संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : लोकतंत्र नाम का बस शब्द ही एक है, वरना अलग-अलग जगह...
24-Aug-2022 1:22 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय :  लोकतंत्र नाम का बस शब्द ही एक है, वरना अलग-अलग जगह...

मिजोरम के मुख्यमंत्री जोरमथंगा की बेटी का एक वीडियो खबरों में आया जिसमें वह एक क्लिनिक में डॉक्टर को पीट रही है। समाचार बताता है कि वह बिना समय लिए डॉक्टर से मिलने गई थी, और डॉक्टर ने जब अपाइंटमेंट लेकर आने कहा तो भडक़कर उसने डॉक्टर पर बुरी तरह हमला किया। इसके खिलाफ पूरे मिजोरम के डॉक्टरों ने विरोध करते हुए काली पट्टी लगाकर काम किया, और आईएमए ने बयान जारी किया। यह सब देखते हुए मुख्यमंत्री ने सार्वजनिक रूप से इस डॉक्टर से माफी मांगी, और कहा कि मेरी बेटी के व्यवहार के बचाव में मैं कुछ कहना नहीं चाहता, हम जनता और डॉक्टर से माफी मांगते हैं। उन्होंने लिखा कि उनकी बेटी पर कठोर कार्रवाई न करने को लेकर वे आईएमए के आभारी हैं। इसके पहले मुख्यमंत्री के बेटे ने भी सोशल मीडिया पर माफी मांगी थी कि मानसिक तनाव की वजह से उनकी बहन बेकाबू हो गई थीं।

मिजोरम देश के उन बेहतर प्रदेशों में से है जहां कानून का राज कुछ अधिक कड़ाई से चलता है, और इसीलिए मुख्यमंत्री-परिवार की तरफ से ऐसे माफीनामों की नौबत आई है। शायद वहां पर शराफत के पैमाने भी थोड़े अलग होंगे, और जनता शायद अधिक संवेदनशील होगी। वरना ऐसी ही हरकत देश के कई दूसरे प्रदेशों में होकर गुजर गई होती, और पिटा हुआ डॉक्टर खुद छुपते रहता कि मीडिया उससे कोई बयान न निकलवा ले। लोगों को याद होगा कि किस तरह मध्यप्रदेश के इंदौर में भाजपा के एक सबसे बड़े नेता कैलाश विजयवर्गीय के विधायक बेटे ने क्रिकेट के बल्ले से खुलेआम एक म्युनिसिपल अफसर को पीटा था जो कि एक अवैध निर्माण गिराने वाले दस्ते के साथ गया था। क्रिकेट बैट से बार-बार मारते हुए इसका साफ वीडियो चारों तरफ आया था, तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने उसे गिरफ्तार किया था, जमानत पर छूटने पर भाजपा ने उसका ऐसा जमकर स्वागत किया था कि उसमें हवाई फायर तक किए गए थे। दूसरी तरफ जब इस मामले की सुनवाई हुई तो इसी अफसर ने अदालत में यह बयान दिया कि वह नहीं देख पाया कि उस पर किसने हमला किया। देश के अधिकतर हिस्सों में मिजोरम जैसी माफी कम दिखेगी, इंदौर की तरह पिटने के बाद की मुकरी हुई गवाही अधिक दिखेगी, क्योंकि सत्ता का आतंक कम नहीं रहता है।

आज इस मुद्दे पर लिखने की बात इसलिए सूझी कि अभी-अभी योरप के एक देश फिनलैंड की खबर आई थी जिसमें वहां की काफी कम उम्र की महिला प्रधानमंत्री सना मारिन कुछ नशे की हालत में एक पार्टी में खुलकर डांस करते दिख रही हैं, वहां के विपक्ष ने उनके व्यवहार को लेकर आपत्ति की, और यह शक जाहिर किया कि हो सकता है कि उन्होंने ड्रग्स (प्रतिबंधित नशा) भी ली हो। इसके जवाब में 36 बरस की इस प्रधानमंत्री ने सार्वजनिक घोषणा की कि वे आरोपों का जवाब देने के लिए मेडिकल जांच करवा रही हैं जिससे यह साफ हो जाएगा कि उन्होंने ड्रग्स ली थीं, या नहीं। लेकिन यह अकेली बात नहीं है जो कि सार्वजनिक जीवन में जवाबदेही दिखा रही है। एक और खबर अमरीका से आई है जहां अमरीकी निर्वाचित संसद की अध्यक्ष नैंसी पेलोसी के पति पॉल पेलोसी को शराब के नशे में गाड़ी चलाने के आरोप में पांच दिन जेल की सजा सुनाई गई है। उन्होंने नशे में गाड़ी चलाते हुए उनके घर के पास ही खड़ी एक दूसरी गाड़ी को टक्कर मार दी थी जिससे दोनों गाडिय़ां टूट-फूट गई थीं। 82 बरस के पॉल पेलोसी को अब कार चलाते हुए हर बार कार के उपकरण पर अपनी सांस का नमूना देना होगा जिससे यह पता लगेगा कि उन्होंने शराब तो नहीं पी रखी है, और अगर वे नशे में मिले तो गाड़ी शुरू नहीं होगी।

