संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : कहीं जंग तो कहीं मौसम की मार, यह वक्त बहुत चौकन्ना रहने का है...
08-Sep-2022 4:36 PM
 ‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : कहीं जंग तो कहीं मौसम की मार, यह वक्त बहुत चौकन्ना रहने का है...

छह महीने से अधिक हुए जब रूस ने यूक्रेन पर हमला किया जिसकी चेतावनी कई दिन पहले से अमरीका देते आ रहा था, और अमरीका यह चेतावनी भी दे रहा था कि अगर रूस ने ऐसा किया तो उस पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाए जाएंगे। रूस ने हमला किया, और अमरीका ने योरप के देशों के साथ मिलकर रूस पर अभूतपूर्व कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाए। इसके पहले पश्चिमी देश कभी अफगानिस्तान पर, कभी ईरान, उत्तर कोरिया और वेनेजुएला पर ऐसे प्रतिबंध लगाते आए हैं, उनका भी असर इन देशों पर अलग-अलग सीमा तक पड़ा, लेकिन रूस पर लगाए गए प्रतिबंध बहुत अधिक कड़े थे, और रूस इसी दौरान एक बड़े खर्चीले युद्ध को भी छेड़ बैठा था। नतीजा यह हुआ कि रूस के साथ दुनिया के एक बड़े हिस्से का कारोबार थम गया, और ऐसा माना जा रहा है कि रूस को जंग लडऩे के लिए भी तंगी हो रही है। दुनिया भर में रूसी सरकार, बैंकों, और कारोबारियों के बैंक खाते जब्त कर लिए गए हैं, फिर भी पश्चिम की उम्मीद पूरी नहीं हो पाई है, और रूस की घरेलू अर्थव्यवस्था की कमर नहीं टूटी है।

कल रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने एक आर्थिक मंच पर एक लंबे भाषण में पश्चिमी प्रतिबंधों पर जमकर हमला किया, और कहा कि इससे रूस का तो कोई नुकसान नहीं हुआ है, लेकिन पश्चिमी देशों की हालत खराब हो गई है। पश्चिम की कोशिश तो रूसी अर्थव्यवस्था को खत्म करने की थी, लेकिन इन प्रतिबंधों से बाकी दुनिया की अर्थव्यवस्था चौपट हुई है। पुतिन की कही हुई बात इस मायने में तो सही है ही कि आज दुनिया भर के देश रूस-यूक्रेन जंग के चलते अभूतपूर्व महंगाई झेल रहे हैं, ईंधन की कमी है, साथ ही अनाज से लेकर खाद तक की कमी है, और इस जंग के खत्म होने तक नौबत सुधरने के आसार भी नहीं है। इसलिए पुतिन की कही बात को इस संदर्भ में देखने की जरूरत है कि इस जंग की वजह से लगाए गए प्रतिबंधों का नुकसान बाकी दुनिया को कितना झेलना पड़ रहा है? और पश्चिम के देश तो फिर भी संपन्न हैं, और वहां पर महंगाई को लोग किसी तरह झेलकर जिंदा भी रह लेंगे, लेकिन बाकी दुनिया के गरीब देश बिल्कुल भी इस हालत में नहीं हैं कि इस जंग और आर्थिक प्रतिबंधों की वजह से पैदा हालात झेल सकें। हिन्दुस्तान के एकदम करीब के देश देखें तो श्रीलंका और पाकिस्तान बहुत खराब हालत में हैं, बांग्लादेश अच्छी हालत में नहीं है, और अफगानिस्तान में भुखमरी की नौबत अधिक दूर नहीं है। बाकी दुनिया के जो सबसे बदहाल देश हैं, उनमें यमन से लेकर सोमालिया तक बहुत से देश बिना रूसी-यूक्रेनी अनाज के भुखमरी की कगार पर हैं। जंग के बीच संयुक्त राष्ट्र की दखल से यूक्रेन से कुछ अनाज निकला है, जिसके बारे में पुतिन ने यह आरोप लगाया है कि वह गरीब देशों के नाम पर निकला है, लेकिन वह योरप ले जाया जा रहा है।
अब हिन्दुस्तान ने अमरीका और बाकी योरप के दबाव को झेलते हुए भी रूस के बहिष्कार का फतवा नहीं माना था। भारत ने यह भी साफ कर दिया था कि जब योरप रूस से गैस और तेल लगातार ले रहा है, तब भारत से रूस के बहिष्कार की उम्मीद करना नाजायज है। यह भी कह दिया गया था कि भारत में गरीबी अधिक है, और ऐसे देश को दूसरी जगहों से महंगा तेल लेने पर मजबूर नहीं किया जाना चाहिए। भारत के रूस से जो पुराने दोस्ताना रिश्ते रहे हैं, उनका भी असर था कि भारत अमरीकी और पश्चिमी दबाव के सामने नहीं झुका। चीन, हिन्दुस्तान, और ईरान जैसे देश रूस के साथ कारोबारी रिश्ते बनाए चल रहे हैं, और रूस में इस वजह से भी हालात खराब नहीं हो पाए हैं।

