर्वाचन आयोग के परामर्श से केंद्र सरकार ने निर्वाचक पंजीकरण नियम 1961 से पूरित किए गए हैं। इस कानून और नियमों में चुनाव आयोजित कराने के सभी चरणों ( चुनाव कराने की अधिसूचना के मुद्दे, नामांकन पत्र दाखिल करने, नामांकन पत्रों की जांच, उम्मीदवार का नाम वापस लेना, चुनाव कराना, मतों की गिनती और इस तरह घोषित परिणाम के आधार पर सदनों के गठन ) के लिए विस्तृत प्रावधान किए गए हैं।