सामान्य ज्ञान

दारूहल्दी
12-Sep-2022 11:21 AM
दारूहल्दी

दारूहल्दी एक पेड़ की लकड़ी है जो अत्यंत चीमर और कठोर होती है। दारूहल्दी के गुण भी हल्दी के समान ही हैं। विशेष करके यह घावों, प्रमेह, खुजली, और रक्तविकार नाशक होता है, यह त्वचा के दोष, जहर और आंखों के रोगों को नष्ट करता है।

दारूहल्दी के पेड़ हिमालय क्षेत्र में अपने आप झाडिय़ों के रूप में उग आते हैं। यह बिहार, पारसनाथ और नीलगिरी की पहाडिय़ों वाले क्षेत्रों में भी पाई जाती है। इसका पेड़ 150 से लेकर 480 सेमी ऊंचा, कांटेदार, झाड़ीनुमा होता है। जिसका तना 8-9 इंच की मोटाई का होता है। इसके कांटेदार पत्ते 2 से 3 इंच लंबे होते हैं। इसके फूल 2-3 इंच लम्बी मंजडिय़ों पर गुच्छों में, सफेद या पीले रंग के होते हैं। इसके फल को जरिश्क के नाम से जाना जाता है। इसकी जड़ पीलापन लिए हुए छोटी-बड़ी गांठदार होती है। हल्दी के समान पीले कड़ुवे, हल्की गंध वाले जड़ के टुकड़े ही बेचे जाते हैं। डंठल और जड़ में पूरी तरह से पीलापन समाया रहने के कारण ही इसका नाम दारूहल्दी पड़ा है।  इसकी 6 जातियां पाई जाती हैं। लेकिन गुणों में ये लगभग समान होती है।

 विभिन्न भाषाओं में नाम-हिंदी-दारूहल्दी, संस्कृत-दारुहरिद्रा, मराठी-दारुहलद, गुजराती-दारुहल्दर, बंगाली-दारूहरिद्रा, लैटिन-बर्बेरिस अरिसटेटा

 दारूहल्दी पीले रंग की होती है। इसका स्वाद तीखा होता है। इसकी प्रकृति गर्म होती है।  इसका अधिक मात्रा में सेवन गर्म स्वभाव वालों के लिए हानिकारक होता है। आयुर्वेद के अनुसार दारूहल्दी लघु, स्वाद में कडु़वा, कषैला, तीखा, तासीर में गर्म, पाचनशक्तिवर्धक, पौष्टिक, रक्तशोधक, यकृत उत्तेजक, कफनाशक, घाव शोधक एवं सूजन को दूर करने वाली होती है। यह बुखार, श्वेत और रक्तप्रदर, आंखों के रोग, त्वचा विकार, गर्भाशय के रोग, पीलिया, पेट के कीड़े, मुंह के रोग, दांतों-मसूढ़ों के रोग, गर्भावस्था का जी मिचलाना आदि रोगों में उपयोगी है।

 यूनानी चिकित्सानुसार  इसके फल जरिश्क को यूनानी पद्धति में एक उत्तम औषधि माना गया है। यह आमाशय, जिगर और दिल के लिए लाभकारी होती है। इसके सेवन से जिगर और मेदे (आमाशय) की खराबी से दस्त लगना, मासिक-धर्म की अनियमितता, सूजन और बवासीर के कष्टों में आराम मिलता है।

 वैज्ञानिकों के अनुसार दारूहल्दी के रासायनिक संगठन का विश्लेषण करने पर ज्ञात होता है कि इसमें अनेक एल्केलाइड उपस्थित होता है। जिनमें बर्बेरिन नामक पीले रंग का कड़वा, पानी में घुलनशील एल्केलाइड्स प्रमुख होता है। बर्बेरीन सल्फेट का उपयोग फोड़ों के इलाज में काफी लाभप्रद पाया जाता है।

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news