लेकिन कल पुतिन की कही बातों को इस संदर्भ में भी देखने की जरूरत है कि यूक्रेन की स्वायत्तता का साथ देने के नाम पर नैटो देशों, और अमरीका ने जिस तरह से यूक्रेन को जंग के मोर्चे पर डटाकर रखा है, वह यूक्रेन के कंधे पर बंदूक रखकर चलाने सरीखा मामला है। ये देश रूस के खिलाफ यूक्रेन को इतने हथियार दे रहे हैं कि वह जवाबी जंग जारी रख सके। इनका एक मकसद तो यह है कि यूक्रेनी फौज की शहादत की कीमत पर भी रूस को फौजी और आर्थिक रूप से कमजोर करना। इसके पीछे की रणनीति यह भी हो सकती है कि एक कमजोर रूस किसी और मोर्चे पर पश्चिमी देशों के खिलाफ बहुत हमलावर नहीं हो सकेगा। अगर सिर्फ कल्पना की बात की जाए तो जिस तरह यूक्रेन पर रूसी हमला हुआ, उसी तरह किसी भी दिन ताइवान पर अगर चीनी हमला होता है, तो उस नौबत में एक मजबूत रूस पश्चिमी फौजी हितों के खिलाफ रह सकता है। इसलिए भविष्य के किसी युद्ध की आशंका या संभावना देखते हुए पश्चिम आज से ही चीन के एक साथी देश को कमजोर कर रहा है, और इस काम में यूक्रेन उसे बंदूक टिकाने के लिए कंधे की तरह मिल गया है। पश्चिमी देशों की इस रूस विरोधी फौजी जरूरत, और चीन विरोधी संभावना से भारत का अधिक लेना-देना नहीं है। जंग के ये मोर्चे हिन्दुस्तान से बहुत दूर हैं, और हिन्दुस्तान ऐसे किसी भी दुस्साहसी फैसले का बोझ उठाने की हालत में भी नहीं है। इसलिए भारत अपने तात्कालिक सीमित राष्ट्रीय हितों के मुताबिक आज के इन अंतरराष्ट्रीय तनावों में किसी भी हिस्सेदारी से बच रहा है।

लेकिन आज जब रूस-यूक्रेन जंग का बोझ पूरी दुनिया की कमर तोड़ रहा है, तो ऐन उसी वक्त पाकिस्तान की विकराल बाढ़, और चीन से लेकर योरप तक के भयानक सूखे की विरोधाभासी प्राकृतिक विपदाएं एक साथ टूट पड़ी हैं। इन सबका भी दुनिया की अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ रहा है। ये जिन देशों में हैं, उन पर तो बुरा असर है ही, लेकिन इनके अलावा वे देश भी बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं जो यहां से सामान खरीदते थे, या बेचते थे। कुल मिलाकर आज दुनिया का हाल न सिर्फ जंग से बदहाल है, बल्कि यह मौसम की मार का भी बुरा शिकार है। यह अर्थव्यवस्था दुनिया के किस हिस्से को कहां ले जाकर पटकेगी, इसका कोई ठिकाना अभी नहीं है। लेकिन इस नौबत से एक सबक सबको लेना चाहिए कि किसी को आज यह मानकर नहीं चलना चाहिए कि आज उनके दिन जैसे हैं, उतने अच्छे आगे भी बने रहेंगे। ऐसी आशंका के साथ ही हर किसी को खर्च के लिए मुट्ठी भींचकर रखनी चाहिए, और मेहनत करने के लिए कमर कसकर तैयार रहना चाहिए।

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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