सामान्य ज्ञान

क्या होता है नॉन परफॉर्मिंग एसेट?
08-Aug-2022 1:12 PM
 क्या होता है नॉन परफॉर्मिंग एसेट?

जब कोई देनदार अपने बैंक को ईएमआई देने में नाकाम रहता है, तब उसका लोन अकाउंट नॉन-परफॉर्मिंग एसेट (एनपीए) कहलाता है। नियमों के हिसाब से जब किसी लोन की ईएमआई, प्रिंसिपल या इंटरेस्ट ड्यू डेट के 90 दिन के भीतर नहीं आती है तो उसे एनपीए में डाल दिया जाता है। इसे ऐसे भी लिया जा सकता है कि जब किसी लोन से बैंक को रिटर्न मिलना बंद हो जाता है तब वह उसके लिए एनपीए या बैड लोन हो जाता है। लोन के कई क्लासिफिकेशन हैं- स्टैंडर्ड, सब-स्टैंडर्ड, डाउटफुल और लॉस एसेट। लोन पर डिफॉल्ट के चलते बैंकों पर बहुत ज्यादा असर नहीं पड़े, इसके लिए आरबीआई ने उसके लिए प्रोविजन करने का नियम बनाया है। बैंक को प्रोविजन के बराबर की रकम बिजनेस से अलग रखनी पड़ती है।

अगर देनदार समय पर लोन का रीपेमेंट करता रहता है, तो उसका लोन अकाउंट स्टैंडर्ड माना जाता है। बैंकों की वित्तीय सुरक्षा को देखते हुए बैंकिंग रेगुलेटर आरबीआई के बनाए नियमों के मुताबिक बैंकों को स्टैंडर्ड लोन के लिए भी प्रोविजन करना पड़ता है। स्टैंडर्ड लोन के लिए बैंकों को उसके 0.40 फीसदी के बराबर की रकम की प्रोविजनिंग करनी पड़ती है। कमर्शल रियल एस्टेट के मामले में यह 1 फीसदी जबकि छोटे उद्यमों के लिए 0.25 फीसदी है।

 जब कोई एसेट 12 महीने या कम समय तक एनपीए रहता है तो वह सब-स्टैंडर्ड एसेट कहलाता है। ऐसे लोन में देनदार का नेटवर्थ या चार्ज्ड सिक्यूरिटी की माकेर्ट वैल्यू इतनी नहीं होती है कि उससे समूचे बकाए की वसूली हो सके। सब-स्टैंडर्ड लोन के लिए बैंक को बकाया रकम के 15 फीसदी के बराबर की प्रोविजनिंग करनी पड़ती है। जिस लोन पर कोई सिक्यूरिटी नहीं होती है उसमें बैंकों को 10 फीसदी अतिरिक्त की प्रोविजिनिंग करनी पड़ती है।

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