सामान्य ज्ञान
मुअम्मर गद्दाफी या कर्नल गद्दाफी लीबिया का तानाशाह हुए हैं। एक सितंबर 1969 को सैन्य तख्तापलट के बाद मुअम्मर गद्दाफी लीबिया ने खुद को लीबिया का शासक घोषित किया।
लीबिया यूनिवर्सिटी के बेनगाजी कॉलेज में पढऩे के दौरान गद्दाफी ने सेना में भर्ती होने का फैसला किया। पुलिस रिकॉर्ड खराब होने के बावजूद रॉयल मिलिट्री अकादमी में उनकी ट्रेनिंग शुरू हुई। 60 के दशक में लीबिया में राजा इदरिस की सरकार के खिलाफ जन असंतोष बढऩे लगा। उन्हें इस्राएल का करीबी माना जाता था। गद्दाफी ने इसे भांप लिया। अकादमी में ट्रेनिंग ब्रिटिश सैन्य अफसर दिया करते थे। टेस्ट के दौरान गद्दाफी ने अंग्रेजी बोलने से मना कर दिया, इसके चलते उन्हें फेल कर दिया। इसी दौरान यह भी शक हुआ कि 1963 में अकादमी के कमांडर की हत्या में वो शामिल हैं। हालांकि बड़े सैन्य अफसरों ने गद्दाफी का बचाव किया। धीर- धीरे गद्दाफी सेना के भीतर ही अपने विश्वस्त लोगों का एक गुट बनाते गए।
इसी दौरान 1966 में तीसरे इस्राएल-अरब जगत के बीच चले छह दिन के युद्ध में अरब देशों की बुरी हार हुई। मिस्र समेत अरब जगत की ऐसी हार के लिए इस्राएल और पश्चिमी देशों को जिम्मेदार ठहराया गया। विवाद को धर्म युद्ध जैसा नाम दिया गया। राजा इदरिस को खुले तौर पर इस्राएल का समर्थक करार दिया गया। उनके खिलाफ असंतोष अब और सुलग गया।
एक सितंबर 1969 की सुबह गद्दाफी की अगुवाई में विद्रोहियों ने राज परिवार को बंधक बना लिया। त्रिपोली को पूरी तरह अपने नियंत्रण में ले लिया। गद्दाफी ने खुद को शासक घोषित किया और देश को लीबिया अरब गणतंत्र नाम दिया। पूरे घटनाक्रम को पहली सितंबर की क्रांति कहा गया। खुद को सुधारवादी कहने वाले गद्दाफी ने शुरुआत में समाजवादी नीतियां भी अपनाई, लेकिन धीर- धीरे वक्त के साथ वो कट्टर होते गए। उन्होंने अपने विरोधियों की हत्याएं करवाई, दूसरे देशों में भी उन पर हमले कराए। 1988 के लॉकरबी हमले के बाद पश्चिम से उनके रिश्ते बिगड़ते चले गए। अमेरिकी यात्री विमान में हुए बम हमले में 243 लोग मारे गए।
इसके बाद गद्दाफी भी पश्चिम विरोधी होते गए. वो धार्मिक उन्मांद का भी सहारा लेने लगे। साथ ही खुद भी विलासिता में डूबे रहने लगे। उनकी छवि महिलाओं से बलात्कार, कुछ लोगों को बेशकीमत तोहफे देने और विरोधियों की कहीं भी हत्या कराने वाले शासक की बन गई। लेकिन 2011 के ट्यूनीशिया से शुरू हुए अरब वसंत को गद्दाफी सही तरह नहीं भांप सके। उनके देश में भी प्रदर्शन हुए। कई कबीलों वालों लीबिया में कुछ गुट उनके खिलाफ हथियारबंद संघर्ष भी करने लगे। शुरुआत में गद्दाफी ने विरोधियों को सेना के जरिए कुचलने की कोशिश की, लेकिन बाद में फ्रांस की मदद से विरोधियों ने आखिर गद्दाफी को सिमटने पर मजबूर कर दिया। 20 अक्टूबर 2011 को गद्दाफी विरोधियों के हाथ लग गए। उनका वहीं अंजाम हुआ जो तानाशाहों का होता है। कभी खुद विद्रोही रहे गद्दाफी नए विरोधियों के हाथों मारे गए।