संपादकीय
हिन्दुस्तान की राजनीति बड़ी दिलचस्प है। पहले लोग कई काम आत्मा की आवाज पर करते थे। जब कभी विधानसभा या संसद में पार्टी के फैसले के खिलाफ वोट देना होता था, तो लोग कहते थे कि अंतरात्मा की आवाज पर वोट दिया। लेकिन फिर यह बात जब बहुत खुलकर सामने आई कि अंतरात्मा की आवाज गांधी की तस्वीरों वाले बड़े नोटों से निकलती है, तो दलबदल का कानून बना, और अंतरात्मा को कुछ आराम दिया गया। अब दलबदल कानून के तहत विधायकों या सांसदों की अंतरात्मा जब सामूहिक रूप से जागती है, तभी जाकर इस कानून से रियायत मिलती है। नतीजा यह निकला कि पहले जो जागना या जगाना सस्ते में हो जाता था, अब वह थोक में होता है, और काफी बड़ी खरीदी एक साथ करनी पड़ती है। विधायक दल या सांसद दल के लोग जब थोक में आत्मा बेचते हैं, जीते जी स्वर्ग जैसा अहसास होता है तो निर्वाचित जनप्रतिनिधियों का दूसरी पार्टी में परकाया प्रवेश हो पाता है।
अब इसका सबसे ताजा मामला गोवा में सामने आया जहां पर कांग्रेस के 11 विधायकों में से 8 भाजपा में चले गए। जाहिर है कि पिछला चुनाव इन लोगों ने भाजपा के खिलाफ ही लड़ा था, लेकिन अब अंतरात्मा अगर परकाया प्रवेश पर उतारू हो गई है, तो इसमें भला विधायकों की काया कोई रोड़ा कैसे बन सकती है? नतीजा यह हुआ कि करीब पांच बरस कांग्रेस के मुख्यमंत्री रहे दिगम्बर कामत भी भाजपा में चले गए। बाकी लोगों के मुकाबले दिगम्बर कामत का मामला सच में ही कुछ अलौकिक किस्म का रहा। उन्होंने न्यूज कैमरों के सामने कहा कि वे एक मंदिर गए, और वहां देवी-देवताओं से पूछा कि उनके दिमाग में भाजपा में जाने की बात उठ रही है, उन्हें क्या करना चाहिए? इस पर ईश्वर ने कहा कि बिल्कुल जाओ, फिक्र मत करो। अब यह बात तो बहुत साफ है कि जब ईश्वर ही किसी बात की इजाजत दे दें, तो फिर फिक्र की क्या बात है, और किसी नैतिकता या दलबदल कानून की, जनता के प्रति जवाबदेही की बात रह भी कहां जाती है?
अब दिगम्बर कामत से सबक लेकर आज रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमिर पुतिन भी यह कह सकते हैं कि वे चर्च गए थे, और वहां उन्होंने ईश्वर से कहा कि उनके मन में यूक्रेन पर हमले की बात आ रही है, क्या करें? और इस पर ईशु मसीह ने कहा कि बिल्कुल करो, फिक्र मत करो। अब ऐसी ईश्वरीय मंजूरी लेकर अगर कोई हमला किया गया है, तो संयुक्त राष्ट्र या पश्चिमी दुनिया का क्या हक बनता है कि वह इसे गलत करार दे? किसी भी धर्म के प्रति आस्था आमतौर पर कानून और संविधान से ऊपर मानी जाती है। अब दिगम्बर कामत पांच बरस कांग्रेस के मुख्यमंत्री थे, अभी वे कांग्रेस टिकट पर जीते थे, यह बात क्या ईश्वर को मालूम नहीं है? लेकिन इसके बाद भी अगर ईश्वर इजाजत दे रहा है, तो फिर किसी को इसे दलबदल नहीं कहना चाहिए, यही कहना चाहिए कि जो ऊपर वाले को मंजूर था।
