संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : नौकर-नौकरानियों पर जुल्म ढहाने वालों को कैद भी हो, और उनकी दौलत भी छिने
31-Aug-2022 4:20 PM
 ‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय :  नौकर-नौकरानियों पर जुल्म ढहाने वालों को कैद भी हो, और उनकी दौलत भी छिने

झारखंड की राजधानी रांची में पुलिस ने एक शिकायत के बाद भाजपा की एक महिला नेता सीमा पात्रा को गिरफ्तार किया है जिस पर अपनी घरेलू नौकरानी को बंधुआ मजदूर बनाकर रखने और उसकी भयानक प्रताडऩा करने का आरोप है। यह महिला भाजपा महिला विंग की राष्ट्रीय कार्यसमिति की सदस्य हैं, और उन्हें इस शिकायत के सामने आने के बाद बीजेपी ने निलंबित किया है। इस महिला के पति एक रिटायर्ड आईएएस अफसर हैं, और इसका बेटा अपनी मां के जुर्म से असहमत था, और उसी से यह जानकारी बाहर निकली, और पुलिस ने जाकर किसी तरह उस आदिवासी नौकरानी को कैद से निकाला जिसे यह महिला गर्म तवे और डंडों से पीटती थी जिससे उसके दांत भी टूट गए थे, और वह बहुत खराब शारीरिक-मानसिक हालत में आठ बरस से कैद थी। झारखंड के राज्यपाल रमेश बैस ने भी इस पूरे मामले के उजागर होने पर राज्य के पुलिस प्रमुख से पूछा है कि इस पर कार्रवाई क्यों नहीं हुई है। इस महिला नौकरानी ने मजिस्ट्रेट के सामने पूरा बयान दिया है।

घरेलू नौकरों को बंधुआ मजदूर की तरह रखकर उन पर तरह-तरह के जुल्म ढहाते हुए उनसे अमानवीय काम करवाना बहुत अनोखी बात नहीं है। गांव से जो नौकरों को लाकर शहरों में रखते हैं, वे बहुत से मामलों में उन्हें बंधुआ मजदूर से बेहतर नहीं रखते। न उन्हें इंसानों की तरह जीने की सहूलियत रहती, न नौकरी और तनख्वाह की कोई गारंटी रहती, और न ही इलाज या किसी और तरह के कानूनी अधिकार उन्हें मिलते हैं। गांव में भी घरवाले इतनी कमजोर आर्थिक स्थिति के रहते हैं कि किसी को शहर में जिंदा रहने लायक काम ही मिल जाए, तो उसे वे बहुत समझ लेते हैं। भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों, कुछ पहाड़ी इलाकों, और अधिकतर आदिवासी इलाकों से लडक़े-लड़कियों को गुलाम की तरह ले जाया जाता है, और वे गांव के मुकाबले बेहतर जिंदगी की उम्मीद में चले जाते हैं। इनमें से कई लोग तो ईसाई स्कूलों की मेहरबानी से कुछ पढ़े-लिखे भी होते हैं, और उन्हें लगता है कि वे एक बार शहर पहुंच जाएंगे, तो ऊपर का सफर वे खुद तय कर लेंगे। लेकिन शहर बेरहम होता है, और अड़ोस-पड़ोस के लोग बेबस नौकर-नौकरानी पर, बाल मजदूरों पर जुल्म देखते हुए भी चुप रहते हैं, क्योंकि उनके मालिक पड़ोसियों के वर्ग-मित्र रहते हैं, और उनसे बुराई भला क्यों मोल ली जाए।

अभी झारखंड की राजधानी रांची में जुल्म की शिकार इस गरीब आदिवासी का मामला सामने आया है जो कि उसी राज्य की रहने वाली थी। जब ऐसे लोग महानगरों में जाकर वहां संपन्न घरों में बंधुआ मजदूरी करते हैं, तो वे और अधिक कमजोर और बेबस हो जाते हैं। वे अपने इलाके से, अपनी जुबान से बहुत दूर चले जाते हैं, और महानगरों की हमदर्दी किसी कमजोर के साथ रहती नहीं है। नतीजा यह होता है कि बहुत से मामलों में ऐसे मजदूर लडक़े-लड़कियों का देह शोषण भी होता है, और उन्हीं में से हर बरस दसियों हजार लोगों को देह के धंधे में धकेलकर कई लोग कमाई कर लेते हैं। ये दोनों-तीनों किस्म के मामले मिले-जुले रहते हंै, और कब घरेलू जुल्म से निकलकर इनमें से कुछ लड़कियां रेड लाईट एरिया पहुंच जाती हैं, इसका कोई ठिकाना नहीं रहता।

