सामान्य ज्ञान
ढाढ़ी एक प्रजाति है, जो मूल रूप से राजस्थान में मिलती है। ढोलियों की तरह ढाढ़ी, हिंदू और मुसलमान दोनों जातियों में मिलते हैं। हिंदू ढाढ़ी केवल ढाढ़ी ही कहलाते हैं, जबकि मुसलमान ढाढ़ी मलानुर नाम से संबोधित किए जाते हैं। इस समुदाय में ज्यादातर लोग आज भी अधिक पढ़े-लिखे नहीं मिलते।
प्राचीन समय में ये लोग रणभूमि में राजाओं के साथ रहा करते थे और समर हेतु सैनिकों को अपनी सिंधु राग के द्वारा प्रोत्साहित करते रहते थे। इनके गाने के तरीके को सिंधु देना कहा जाता था। कोई-कोई ढाढ़ी राज्याश्रित भी होता था। आज भी सिंधु राग गाने के लिए यह जाति विशेषज्ञ मानी जाती है। ढाढ़ी जाति के लोग अपने पेशे से पेट नहीं भर पाने के कारण कृषि, नौकरी एवं पशुपालन का कार्य भी करते हैं। इस जाति की अनेक उपवर्ग हैं, जिनमें बावरा, सिहोल, बगड़वा, डेडण, चमगा, मालाणा आदि विशेष उल्लेखनीय हैं। ढाढिय़ों की आवाज वीर रस से ओतप्रोत होती है। ढोल और नगाड़ों के साथ इनका गायन चलता है। प्राचीनकाल में ये रणवाद्य बजाने में बड़े कुशल माने जाते थे।