क्या हिन्दुस्तान में कोई लोकसभा अध्यक्ष के जीवनसाथी के बारे में ऐसी कल्पना कर सकते हैं? इस देश में तो सत्तारूढ़ छोटे से नेताओं के जुर्म भी ढांकने के लिए पुलिस आमतौर पर अपनी पूरी ताकत से टूट पड़ेगी, और जरूरत पडऩे पर किसी दूसरे बेगुनाह को तलाशकर, छांटकर उसे मुजरिम बताकर पेश भी कर दिया जाएगा।

इन तीन-चार घटनाओं से दो बातें सामने आती हैं, एक तो यह कि कानून लागू करने वाली पुलिस अगर अमरीकी कड़ाई वाली हो, तो छोटे-बड़े किसी भी तरह के लोग जुर्म करने से पहले हिचकेंगे। संसद की अध्यक्ष के पति को आखिर पकड़ा तो किसी सिपाही ने ही होगा, जिसे यह भी मालूम हो चुका होगा कि वह किसका चालान कर रहा है, किसे जेल ले जा रहा है। यहां पिछले बरस कोरोना लॉकडाउन के दौरान ब्रिटिश प्रधानमंत्री निवास पर हुई दारू पार्टी की जांच करने वाली लंदन पुलिस को भी याद करना ठीक होगा जिसने कि जांच के बाद पार्टी में मौजूद लोगों पर जुर्माना भी लगाया। क्या हिन्दुस्तान में कोई किसी थानेदार के घर पर भी हुई पार्टी पर जुर्माने की कल्पना कर सकते हैं? दूसरी बात यह कि जहां नेताओं के मन में जनता के प्रति जवाबदेही और सम्मान रहता है, वहां पर वे फिनलैंड की प्रधानमंत्री की तरह अपनी खुद की जांच को भी तैयार हो जाते हैं, या मिजोरम के मुख्यमंत्री की तरह खुलकर माफी भी मांग लेते हैं।

हिन्दुस्तान के अधिकतर हिस्से में लोकतंत्र इतना बदहाल हो चुका है कि हत्यारे और बलात्कारी लोगों को सरकार नाजायज तरीके से रिहा कर रही है, और समाज उन्हें माला पहनाकर, मिठाई खिलाकर उनका स्वागत कर रहा है। हिन्दुस्तान के अधिकतर हिस्से में कानून और तथाकथित इंसानियत की बस इतनी ही इज्जत रह गई है। एक वक्त था जब इमरजेंसी के दौरान संजय गांधी और उसके गिरोह की गुंडागर्दी के बारे में जनता पार्टी की सरकार आने पर फिल्म भी बनाई गई, कई किताबें भी लिखी गईं। लेकिन क्या आज सत्ता पर काबिज लोगों की गुंडागर्दी पर खबरें भी दो-चार दिन में दम नहीं तोड़ देती हैं? हिन्दुस्तानी लोकतंत्र सभ्यता में जहां तक भी पहुंचा था, वह बहुत तेज रफ्तार से वापिस जा रहा है। हवा में न सिर्फ साम्प्रदायिकता का हिंसक जहर बढ़ते चल रहा है, बल्कि लोगों के बीच कानून का किसी भी तरह का सम्मान तेज रफ्तार से खत्म हो रहा है। यह देश खुद दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक ताकत बनने का दंभ भर रहा है, लेकिन यहां लोकतंत्र, सभ्य जीवन, और तथाकथित इंसानियत के बुनियादी पैमानों पर भी लगातार गिरावट जारी है, और सबसे बड़ी बात यह कि यह गिरावट न सिर्फ राजनीतिक सत्ता की ताकत से हो रही है, बल्कि इसमें न्यायपालिका और मीडिया की ताकत से भी गिरावट हो रही है।
(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)  

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news