अंतरराष्ट्रीय
रहीमुल्लाह हक़्क़ानी
अफ़ग़ानिस्तान में महिलाओं की शिक्षा के हिमायती नामचीन मौलवी शेख़ रहीमुल्लाह हक़्क़ानी की काबुल में एक आत्मघाती हमले में मौत हो गई है.
तालिबान के सूत्रों ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया है कि हमला ऐसे व्यक्ति ने किया जिसका एक पैर नहीं था और उसने प्लास्टिक के बने अपने कृत्रिम पैर में विस्फोटक छिपाया था.
तालिबान सरकार के गृह मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने रॉयटर्स से कहा,"हम पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि वो कौन शख्स था जो उन्हें शेख़ रहीमुल्लाह हक़्क़ानी के निजी दफ़्तर जैसी अहम जगह पर लेकर आया. ये अफ़ग़ानिस्तान के लिए एक बहुत बड़ा नुक़सान है."
इस आत्मघाती हमले की ज़िम्मेदारी इस्लामिक स्टेट ने ली है. इस्लामिक स्टेट पहले भी रहीमुल्लाह पर हमले कर चुका है.
स्थानीय रिपोर्टों के मुताबिक ये हमला अफ़ग़ानिस्तान की राजधानी काबुल में एक मदरसे के भीतर हुआ है.
शेख़ हक़्क़ानी अफ़ग़ानिस्तान की तालिबान सरकार के समर्थक थे और उन्हें इस्लामिक स्टेट इन ख़ुरासान (आईएस-के) का घोर विरोधी माना जाता था.
आईएस-के, इस्लामिक स्टेट की शाखा है जो अफ़ग़ानिस्तान में सक्रिय है. ये ग्रुप तालिबान के शासन का विरोध करता है.
पिछले साल 15 अगस्त को तालिबान के लड़ाके देश की राजधानी काबुल में दाखिल हुए थे. उसके बाद से ये अफ़ग़ानिस्तान में सबसे बड़ी हस्ती की हत्या बताई जा रही है.
तालिबान के एक वरिष्ठ अधिकारी ने रॉयटर्स को बताया, "ये अफ़ग़ानिस्तान की इस्लामी अमीरात के लिए एक बहुत बड़ा झटका है. हम इस बात की जांच कर रहे हैं कि इस हमले के पीछे कौन लोग शामिल थे."
एक जैसा नाम होने के बावजूद शेख़ हक़्क़ानी का अफ़ग़ानिस्तान की राजनीति में अहम हक़्क़ानी मिलिटेंट ग्रुप से कोई नाता नहीं था.
शेख़ हक़्क़ानी अफ़ग़ानिस्तान में महिलाओं की शिक्षा के पक्ष में फ़तवा जारी कर चुके हैं.
इसी साल बीबीसी संवाददाता सिकंदर किरमानी से बातचीत में उन्होंने कहा था कि अफ़ग़ान महिलाओं और लड़कियों को पढ़ने का हक़ है.
उन्होंने कहा था, "शरियत में महिलाओं और लड़कियों को न पढ़ने देनें का कोई ज़िक्र नहीं है. ये बिल्कुल न्यायसंगत नहीं है. सभी धार्मिक किताबें ये कहती हैं कि महिलाओं की शिक्षा की अनुमति है और अनिवार्य है. क्योंकि अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान जैसे मुल्कों में अगर कोई महिला बीमार होती है तो ये बेहतर होगा कि उसका इलाज कोई महिला डॉक्टर ही करे. "
अफ़ग़ानिस्तान के कुछ ही प्रांतों में लड़कियों को पढ़ने दिया जाता है. बाक़ी देश में लड़कियों के स्कूल फ़िलहाल बंद पड़े हैं.
अफ़गानिस्तान में तालिबान लड़कियों के हाई स्कूलों को खोलने का वादा करने के बाद भी मुकर चुके हैं. तालिबान प्रशासन ने कहा था कि लड़कियों के लिए यूनिफॉर्म अभी तय नहीं हुई है. इसलिए स्कूल नहीं खोले जा रहे हैं.
अगस्त 2021 में जब अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा हुआ था तो पूरे देश में स्कूल बंद कर दिए गए थे. ये स्कूल अब खुलने वाले थे लेकिन इस पर अभी कोई फैसला नहीं हुआ है.
कुछ इलाक़ों में लड़कियों के स्कूल खुले हैं लेकिन अधिकतर देश में अब भी बच्चियां पढ़ाई-लिखाई से दूर हैं.
जब तालिबान के सत्ता में आने के बाद शिक्षा मंत्रालय ने अचानक एलान किया था कि लड़कियों के सेकेंडरी स्कूल बंद रहेंगे, तो इसकी सख़्त आलोचना हुई थी.
एक ऐसे विषय पर तालिबान से अलग राय रखते हुए भी शेख़ हक़्क़ानी, काबुल के नए हुक़्मरानों के क़रीबी थे.
शेख हक़्क़ानी पर इससे पहले भी दो बार हमला हो चुका है. पिछला हमला 2020 में हुए था. उस वक़्त भी इस्लामिक स्टेट ने पाकिस्तानी शहर पेशावर में हुए हमले की ज़िम्मेदारी ली थी.(bbc.com)