संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : महिला खिलाडिय़ों को पुरूष शौचालय में खाना देने वाला यह गजब देश!
21-Sep-2022 3:19 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : महिला खिलाडिय़ों को पुरूष शौचालय में खाना देने वाला यह गजब देश!

उत्तरप्रदेश के सहारनपुर से निकला हुआ एक वीडियो चारों तरफ फैल रहा है जिसमें राज्य कबड्डी प्रतियोगिता में आई महिलाओं को शौचालय में खाना परोसा दिखाया गया है। यह खुलेआम दिन की रौशनी में हो रहा है, और शौचालय के फर्श पर से सबको खाना दिया जा रहा है। शौचालय को देखकर बताया जा सकता है कि यह पुरूषों के लिए बना हुआ है, और मूत्रालयों के सामने ही फर्श से लड़कियां खाना ले रही हैं। हिन्दुस्तान में गरीब खिलाडिय़ों को आमतौर पर ऐसे ही दौर से गुजरना होता है। जो निजी मुकाबलों वाले खेल रहते हैं, वहां तो कुछ खिलाडिय़ों के मां-बाप संपन्न होने की वजह से उनके साथ सफर कर लेते हैं, उन्हें ठीक से ठहरा लेते हैं। लेकिन तमाम किस्म के मुकाबलों के तकरीबन तमाम खिलाडिय़ों को ऐसी ही बदहाली में सफर करना होता है, काम चलाऊ जगह पर नहाना-सोना होता है, और शौचालय में खाना पकाने और खिलाने का यह मामला तो भारत में खेलों के प्रति सरकारी रूख का एक नया रिकॉर्ड है। और सरकार से परे भी इस देश में जितने खेल संगठन हैं, उनमें से अधिकतर का यही हाल है। इसी उत्तरप्रदेश के खेलों से जुड़े एक नेता का एक अश्लील वीडियो अभी कुछ दिन पहले ही सामने आया था जिसमें वे एक महिला के साथ अंतरंग हालत में दिख रहे थे। यह बात भी भारतीय खेलों में कई जगह सुनाई पड़ती है कि खिलाडिय़ों को टीम में चुने जाने के लिए कई तरह के समझौते करने पड़ते हैं।

एक तरफ कुछ चुनिंदा खेलों, और चुनिंदा प्रदेशों से निकलकर खिलाड़ी दुनिया भर में लगातार देश का नाम रौशन करते हैं, लेकिन हरियाणा, पंजाब, मणिपुर जैसे कुछ गिने-चुने राज्यों को छोड़ दें, तो अधिकतर राज्यों से कोई खिलाड़ी निकलकर आगे बढ़ते नहीं दिखते हैं, जबकि वहां आबादी बहुत है, और वहां राज्यों में सौ तरह की सरकारी फिजूलखर्ची भी दिखती है। और हम खेलों को किसी अंतरराष्ट्रीय मुकाबले में मैडल के हिसाब से भी नहीं देखते। हम खेलों को टीम भावना और खिलाड़ी भावना विकसित करने के लिए जरूरी समझते हैं, लोगों को जिंदगी भर फिटनेस और अच्छी सेहत की तरफ ले जाने के लिए भी कमउम्र से खेल जरूरी समझते हैं। लेकिन अधिकतर राज्यों में स्कूल शिक्षा विभाग आमतौर पर भ्रष्ट रहता है, और उसी के चलते खेलों के सामान से लेकर खेल के आयोजनों तक सब कुछ बर्बाद रहता है। फिर स्कूलों से ही बच्चों पर पढ़ाई-लिखाई का दबाव इतना बढ़ा दिया जाता है कि खेलों में दिलचस्पी को अधिकतर मां-बाप वक्त की बर्बादी मानकर चलते हैं, और हम आधी सदी पहले से यह नारा सुनते आए हैं- खेलोगे-कूदोगे बनोगे खराब, पढ़ोगे-लिखोगे बनोगे नवाब।

अब स्कूलों की किताबी शिक्षा को हिन्दुस्तान में इतना महत्व दे दिया गया है कि बच्चों के मां-बाप अपने बच्चों को उससे परे कुछ करने ही देना नहीं चाहते। ऐसे माहौल के बीच अगर कुछ बच्चे अपने मां-बाप की सहमति, अनुमति, या उनके दिए हौसले से खेलों में आगे बढऩा चाहते हैं, तो न उनके खानपान का इंतजाम रहता, न उनके पास जूते और सामान रहते, और न ही उनके लिए सफर या रहने-खाने का ठीकठाक इंतजाम रहता। हालत यह है कि अंतरराष्ट्रीय मैडल लाने वाले अधिकतर खिलाड़ी किसी निजी कारोबार से मदद पाकर तैयारी किए हुए रहते हैं, वे रवानगी के आखिरी पल तक सरकार या खेल संघों की तानाशाही से जूझते रहते हैं, जो मैडल लेने के करीब पहुंचे रहते हैं, उनके कोच को बदलने में खेल संघों की राजनीति जुट जाती है, और क्वार्टर फाइनल के पहले का मुकाबला तो ये खिलाड़ी अपने खेल संघों और अपनी सरकारों से जीतकर ही टूर्नामेंट में पहुंच पाते हैं।

आज देश भर में खेलों को राजनीति से अलग करने की बात चलते रहती है, खेल संघों में सिर्फ खिलाड़ी-पदाधिकारी रहें, यह बात भी लंबे वक्त से कही जा रही है, लेकिन हम बीसीसीआई से लेकर राज्यों के क्रिकेट संघों तक, और भारतीय ओलंपिक एसोसिएशन से राज्यों के ओलंपिक संघ तक देखते हैं कि अधिकतर जगहों पर गैरखिलाड़ी नेता, अफसर, कारोबारी काबिज हैं, और वे इन खेलों पर कब्जा करके अपना सार्वजनिक अस्तित्व बनाए रखते हैं, शायद मोटी कमाई भी करते हैं। खेल संघों के लोग और सरकार के खेल विभागों के लोग खिलाडिय़ों का सौ तरह से शोषण भी करते हैं, और उस बारे में अधिक लिखने का मतलब कई मां-बाप का हौसला पस्त करना होगा।

उत्तरप्रदेश के जिस जिले में लड़कियों के लिए पुरूष शौचालय में खाना पकाकर वहां खिलाया गया है, फर्श पर धरा खाना दिखता है, उनकी टीम में अगर एक भी नेता या अफसर के बच्चे होते, तो पूरा माहौल बदल गया होता। गरीब बच्चों के खेल में खिलाडिय़ों का यही हाल देखने मिलता है। दुनिया के न सिर्फ विकसित देश, बल्कि कई गरीब देश भी अपने खिलाडिय़ों को सहूलियत, अच्छा माहौल, और हिफाजत देकर उन्हें आगे बढ़ाते हैं। हिन्दुस्तान में बचपन से ही खिलाड़ी जिस गंदी राजनीति, भ्रष्ट सरकारी कामकाज, और तानाशाह खेल संघ देखते हुए आगे बढ़ते हैं, उनके मन में इन सबके लिए हिकारत पनपती होगी। खिलाडिय़ों के बीच से इन सबके खिलाफ आवाज उठनी चाहिए। अभी यह एक वीडियो सामने आया, तो देश भर में इससे खबरें बनीं, और हमें भी यह लिखना सूझा। ऐसे अधिक से अधिक भांडाफोड़ होने चाहिए, और उसके बाद ही किसी तरह के सुधार का रास्ता खुल सकेगा

  (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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