कुछ प्रदेशों में अगर ऐसा कानून होगा भी तो भी उस पर अमल जरा भी नहीं है कि घरेलू नौकर-नौकरानी की पूरी जानकारी करीब के थाने में दी जाए, और कोई सरकारी अमला या सामाजिक कार्यकर्ता बीच में कभी जाकर ऐसे नौकरों का हालचाल पूछकर आएं, यह समझकर आएं कि उन्हें किन स्थितियों में रहना पड़ रहा है, उनकी पूरी तनख्वाह मिलती है या नहीं। आज सरकारों के श्रम विभाग भी सिर्फ संगठित मजदूरों वाले संस्थानों तक अपनी दिलचस्पी सीमित रखते हैं, घरेलू नौकर-नौकरानी, या घरों में पूरे वक्त के लिए रखे जाने वाले दूसरे कामगार किसी तरह के कानूनी अधिकार नहीं पाते हैं। राज्यों को अधिक सुधारवादी रूख अपनाना चाहिए, और इस बात को दंडनीय अपराध बनाना चाहिए, अगर सरकार को लिखित जानकारी दिए बिना लोग घरेलू या व्यापारी संस्थानों में नौकर रखते हैं।

झारखंड और छत्तीसगढ़ उन आदिवासी इलाकों में से सबसे आगे हैं जहां से लड़कियां और महिलाएं महानगरों की प्लेसमेंट एजेंसियों द्वारा बाहर ले जाई जाती हैं, और वहां उन्हें काम से लगाया जाता है, या रेड लाईट एरिया में बेच दिया जाता है। मानव तस्करी के आंकड़े भयानक हैं, और सरकारें इस सामाजिक खतरे को मानने के लिए तैयार नहीं होती हैं क्योंकि दूसरे शहरों में बसे हुए मजदूर किसी पार्टी या नेता के संगठित वोटर नहीं होते हैं। सरकार के साथ-साथ इस बात को रिहायशी इमारतों की भी जिम्मेदारी बनाना चाहिए कि वहां के घरों में काम करने वाले लोगों का पूरा रिकॉर्ड इकट्ठा करके पुलिस को देना वहां के निवासी संघ या बिल्डर की कानूनी जिम्मेदारी रहे। सरकारों को नमूने के तौर पर ऐसे कुछ लोगों पर कार्रवाई करनी भी चाहिए, और ऐसे गैरजिम्मेदार लोगों पर मोटा जुर्माना भी लगाना चाहिए, इसकी खबरें और लोगों पर असर करेंगी।

झारखंड के इस मामले में फंसी हुई महिला भाजपा की ऐसी नेता है जिसका फेसबुक पेज और ट्विटर पेज पिछले कई हफ्तों से सिर्फ तिरंगे झंडे लिए हुए अपनी तस्वीरों वाला है। उसने अलग-अलग नेताओं के साथ, अलग-अलग कार्यक्रमों में अपनी खुद की सैकड़ों तस्वीरें झंडा थामे हुए पोस्ट की हैं। अब घरेलू नौकरानी को गर्म लोहे से पीटना, सलाखों से उसके दांत तोड़ देना, और बाहर तिरंगा यात्रा निकालना, घर-घर तिरंगा फहराना, यह सार्वजनिक जीवन में कथनी और करनी का बहुत बड़ा विरोधाभास है। कानून को कड़ाई से काम करना चाहिए, इस महिला को कई बरस की कैद होनी चाहिए, और इसकी दौलत का एक बड़ा हिस्सा इसकी शिकार महिला को मुआवजे में मिलना चाहिए। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन जब कभी अपने विधायकों के साथ राज्य को सुरक्षित पाकर लौट सकें, तब उन्हें वहां की गरीब आदिवासी जनता की सुरक्षा भी करनी चाहिए।
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