अंतरराष्ट्रीय
सऊदी, 1 अक्टूबर । सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान अब सऊदी अरब के प्रधानमंत्री हैं. इसके साथ देश से ज़्यादा विदेशों में उनकी अहमियत और बढ़ेगी. देश के भीतर वो पहले ही काफ़ी ताक़तवर हैं.
समाचार एजेंसी एएफपी के अनुसार, क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान की नियुक्ति ऐसे वक़्त पर हुई है जब अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन को यह तय करना है कि क्या अमेरिकी अदालतों में दायर मामलों में प्रिंस मोहम्मद पर केस चलाया जा सकता है या नहीं?
क्राउन प्रिंस मोहम्मद के ख़िलाफ़ बीते कुछ वर्षों में विदेशों में कई मामले दर्ज हुए हैं. साल 2018 में सऊदी पत्रकार जमाल खाशोज्जी की हत्या के मामले में भी उन पर आरोप लगे जिसकी वजह से पश्चिमी देशों में उनकी छवि नकारात्मक बन गई.
लीगल इम्यूनिटी
उनके वकील ने अपनी याचिका में कहा कि वो (प्रिंस मोहम्मद) ‘सऊदी अरब की सरकार के शीर्ष पद पर हैं’ इसलिए उन्हें लीगल इम्यूनिटी मिलनी चाहिए.
मानवाधिकार कार्यकर्ता और सरकार के आलोचकों का मानना है कि प्रिंस मोहम्मद को प्रधानमंत्री बनाना उन्हें कानून और मुकदमे से बचाने का खुला प्रयास है.
जमाल खाशोज्जी के एनजीओ डेमोक्रेसी फॉर अरब वर्ल्ड (DAWN) की कार्यकारी निदेशक सारा लीह वाइटसन ने एएफपी से कहा कि ‘नया पद देकर उन्हें बचाने का यह आखिरी प्रयास है.’
हालांकि इस मामले में सऊदी अरब के अधिकारियों ने कोई बयान नहीं दिया.
अक्टूबर 2020 में जमाल खाशोज्जी की हत्या के दो साल बाद DAWN ने खाशोज्जी की मंगेतर के साथ मिलकर संयुक्त राष्ट्र में एक शिकायत देकर प्रिंस मोहम्मद पर खाशोज्जी की हत्या की ‘साजिश रचने’ का आरोप लगाया.
आरोप में यह भी कहा गया कि इसी साजिश के तहत खाशोज्जी को अगवा करके उन्हें ड्रग्स देने और टॉर्चर करने के बाद उनकी हत्या की गई.
बीते साल जो बाइडन ने एक खुफिया रिपोर्ट को खारिज कर दिया था जिसमें दावा किया गया था कि प्रिंस मोहम्मद ने खाशोज्जी के ख़िलाफ ऑपरेशन की अनुमति दी थी. इस आरोप से सऊदी अरब हमेशा इनकार करता रहा है.
हालांकि सिर्फ खाशोज्जी का मामला ही नहीं है जो प्रिंस मोहम्मद के लिए अमेरिका में मुश्किलें खड़ी कर रहा है. यहां कई अन्य मामलों में भी उनका नाम शामिल है. (bbc.com/hindi)