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तूफानों की तबाही को कौन बढ़ा रहा है
29-Sep-2022 12:44 PM
तूफानों की तबाही को कौन बढ़ा रहा है

तूफानों की संख्या बढ़ने के सवाल पर वैज्ञानिक किसी ठोस नतीजे पर नहीं पहुंचे हैं. हालांकि इनकी तीव्रता और तबाही के साथ ही कई और बदलावों को वैज्ञानिकों ने साफ तौर पर देख लिया है.

  (dw.com)

तूफान इयान ने क्यूबा को अंधेरे में डुबो दिया और करीब 250 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार वाली हवाओं के साथ फ्लोरिडा की ओर बढ़ गया. इयान से पहले फियोना ने तबाही मचाई थी. इससे पहले कैटेगरी 4 की आंधी फियोना ने पिछले हफ्ते प्यूर्टो रिको में तबाही फैलाई और एक बड़े हिस्से में बिजली और पीने के पानी का संकट पैदा कर दिया था. टर्क्स और साइकोस द्वीपों से गुजरता फियोना बरमूडा होते हुए कनाडा के अटलांटिक तट पर पहुंच गया. यहां इसने बुनियादी ढांचे को इतना नुकसान पहुंचाया है कि उसकी मरम्मत में महीनों लगेंगे.

वैज्ञानिक अभी यह तो नहीं पता कर पायें हैं कि क्या जलवायु परिवर्तन फियोना और इयान का कारण है लेकिन इस बात के पक्के सबूत हैं कि तबाही लाने वाली ये तूफान और चक्रवात बद से बदतर होते जा रहे हैं, लेकिन क्यों?
तूफानों की बढ़ती ताकत और तबाही

क्या जलवायु परिवर्तन तूफानों पर असर डाल रहा है?
जलवायु परिवर्तन तूफानों में ज्यादा पानी और हवा भरने के साथ ही उन्हें ज्यादा भीषण बना रहा है. इस बात के भी सबूत हैं कि ये तूफान एक स्थान से दूसरी जगह जाने में थोड़ा ज्यादा समय ले रहे हैं जिसकी वजह से एक ही जगह पर ये ज्यादा पानी गिरा सकते हैं.

अगर महासागर नहीं होते तो धरती जलवायु परिवर्तन के कारण और ज्यादा गर्म हुई होती. पिछले 40 सालों में ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन के कारण धरती पर पैदा होने वाली गर्मी का 90 फीसदी हिस्सा महासागरों ने सोख लिया. इस गर्मी का ज्यादातर हिस्सा पानी की सतह पर रहता है. यही अतिरिक्त गर्मी आंधियों की तीव्रता और तेज हवाओं की ताकत बढ़ा सकती है.

जलवायु परिवर्तन तूफान के साथ आने वाली तेज बारिश की मात्रा भी बढ़ा सकता है. गर्म वातावरण में ज्यादा नमी को धारण करने की क्षमता होती है, बादलों के टूटने तक पानी की भाप बनती रहती है और जमीन पर भारी बारिश होती है.

2020 में अटलांटिक का तूफानी मौसम इस लिहाज से अब तक का सबसे सक्रिय मौसम रहा है. इस दौरान जलवायु परिवर्तन के कारण तूफानी ताकत वाली आंधियों में हर घंटे 8 से 11 फीसदी ज्यादा बारिश हुई. अप्रैल 2022 में नेचर कम्युनिकेशंस जर्नल ने यह जानकारी दी थी.

औद्योगिक काल से पहले की तुलना में औसत तापमान पहले ही 1.1 डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है. यूएस नेशनल ओशेनिक एंटमोस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन, एनओएए को आशंका है कि औसत तापमान 2 डिग्री सेल्सियस बढ़ने के बाद तूफान में हवा की रफ्तार 10 फीसदी और बढ़ जायेगी.

एनओएए ने यह भी कहा है कि तीव्रता में कैटेगरी 4 या 5 तक पहुंचने वाले तूफानों की  संख्या भी इस शताब्दी में 10 फीसदी तक बढ़ेगी. 1851 से लेकर अब तक 20 फीसदी तूफान ही तीव्रता के मामले में इस कैटगरी तक पहुंचे हैं.
जलवायु परिवर्तन और कैसे बदल रहा है तूफानों को?

