सामान्य ज्ञान
कंपनी विधेयक-2012, 1956 के कंपनी कानून का स्थान लेगा। इस विधेयक का उद्देश्य देश में निगमित प्रशासन में सुधार लाना, विकास की गति को बल प्रदान करना तथा कार्पोरेट क्षेत्र में पारदर्शिता सुनिश्चित करना है। इस विधेयक में कर्मचारियों और निवेशकों के हितों को सुरक्षित रखने के प्रावधान हैं। इससे प्रमोटर और प्रबंधन के बीच बेहतर तालमेल और समन्वय बनने की उम्मीद है।
इस विधेयक में कंपनियों को गत तीन साल के औसत मुनाफे का कम से कम दो फीसद कॉरपोरेट सामाजिक दायित्व (सीएसआर) गतिविधियों पर खर्च करने का प्रावधान है। कंपनियों को सीएसआर के बारे में अपनी वेबसाइट पर जानकारी देनी होगी। इसके साथ ही उन्हें खर्च का ब्यौरा भी देना होगा। कंपनियों पर सामाजिक कल्याण के कार्यो को बाध्यता के बजाय स्वैच्छिक बनाया गया है। इस विधेयक को दो बार स्थायी समिति में भेजा गया। समिति की 193 सिफारिशें में से 97 प्रतिशत को स्वीकार कर लिया गया। इससे कंपनियों के लिए अपने बोर्ड में एक तिहाई स्वतंत्र निदेशकों को शामिल करने की बाध्यता भी होगी। साथ ही प्रत्येक कंपनी को बोर्ड में कम से कम एक महिला निदेशक की नियुक्ति करनी होगी। कंपनियों को इस बात के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा कि दलित, गरीब सहित हर वर्ग की महिलाओं को बोर्ड में प्रतिनिधित्व मिले।
कॉरपोरेट गवर्नेस से जुड़े मामलों में और ज्यादा पारदर्शिता लाने के लिए इसमें ठोस उपाय किए गए हैं। साथ ही कंपनियों से जुड़े मामलों की जल्द सुनवाई के लिए विशेष अदालतों के गठन का प्रावधान भी किया गया है। इस विधेयक के अनुसार अब एक ऑडिटर बीस से अधिक कंपनियों के खातों की जांच नहीं कर पाएगा। ऑडिटरों की आपराधिक जवाबदेही भी तय की गई है। विधेयक में पारदर्शी कार्पोरेट गवर्नेंस तथा गड़बडिय़ों को दूर करने के मकसद से विभिन्न मामलों की त्वरित सुनवाई के लिए विशेष अदालतें गठित किए जाने का भी प्रावधान किया गया है।
नए कानून से कार्पोरेट जगत की विभिन्न चुनौतियों का हल निकल सकेगा और देश में विकास की दर तथा निवेश को बढ़ावा मिल सकेगा।