धर्म, और ईश्वर की धारणा लोगों के लिए कई किस्म की सहूलियत मुहैया कराती हैं। कोई कत्ल हो जाए, जवान लडक़े हैं, किसी का रेप कर बैठें, महाकाल के प्रदेश में कुपोषित बच्चों का दलिया खा जाएं, काबिल बेरोजगारों को पीछे धकेलकर नौकरियों को बेच दें, या हजार किस्म के दूसरे जुर्म करें, तो भी कोई दिक्कत नहीं है। पकड़ाए जाने पर यही कहना चाहिए कि वे अपने उपासना स्थल गए थे, उन्होंने अपने ईश्वर से पूछा था, और ईश्वर ने कहा कि ठीक है कत्ल करने से मत झिझको, रेप करने से मत झिझको, जाओ और करो, तो फिर इसके खिलाफ कोई सजा कैसे हो सकती है? अभी-अभी सुप्रीम कोर्ट में धार्मिक मामलों की एक सुनवाई के दौरान एक वकील ने जजों को याद दिलाया कि देश की बड़ी अदालतों के बहुत सारे जज धार्मिक प्रतीक से लैस होकर कोर्ट में बैठते हैं। तो यह भी जाहिर है कि जब ईश्वर की इजाजत लेकर कोई जुर्म किया जाएगा, तो उन पर धार्मिक प्रतीक वाले जज कौन सा फैसला देंगे? इसलिए धर्म से मुजरिमों के दिल बड़े मजबूत होते हैं, और उनका हौसला टूट नहीं पाता है। और जब किसी धर्म के बलात्कारियों के किसी गैंगरेप से बचाने के लिए उस धर्म के झंडे-डंडे लेकर जुलूस निकलने लगते हैं, तो जाहिर है कि सर्वज्ञ, सर्वत्र, और सर्वशक्तिमान ईश्वर की उससे असहमति तो हो नहीं सकती है। अगर ईश्वर असहमत होता, तो उसके नाम पर निकाले जा रहे ऐसे जुलूसों पर बिजली तो गिरा ही सकता था, ऐसे तमाम लोगों को राख कर ही सकता था। लेकिन चूंकि बलात्कार समर्थक लोग ईश्वर की खुली निगाहों के नीचे जुलूस निकालते हैं, ईश्वर के नारे लगाते हैं, इसलिए यह मानने में कोई दिक्कत नहीं होना चाहिए कि उनमें ईश्वर की मौन सहमति रहती है। और यह भी जाहिर है कि दुनिया के तमाम धर्मों में जब ईश्वर को कण-कण में मौजूद बताया जाता है, तो जब छोटी बच्चियों से दर्जन भर लोग गैंगरेप करते हैं, तो उस वक्त भी वहां पर ईश्वर तो मौजूद रहा ही होगा, और हमने बहुत सारी धार्मिक फिल्मों में देखा है, और हर धार्मिक कहानी में पढ़ा है कि किस तरह ईश्वर दुष्टों का पल भर में नाश कर देता है। इसलिए जब बच्चियों के बलात्कारी गिरोह को लंबी जिंदगी मिलती है, तो उसका बड़ा साफ मतलब है कि ऐसा सर्वशक्तिमान उस गैंगरेप को रोकना नहीं चाहता था, वरना वह आसमानी बिजली गिराकर सबको भस्म कर सकता था।
ऐसी ही धार्मिक सहूलियत का फायदा अब विधायकों और सांसदों को मिल रहा है, और हम दिगम्बर कामत की उनके ईश्वर से बातचीत पर जरा भी शक नहीं करते क्योंकि वह ईशनिंदा जैसा काम हो जाएगा, और हमको भी अपनी जान प्यारी है। किसी होटल या रिसॉर्ट में हुए दलबदल की आलोचना करना तो ठीक हो सकता है, लेकिन किसी उपासना स्थल पर ईश्वर की सहमति और अनुमति लेकर किया गया दलबदल आलोचना के घेरे में नहीं लेना चाहिए, क्योंकि ऐसे आलोचकों को याद रखना चाहिए कि ईश्वर किस तरह भस्म कर सकता है। हरिइच्छा से ऊपर कोई राजनीतिक नैतिकता नहीं हो सकती, दलबदल कानून नहीं हो सकता, क्योंकि लोकतंत्र तो अभी ताजा-ताजा फसल है, ईश्वर तो अनंतकाल से रहते आए हैं, और वे अगर दिगम्बर कामत को किसी रंग का चोला पहनने को कह रहे हैं, तो इस पर कोई आलोचना नहीं होनी चाहिए। कांग्रेस को यह मानकर चुप बैठना चाहिए कि वह क्या लेकर आई थी, और क्या लेकर जाएगी।