सामान्य ज्ञान
कबाबचीनी ऊपर से काली और अंदर से सफेद होती ह। यह स्वाद में चरपरी और ठंडी होती है। कबाब चीनी के दाने काली मिर्च के समान होते हैं। कबाबचीनी अंदर से पोली होती है और यह एक पतली डंडी में लगी होती है। कुछ कबाबचीनी शीतल होती है और कुछ गर्म प्रकृति की होती है। चंदन, कबाबचीनी के दोषों को दूर करता है। कबाबचीनी की तुलना दालचीनी के साथ की जा सकती है।
इसका सेवन करने से मन और मस्तिष्क प्रसन्न होता है। यह पेट के आंतरिक अंगों को मतबूत बनाती है, मूत्र अधिक लाती है, प्यास शांत करती है और प्लीहा रोग को ठीक करती है। इसे चबाने से मुंह के छाले और बदबू दूर होती है।
विभिन्न भाषाओं में नाम -संस्कृत- कंकोलं। हिन्दी- शीतलचीनी, कबाबचीनी। मराठी- कंकोल। गुजराती- तड़मिरे, चणकबात। बंगला- कोकला, शीतलचीनी। तेलुगू- टोकामिरियालू, कबाबचीनी। तमिल- वलमिलाकू। मलयालम- चीनीमुलक। कन्नड़- गंधमेणसु, बालमेणस। फारसी- कबाबचीनी। इंग्लिश- क्यूबेब। लैटिन- पाइपर क्यूबेबा। इसमें 5-20 प्रतिशत तेल, रालीय पदार्थ (6.4-8.5 प्रतिशत), गोंद, रंजक द्रव्य, स्थिर तेल, स्टार्च तथा नत्रजनयुक्त पदार्थ होते हैं। रालीय पदार्थ में अनेक घटक होते हैं, जिनमें क्युबेबिन, क्युबेबाल तथा क्युबेबिक अम्ल प्रमुख हैं। इसकी 100 ग्राम मात्रा से कम से कम 12-13 मि.ली. उडऩशील तेल निकलता है।