तूफानों का खास "मौसम" बदल रहा है क्योंकि जलवायु की गर्मी के कारण साल में आंधियों के लिये उपयुक्त महीने बढ़ रहे हैं. इसके साथ ही तूफान ऐसे इलाकों में भी पांव रख रहे हैं जो ऐतिहासिक रूप से उनकी पहुंच से दूर रहे हैं.

अमेरिका के फ्लोरिडा में सबसे ज्यादा तूफान आते हैं. एनओएए के मुताबिक 1851 से अब तक 120 से ज्यादा तूफान सीधे फ्लोरिडा पर गिरे. हालांकि हाल के वर्षों में कुछ तूफान ना सिर्फ तीव्रता में बढ़े बल्कि पहले की तुलना में सुदूर उत्तर की ओर बढ़े. वैज्ञानिकों का कहना है कि यह बदलाव दुनिया में हवा और पानी के बढ़ते तापमान के कारण हो सकता है.

न्यू यॉर्क, बोस्टन, बीजिंग और टोक्यो जैसे शहरों के लिये तूफानों की यह प्रवृत्ति चिंताजनक है. फ्लोरिडा स्टेट यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक एलिसन विंग का कहना है कि इन शहरों का "बुनियादी ढांचा इस तरह के तूफानों के लिये तैयार नहीं है."

2012 में नॉर्थईस्टर्न सीबोर्ड से टकराना वाले तूफान सैंडी ने अमेरिका को 81 अरब डॉलर का नुकसान पहुंचाया. कैटेगरी 1 का तूफान होने के बावजूद यह अमेरिका के लिये अब तक का चौथा सबसे ज्यादा नुकसानदेह तूफान साबित हुआ.समय के लिहाज से देखें तो उत्तरी अमेरिका में तूफान आमतौर पर जून से नवंबर तक आते हैं और सितंबर में यह चरम पर होते हैं. गर्मियों में पानी के गर्म होने के बाद तूफानों का मौसम शुरू होता है. हालांकि पिछली शताब्दी के मुकाबले अब तीन हफ्ते पहले ही तूफान दस्तक देने लगे हैं. नेचर कम्युनिकेशंस में छपी रिसर्च रिपोर्ट के मुताबिक अब मई में ही तूफानों की आहट सुनाई देने लगी है.

यह प्रवृत्ति एशिया के बंगाल की खाड़ी में भी दिखाई दे रही है. यहां 2013 से चक्रवातों का आना मानसून से पहले अप्रैल और मई में ही शुरू हो जा रहा है जो पहले नहीं होता था.

हालांकि अभी यह साफ नहीं है कि क्या जलवायु परिवर्तन हर साल आने वाले तूफानों की संख्या पर भी असर डाल रहा है. वैज्ञानिकों की एक टीम ने 150 सालों में उत्तरी अटलांटिक के तूफानों की संख्या बढ़ने का पता लगाया है. उनकी रिसर्च रिपोर्ट दिसंबर में नेचर कम्युनिकेशन में छपी थी. हालांकि यह रिसर्च अभी चल ही रही है.

तूफान कैसे बनते हैं?
तूफान का जन्म दो कारकों से मिल कर होता है. गर्म समुद्री पानी और भीगी हवा. जब गर्म समुद्री पानी वाष्प में बदलता है तो इसकी उष्मा ऊर्जा वातावरण में चली जाती है. इससे आंधी की हवाएं ताकतवर हो जाती हैं. अगर यह ना हो तो तूफान तीव्र नहीं होंगे और बेजान हो जायेंगे.
साइक्लोन, टाइफून, हरिकेन इनमें फर्क क्या है?

तकनीकी रूप से इनमें कोई खास फर्क नहीं है इन बड़ी आंधियों को ये नाम इस आधार पर दिये जाते हैं कि वो कहां पैदा हुई हैं. अटलांटिक महासागर या मध्य और उत्तर पश्चिमी प्रशांत में उठने वाली आंधियों को हरीकेन कहा जाता है. इसमें हवाओं की गति कम से कम 119 किलोमीटर प्रति घंटे होती है.

पूर्वी एशिया में उत्तर पश्चिमी प्रशांत के इलाके में चक्रवाती आंधियां चलती हैं इन्हें टाइफून कहा जाता है इसी तरह हिंद महासागर और दक्षिणी प्रशांत में उठने वाली बड़ी आंधियों को चक्रवात या साइक्लोन कहा जाता है.

एनआर/एडी (रॉयटर्स)

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