विचार / लेख

तो ऐसे मजदूरों की अकाल मौत न होती
24-Sep-2022 6:15 PM
तो ऐसे मजदूरों की अकाल मौत न होती

-आर.के. जैन

इस दर्दनाक खबर से दिल दहल सा गया है कि देश की राजधानी दिल्ली में सडक़ के किनारे बने डिवाइडर पर सो रहे चार व्यक्तियों को एक तेज गति से जा रहे ट्रक ने कुचल दिया और चारों की मौत हो गई है ।
यह हादसा बीती रात को लगभग डेढ़ बजे हुआ है। जाहिर है कि सडक़ के किनारे सो रहे व्यक्ति गरीब मज़दूर होंगे जिनका न कोई आशियाना होता है और न ही कोई ठिकाना। दिन भर कड़ी मेहनत के बाद ये गरीब मजदूर और कहीं और जगह न मिलने के कारण सडक़ के किनारे डिवाइडर पर ही सो गये होंगे ।

वैसे तो हर शहर का यह आम नजारा है। हजारों गरीब मज़दूरों ने सडक़ों को ही अपना ठिकाना बना रखा है और सडक़ के किनारे बने फुटपाथों व डिवाइडर पर ही अपनी पूरी जिंदगी गुजार देते है। अपने घर परिवार से दूर बड़ी बडी बिल्डिंगों को बनाने वाले, कारखानों में मेहनत करने वाले, रिक्शा व ठेला गाड़ी खींचने वाले आदि ऐसे हज़ारों लाखों लोग हैं जिनकी पूरी जिंदगी सडक़ों पर ही व्यतीत हो जाती हैं ।

अक्सर हम अख़बारों में पढ़ते भी रहते है कि सडक़ किनारे सो रहे व्यक्तियों पर गाड़ी चढ़ गई और इतने लोग मर गये। कुछ साल पहले फि़ल्म अभिनेता सलमान खान की गाड़ी से भी कई लोग कुचलकर मर गये थे और उस पर केस भी चला था पर चूँकि मरने वाले गरीब मजदूर होते है और मारने वाले महँगी गाडिय़ों में सवार अमीर व्यक्ति तो सजा होने का तो सवाल ही नहीं पैदा होता।

दिल्ली देश की राजधानी है और अगर राजधानी में भी गरीब मजदूर सडक़ों पर जिंदगी बिताने के लिए मजबूर है तो यह हमारे लिए चिंता व शर्म की बात है । देश के कोने कोने से गरीब व्यक्ति रोजगार व काम की तलाश में दिल्ली आता है और दिन भर कड़ी मेहनत करता है ताकि अपने घर परिवार वालों को गुजारे लायक कुछ पैसा भेज सके। अगर ये गरीब मजदूर न हो तो दिल्ली की लगभग सारी व्यवसायिक व निर्माण गतिविधियाँ ठप्प पड़ जायेगी पर इनकी बेसिक ज़रूरतों का ध्यान न कोई सरकार रखती हैं और न ही व्यवसाय या उद्योग चलाने वाले । कोरोना काल में लाखों मज़दूरों का पैदल पलायन कौन भूल सकता है ।

अब सवाल यह है कि ऐसे निराश्रित लोगों की सुध कौन लेगा? क्या उस सरकार की कोई जिम्मेदारी नहीं है जो व्यवसायिक व निर्माण के क्षेत्रों से टैक्सों द्वारा अपना खजाना भरती है । क्या दिल्ली सरकार ऐसे लोगों के लिए समुचित रैन बसेरों का इंतजाम नहीं कर सकती ताकि कोई गरीब सडक़ों पर न सो सके और ऐसे हादसों में जान न गँवाएँ। ध्यान रहे कि दिल्ली सरकार की आर्थिक स्थिति अन्य राज्यों की तुलना में कई गुना सुदृढ़ रहती हैं क्योंकि दिल्ली शहर व्यावसायिक गतिविधियों का शुरू से ही प्रमुख केंद्र रहा है ।

काश दिल्ली सरकार लोकलुभावन व प्रचार की राजनीति से उपर उठकर गरीबों के कल्याण के लिए धरातल पर कुछ ठोस काम कर सकती तो ऐसे गरीब मजदूरों की अकाल व दर्दनाक मृत्यु न होती।
 

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