विचार / लेख

गीता प्रेस और हिंदू राष्ट्र का निर्माण
10-Aug-2022 6:55 PM
गीता प्रेस और हिंदू राष्ट्र का निर्माण

पुस्तक समीक्षा  

लक्ष्मण सिंह देव
Gita press and the making of hindu india. अक्षय मुकुल द्वारा गहन शोध के बाद लिखी गयी किताब है। पुस्तक का मूल विषय है कि कैसे गोरखपुर की गीता प्रेस ने वर्तमान भारतीय हिन्दू धर्म को प्रभावित किया?  नोट-किताब में मारवाड़ी शब्द का प्रयोग राजस्थान मूल के या राजस्थानी बनियों के लिए इस्तेमाल किया गया है। मारवाड़ी वस्तुत: एक भाषायी एवम भौगोलिक पहचान है। अतैव ध्यान दें।

1926 में हुई मारवाड़ी अग्रवाल महासभा के अधिवेशन में घनश्याम दास बिरला ने आत्माराम खेमका के भाषण का विरोध किय। आत्माराम खेमका का कहना था कि हिन्दू धर्म शाश्वत है एवं भारत की मुक्ति केवल हिन्दू धर्म के सिद्धांतों पर चल कर हो सकती है। जबकि इसी अधिवेशन में घनश्याम दास बिरला ने बनियों को समय के साथ बदल जाने के लिए कहा। घनश्याम ने अंतरजातीय विवाह का समर्थन किया, खर्चीली शादियों की आलोचना की।

बाद में पता चला कि खेमका का भाषण हनुमानदास पोद्दार ने लिखा था। हनुमान दास पोद्दार, कोलकाता के एक मारवाड़ी जयदयाल गोयन्दका द्वारा स्थापित धार्मिक प्रकाशन का हेड था। 19 वीं शताब्दी में मारवाडिय़ों को व्यापार में खूब सफलता मिली, दूसरों से ना  घुलन- मिलने के  कारण मारवाडिय़ों पर खूब चुटकुले बने और उनकी छवि कुछ-कुछ यूरोपीय यहूदियों जैसी हो गई। निसंदेह इसके पीछे ईष्र्या की भावना भी रही होगी।1927 राम रख सहगल द्वारा प्रकाशित पत्रिका चांद के मारवाड़ी अंक में मारवाडिय़ों की बहुत आलोचना की गई। उन्हें और उनकी स्त्रियों को सेक्स का भूखा बताया गया। साथ ही गीता प्रेस को चलाने वाली संस्था गोविंद भवन में होने वाले एक सेक्स स्कैंडल का भी जिक्र किया गया।

बनिये वर्णाक्रम में तीसरे स्थान पर हैं।जब मारवाडियो ने खूब पैसा कमा लिया। कहीं-कहीं बनियों के पास बड़ी जमींदारियां आयी उन्हें राजा की उपाधि भी मिली  तो उन्हेंअपना सामाजिक स्तर ऊंचा उठाने की चिंता हुई। इसलिए जयदयाल गोयन्दका नामक मारवाड़ी ने 1925 में गीता प्रेस की स्थापना गोरखपुर में की। गीता प्रेस का मकसद हिन्दू धर्म से सम्बंधित साहित्य का प्रकाशन करना था। इसके अतिरिक्त वहां से एक कल्याण नामक पत्रिका भी निकलती है। गीता प्रेस का अधिकतर साहित्य पुराणों पर आधारित हिन्दू धर्म के बारे में है। वैदिक सनातन धर्म की उसने अवहेलना की।गीता प्रेस ने समय समय पर प्रगतिशील बातें भी प्रकाशित की। जैसे गांधी जी के कई आध्यात्मिक आलेख प्रकाशित किये। और उनकी आलोचना करते हुए लेख भी छापे।रूसी रहस्यवादी निकोलस रोरिख के लेख भी गीता प्रेस ने प्रकाशित किये।

1939 में गोरखपुर में हुए साम्प्रदायिक दंगे में गीता प्रेस के स्टाफ ने हिस्सा लिया। रामचरित मानस , गीता एवम अन्य गर्न्थो के अलावा अन्य विचार कल्याण नामक पत्रिका में प्रकाशित होते है। गीता प्रेस की नजर में हिन्दू कोड बिल, सेकुलरिज्म, बहुत बड़ी बुराइयां थी। गीता प्रेस ने दलितों के मंदिर प्रवेश का भी विरोध किया। गीता प्रेस ने हिन्दू समाज को नैतिक निर्देशन देने का काम भी किया। स्त्रियों की आचार संहिता छपवाई। और महिलाओं के लिए कहा कि उन्हें घर संभालना चाहिए एवं आधुनिक शिक्षा न लेकर केवल संस्कृत विद्यापीठों में पढऩा चाहिए। किशोरी दास वाजपेयी ने लिखा कि गणित जैसे विषय मे मास्टर डिग्री ली हुई लड़कियां उदास रहती हैं और घर गृहस्थी के काम की नही रहती, विवाह के लिए अनफिट होती हैं।

1928 में मॉस्को में हुए एंटी गॉड सम्मेलन का गीता प्रेस ने पुरजोर विरोध किया। गीता प्रेस ने इस बात पर भी चिंता व्यक्त कि कम्युनिज्म जैसा राक्षसी विचार भारत मे भी बढ़ रहा है।गीता प्रेस ने कहा कि हिन्दू धर्म वस्तुत: कम्युनिज्म , समाजवादी ही है।1959 में कल्याण में कम्युनिज्म केपक्ष में एक आर्टिकल रूसी विद्वान नेस्तरेन्को का भी छप। कल्याण के कुछ अंक काफी प्रगतिशील भी होते थे। उसमें मुस्लिम और ईसाई आध्यात्मिक विभूतियों के भी परिचय होते थे, जिस कारण कल्याण को कट्टर हिंदुओं का विरोध भी झेलना पड़ा। पचास के दशक में गीता प्रेस के मुखिया हनुमान प्रसाद पोदार ने हिन्दू कोड बिल के मुद्दे पर डॉक्टर अंबेडकर के खिलाफ काफी कुछ लिखा और साफ साफ कहा कि कैसे एक अछूत तय कर सकता है कि हिन्दू धर्म कैसे चले?

गीता प्रेस दलितों के मंदिर प्रवेश के पक्ष में नही रही। उन्होंने कहा कि दलितों के अलग मंदिर होने चाहिए।बीच बीच में गीता प्रेस आरएसएस का भी समर्थन करती थी। गीता प्रेस के कर्ता धृताओ ने अपनी सदस्यता केवल ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य के लिए सुरक्षित रखी थी। और राजस्थान में गुरुकुल भी खोले जो केवल ऊपरी 3 वर्णों के बालको के लिए थे।गीता प्रेस की आज के हिन्दू धर्म को आकार देने में बड़ी भूमिका रही है।

गीता प्रेस वस्तुत: कुछ राजस्थानी बनियों का ऐसा प्रोजेक्ट रहा है जिसका मकसद है बनियों को धर्म रक्षक साबित करना और वर्णाक्रम में बेहतर स्थिति में ले आना। जो पैसा तो ग्लोबल और सभी समुदायों से बिजनेस करके कमा रहे थे लेकिन दूसरों को संकुचित बनाना चाह रहे हैं।

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