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धर्म की पहली सीख-खुद भी सुख से जिओ, दूसरों को भी जीने दो-राष्ट्रसंत ललित प्रभजी
09-Aug-2022 12:46 PM
 धर्म की पहली सीख-खुद भी सुख से जिओ, दूसरों को भी जीने दो-राष्ट्रसंत ललित प्रभजी

रायपुर, 9 अगस्त। ‘‘धर्म हमेशा सुई-धागे की भांति आपस में जो टूटे हुए हैं उन्हें जोडऩे का काम करता है। इसीलिए हम सब लोगों को इस बात के लिए हमेशा अपने अंतर्मन को तैयार रखना चाहिए, कि हम कभी-भी धर्म, पंथ, सम्प्रदाय के नाम पर किसी को सीमाबंद घेरे वाले कुंए में नहीं बल्कि सागर की ओर ले जाएंगे।

 हमें धर्म के नाम पर अपने नजरिए को हमेशा विराट रखना चाहिए। आदमी को धर्म के नाम पर हमेशा उदार रहना चाहिए, अपने नजरिए को हमेशा बड़ा रखना चाहिए। क्योंकि धर्म हमें पहली सीख यही देता है कि खुद भी सुख से जियो और दूसरों को भी सुख से जीने दो।’’

ये प्रेरक उद्गार राष्ट्रसंत महोपाध्याय श्रीललितप्रभ सागरजी महाराज ने आउटडोर स्टेडियम बूढ़ापारा में जारी दिव्य सत्संग जीने की कला के अंतर्गत धर्म सप्ताह के प्रथम दिवस सोमवार को व्यक्त किए।

 वे आज ‘नए युग में धर्म का प्रेक्टिकल स्वरूप’ विषय पर प्रवचन दे रहे थे। उन्होंने गीतिका- धर्म शांति का द्वार है, मर्यादा की ज्योत, भरे आँगन की रौशनी, तजिए बैर-विरोध जगत में... मीठी वाणी बोलिए, मीठा हो बर्ताव, मीठी वाणी में छिपी प्रभु की शीतल छांव, जगत में प्रभु की शीतल छांव...के गायन से धर्म को जीवन में प्रेक्टिकल स्वरूप में आत्मसात करने की प्रेरणा दी।

धर्म हमेशा जोडऩे का कार्य करता है

धर्म लोककल्याणकारी बने इस संदर्भ में संतप्रवर ने कहा कि धर्म हमें अपने जीवन में यही सीख देता है कि जहां इंसान-इंसान आपस में हिल-मिलकर रहते हों, आपस में उनका बैर-विरोध न हो, एक-दूसरे से ईर्ष्या न करते हों यहीं से तो धर्म की शुरुआत होती है।

अगर प्रेम, मैत्री, सद्भावना के सद्गुण हममें है तो समझ लेना कि धर्म का हमारे जीवन में प्रवेश हो चुका है। धर्म इंसान को कभी तोडऩे-अलग करने, आपस में लडऩे का पाठ नहीं पढ़ाता, धर्म तो लोगों को जोडऩे का पाठ पढ़ाता है। धर्म तो समाज को आपस में करीब लाने का, परिवार को आपस में जोडऩे का पाठ पढ़ाता है।

तभी तो हमारे भारत का लोकप्रिय गीत है- मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना... । धर्म तो जलती हुई मशाल है, जो हमें जीवन की रौशनी देती है। दिक्कत ये है, जब मशालें बुझ जाया करती हैं तब आदमी के हाथ में केवल लकडिय़ां रह जाती हैं और लकडिय़ां लडऩे-मारने के अलावा और कोई काम नहीं करतीं। धर्म वह लकडिय़ां नहीं, लकडिय़ों के ऊपर जलने वाली मशाल है। जो पूरी मानव जाति को धर्म का पाठ पढ़ाती है।

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