सामान्य ज्ञान
गिलोय सारे भारत में पाई जाने वाली यह दिव्य औषधि है, जिसे संस्कृत में गडूची और अम्रतवल्ली, अमृता, मराठी में गुडवेल, गुजराती में गिलो,लेटिन में टिनिस्पोरा कोर्डीफ़ोलिया, के नामों से जाना जाता है। वर्षों तक जीवित रहने वाली यह बेल या लता अन्य वृक्षों के सहारे चढ़ती है। नीम के वृक्ष के सहारे चढऩे वाली गिलोय औषधि उपयोग के लिए सर्वश्रेष्ठ होती है। इसीकारण इसे नीम-गिलोय भी कहा जाता है। इसका फल लाल झुमकों में लगता है।
कसैली,कड़वी,उष्ण वीर्य,रसायन,यह गिलोय मलरोधक,बल बर्धक,भूख वर्धक,आयु वर्धक,ज्वर,पीलिया,खांसी,से लेकर लगभग 20 से अधिक सामान्य रोगों को ठीक करती है। आयुर्वेद की द्रष्टि से शामक प्रभाव वाली यह औषधि दिव्य इसलिए है क्योंकि यह सभी बढ़े हुए या घटे हुए दोषों को सम करके कुपित दोषों पर शामक प्रभाव डालकर उन्हें सम या सामान्य करके रोगों से मुक्त करती है। इसीकारण यह अमृता कहलाती है।
ज्वर - को ठीक करने का इसमें अद्भुत गुण हैं। यद्यपि यह मलेरिया पर अधिक प्रभावी नहीं है। जब कोई भी औषधि से मंद ज्वर नहीं जाता तो गिलोय चूर्ण या सत्व को तुलसीपत्र,वनफशा,रुद्राक्ष चूर्ण,कालीमिर्च के साथ शहद के साथ देने पर चमत्कारिक रूप से रोगी स्वस्थ हो जाता है।
यकृत (लीवर) के रोग, बढ़ी हुई तिल्ली(स्प्लीन) जलोदर, कामला, पीलिया, पर इसका बड़ा प्रभाव देखा गया है।
गिलोय, खाज खुजली जैसेे चर्म रोग में शुद्ध गूगल के साथ बड़ी लाभकारी सिद्ध हुई है। गिलोय की जड़ें शक्तिशाली एंटीऑक्सिडेंट है। यह कैंसर की रोकथाम और उपचार में प्रयोग की जाती है। गिलोय उच्च कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करने के लिए, शर्करा का स्तर बनाए रखने में मदद करता है और जिगर के रूप में अच्छी तरह से बचाता है। यह बुढ़ापे से बचने के लिए मजबूत कारक के रूप में प्रयोग किया जाता है।